सिर्फ एक लाईन।
चलो, चल कर देखते हैं, अब जो होगा देखा जाएगा)
हाँ यही सोचा संज्ञा ने और रात के आठ बजे किसी अनहोनी न हो इस आशंका के चलते अपनी गाड़ी निकाल दी।
और विचारों के सिलसिले बढ़े तो पुरानी बातें याद आने लगी....
हाँ, अब ये भी तो जरूरी है कि आपका परिवार का वंश चलना,
मेरे साथ तो ये नहीं हो सकता है न?
जानते हुए भी सवाल करती है संज्ञा।
मनीष - नहीं...
ऐसा भी नहीं है अब देखते हैं हम भी ये नहीं चाहते हैं अभी, जिंदगी यूँ ही अच्छे से कट जाए बस!
इसका क्या मतलब समझूं ?
कुछ नहीं, यहां बैठो चुपचाप, आपके साथ हमे अच्छा लगता है और इतना किसी से भी कभी कुछ शेयर नहीं कर पाए हैं, तुम क्या हो हमारे लिए, पता नहीं, क्या बात है दवाई बन गई हो हमारी!
अचानक रात के दो बजे पहुंचे मनीष ने कहा।
संज्ञा ने पकड़कर उसे संभाला।
मनीष की हालत से अच्छी तरह वाकिफ थी संज्ञा ।
मनीष बढ़बढा़ रहे थे और संज्ञा ने संभालते हुए मनीष के जूते उतारे और आराम से पैर ऊपर करते हुए मनीष को बिस्तर पर लिटा दिया।
फिर कभी।
वो बैठ तो गयी, सहारा बन गई या सहारा ले लिया उनका।
फ़िर भी सोच रही थी संज्ञा, कि क्या है ये सब, ये मोह ख़त्म क्यूँ नहीं होता, बाद में इस साथ के लेनदेन से बहुत तकलीफ होने वाली है !
तभी आवाज़ आई, सुनो...
अब ज़्यादा सोचो मत, अब इनवॉलव हो ही गए हैं तो देखेंगे....
क्या सोच रही हो तुम, हम जरा ये ऑफिस का काम ख़त्म कर ले फ़िर बात करते हैं,
ह्म्म... ठीक है, आप कीजिए काम।
मैं डिस्टर्ब कर रही हूँ आपको।
नहीं ऐसा नहीं है हमें परेशानी होती तो हम खुद कह देते या तुम्हें साफ़ मना कर देते।
हमें भी तुम्हारा साथ पसंद है।
ह्म्म.... ठीक है,
आप कीजिए काम।
यूँ ही चल रहा था ये सब।
कभी फोन पर, कभी सामने।
दोनों टूटे और एक दूसरे को सहारा देते हुए टूटते जा रहे हैं और आखिरी में और ज्यादा टूटने के लिए।
परिणति पता थी लेकिन हजारों की भीड़ खालीपन में एक जगह और घट रहे अज़ीब घटनाक्रमों में ये साथ अच्छा लग रहा था पर सहारे लेने वाले और देने की कोशिश करते हुए लोग कमजोर होते हैं।
ये जान रही थी संज्ञा, पर इन हालातों में काबू नहीं आ रहा था।
अचानक फोन आता है कि सुनो...
संज्ञा कहती है हाँ, बोलिए...
तुम कल यहाँ आ जाओ एकबार यहां आकर देख लो कैसे रहते हैं हम।
तब तुम्हें अंदाजा हो सकता है इस जगह का, घर का।
ह्म्म्म, नहीं, नहीं आ सकती हूँ।
पहले आप मना कर दिए थे और हम तब ही समझ गयीं थीं।
हमें न का मतलब समझ में आता है जैसा समझाते वैसा समझ जाती हैं।
हाँ कभी कभी लगता है कि शायद सब सही होगा तो कदम आगे बढ़ जाते हैं।
बहुत बुरा समय देखा है अब ताकत नहीं बची है अब हमारे भीतर ।
अरे, ऐसा कुछ नहीं है देखते हैं क्या पता आगे ठीक हो जाएगा मनीष कहते हैं।
अब, अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
मन में फिर एक आस जलने लगती है।
बोलिए आप, कल आ रहीं हैं ?
ठीक है, अब एक दिन तो मन को समझाने दीजिए, आप कभी ना कहते हैं और आज अचानक कह रहे हैं कि आ जाएं।
मानिए बात, हमें भी वक्त लगता है और आपकी बातों से दर्द भी होता है और खुद समझ में नहीं आ रहा है कि ये हो क्या रहा है क्योंकि हम बहुत तकलीफ में हैं, सच में, संज्ञा ने कहा।
मनीष - ठीक है सोचने का समय ले लिजिएगा और देखिए अगर आ सकती हो तो।
संज्ञा - जी ठीक है ।
अच्छा, काम हो गया आपका, खाना वगैरह डिनर ?
नहीं अभी काम कर रहे हैं और फिर कुछ भूख लगेगी तो खा लेगें, शाम को आफिस में ही कुछ खा लिया था।
अभी फोन करेंगे तुम्हें, ठीक है ।
हाँ जी, ठीक है, संज्ञा कहती है और अब फोन मत कीजिएगा प्लीज।
अब आपको जब यहाँ आपके काम के लिए आना होगा तो बता दीजिएगा मै वही पहुंच जाऊँगी!
और प्लीज़ अब मैं फोन रख रही हूँ प्लीज।
और संज्ञा ने फोन काटते हुए रखती है और घुटन महसूस करती है और खुद को कोसने लगती है।
तभी दुबारा फोन की घंटी बजी तो उठा लिया और बोली।
हाँ जी....
मनीष - नहीं कुछ नहीं वो पता नहीं नेटवर्क प्राब्लम है न फोन कट गया था।
संज्ञा - नहीं मैंने काट दिया था कहा भी था फोन मत कीजिए।
क्यों ऐसा कर रही है आप, बताईये क्या करें हम?
क्या करें आपके लिए।
फोन मत काटिए।
संज्ञा - जो कहेंगे वो कर लेंगे क्या?
अच्छा, सुनिए। अभी फोन रखिएगा प्लीज।
कल बात करते हैं कुछ गलतफहमी मुझे रही।
लेकिन गलतफहमी नहीं थी पर आप अपनी बात नहीं मानेंगे और जिद करनी हमें नहीं आती।
आपने जो समझाया है हमें समझ में आता है।
और अभी गुस्से में हम अगर हमसे कुछ गलत कहा जाएगा और बाद में हमें खुद से ही घृणा हो जाएगी कि हमने गलत तरीके से बात की।
प्लीज हमें भी संभलने का समय दे दीजिए।
जो संभव नहीं है उसमें जाने से कोई फायदा नहीं।
हम भी खुद को समझाने की कोशिश कर रहे हैं आप भी काम पर ध्यान दीजिए।
मगर फिर तभी दुबारा।
फिर फोन आता है।
संज्ञा - प्लीज हमें इरिटेड मत कीजिए।
हमें भी चीजों से निकलने में वक्त लगता है।
मनीष - अच्छा, क्या चाहती हो, फोन न करें।
संज्ञा - प्लीज, अभी मत कीजिए। आपकी वो बात जानने के बाद कुछ अजीब सा हो गया है एक बार जरा समय दे दीजिए।
मैं खुद आप को फोन कर लूँगी। प्लीज़।
अच्छा, ठीक है, सिर्फ एक बात कहनी थी कि वो पुरानी बात थी, आपसे पहले भी शेयर किया था,
अभी हम आपको चीट नहीं कर रहे हैं।
संज्ञा - हाँ पर हमें अभी बुरा लग रहा है, आपकी गलती नहीं है वो सब देखकर अभी हमें बहुत बुरा लग गया।
आप जानते हैं कि हमारी फीलिंग आपके लिए जैन्युन हैं।
आप हमारे लिए राह चलते इंसान नहीं है।
सिर्फ एक दिन का समय दे दीजिए।
मनीष - ठीक है फोन रखते हैं अपना ध्यान रखना।
I did not intend to hurt you tabhi sab bata diya tha. I don't know what to say or do to make You feel better. But I am sorry...
संज्ञा - Yes, I know... I am telling you, this is not your fault, but it has affected me very much.
Please give me some time
मनीष - ठीक है, हम परसों फोन करेंगे.. Good night Okay.
संज्ञा - जी। Thanks, मैं वहाँ बात करके आपको बता दूँगी।
अब ये काम तो पूरा करना ही है।
Good night.
Okay.. take care.
दो दिन बाद सब पता करने के बाद हालात और मनोभावों में कुछ सोचते हुए मनीष की हालत का अंदाजा होने और कुछ ज्यादा गलत न हो जाए की आशंका के चलते उसकी बताई जगह पर पहुंच कर डरे हुए मन से उसको फोन करती है और मन में सोचते हुए कि न जाने सब कैसा होगा?
बस एक दूसरे के प्रति विश्वास और कद्र पता नहीं किस रूप में सामने आ रहा था।
फोन पर घंटी जाने की आवाज़ आती हुई लगी तो लगा कि जैसे झपट कर फोन उठाया हो,
जी... हाँ कैसी हो आप?
ठीक हूँ, आप कैसे हैं?
एकदम ठीक।
कहाँ हैं आप, आज आपने फोन करना था जब नहीं आया तो लगा कि शायद...
अरे नहीं नहीं, हम फोन करते।
पर आज एक असांईनमेंट आ गया था और बहुत जरूरी था आज ही सबमिट करना था।
साथ में सब थे तो सोचा कि रात में आराम से बात करते।
आज हम फोन जरूर करते।
अच्छा, अभी एक्जैकटली आप कहाँ पर हैं?
तुम आई हो क्या?
संज्ञा चुप सी पड़ गई।
मनीष - बताईये ?
संज्ञा - जी, आई हूँ
मनीष - कहाँ पर हो?
आपके घर के रास्ते पर, नीचे ही।
मनीष - कब आईं तुम ?
बस अभी पहुँची हूँ।
मनीष - अच्छा मुझे दो मिनट का समय दीजिए , प्लीज़।अभी काल करते हैं आपको।
तुरंत दुबारा फोन आता है हम फ्री हो गये हैं और संज्ञा हाँ, हूँ कहते हुए घर का रास्ता समझती रहती है।
जी, ठीक है कहती हुई हल्के कोहरे में कार चढ़ाई में आगे बढ़ाती हुई जाती है।
और आखिरकार बताए ठिकाने पर पहुंच जाती है।
कार का शीशा नीचे उतारते हुए पेड़ों के झुरमुट के बीच सर्द हवा में नमी के बीच अंधेरे में भी मनीष की उदास आँखों में आती हुई चमक देख ली थी संज्ञा ने और उसे संतुष्टि हुई कि उसने अभी तो ठीक किया।
कल जो भी हो आज तो जिया ही जा सकता है और इसी तरह से आगे देखा जाएगा।
इंसान जब सामने नहीं रह जाता है तब उसके लिए रोना और आज है तो उसका साथ बुरा क्यों लगता है अजीब सी उधेड़बुन में कमरे में कदम बढ़ाती है और खड़ी हो कर देखती है और आगे अंदर को जाते हुए एक दूसरे कमरे में जा कर कहती है, हाँ ठीक हैं, मैं इसमें रह जाऊँगी।
आप फिक्र मत करना।
ठीक है ये।
मनीष - चुप रहो, आओ अभी इधर बैठो, हीटर के पास, वहां फ्रीज़ हो जायेंगी आप।
हम जरा चेंज कर के आते हैं।
और जरा देर सी में आकर कहते हैं कि आज एक काम तो अच्छा हुआ।
क्या कुछ अच्छा हुआ क्या, बड़ा प्रोजेक्ट मिला क्या?
संज्ञा को अपना हाथ मनीष ठंडे हाथ में महसूस होता है और मनीष कहते है, नहीं तुम आ गयी ये अच्छा हुआ
Thank you...
संज्ञा आँखें उठाकर उसकी तरफ देखती है तो मनीष की आवाज सुनाई देती है ऐसे मत देखिए।
आपके लिए ये सब इमोशनल है, हमारे लिए नहीं।
और फिर से संज्ञा के दिल दिमाग में विचारों का तूफान चल पड़ता है।
आखिर क्या चाहते हैं मनीष ?
सिर भारी हो जाता है फिर भी संज्ञा यथासंभव हालात देखते हुए चुप से काम लेते हुए सुबह पूछती है कि अब कब चलेंगे?
अरे रूको अभी, कुक खाना बना रही है, खाकर फिर चलेंगे।
आज वही रहेंगे तुम्हारे पास।
अच्छा। ठीक है।
और कभी किताब कभी अखबार देखते हुए समझने की कोशिश करती रही और हल्के हल्के मनीष को असंयत होते हुए महसूस कर रही थी और पूछ ही बैठी।
क्या हुआ, are you alright?
हाँ हाँ, सब ठीक, जरा काम का टेंशन है,
तो ठीक है न, आप काम कर लिजिए, मै चलती हूँ, आपको लगेगा तो आ जाईयेगा।
कुछ असहज महसूस कर रही थी वो।
कुछ तो है जो ये कह नहीं पा रहे हैं और फिर गलत तरीके से अपनी झल्लाहट निकालेंगे।
यूँ लगता था कि जैसे वो जो तब नहीं कर पाए थे उस सबका बदला अब संज्ञा से लिया जा रहा है।
अचानक मनीष अपनी कुर्सी से उठ कर दूसरे कमरे में गये तो जरा देर में आशंकित मन से संज्ञा ने बहाने से आवाज़ देते हुए कहा कि अब तो यहां काफी सर्दी हो जाएगी न?
कोई जवाब नहीं आने पर कहती हैं कि मनीष तुम ठीक हो न?
झटके में दरवाजा खुलता है तो मनीष बदले हुए कपडों में दिखते हैं,
चलो आपको छोड़ आते हैं?
अवाक सी संज्ञा, जल्दी से बोलती है...
नहीं मुझे किसी की जरूरत नहीं, मैं जा सकती हूँ।
आई भी तो खुद हूँ न!
मैं तो आपके कहने पर रूकी हुई हूँ कि आप साथ चलने के लिए कह रहे थे और आज वही रहने के लिए कह रहे थे।
अगर सिर्फ छोड़कर आने के लिए आ रहे हैं तो वो मत कीजिए।
और मन में कहती हैं आज छोड़ ही दिया आपने।
अब मैं निश्चिंत होकर जाऊँगी कि आपको कुछ और चाहिए और ईश्वर एक बार फिर से मेरी दुआ कबूल करेंगे आपको जो चाहिए आपको वो मिल जाएगा।
पर संज्ञा नहीं।
मनीष कहते रहे कि हम आते हैं छोड़ देते हैं।
नहीं मनीष छोड़कर आने के लिए आपको नहीं आना चाहिए।
और लड़खड़ाते बैग उठाकर थथासंभव संभलते हुए ठंड में संज्ञा ने अपने कदम बढ़ा दिए।
कदम बहुत भारी लग रहे थे।
चढाई में सांसों का उखड़ना लाजमी था।
आगे रास्ते को पार कर जैसे ही गाड़ी में सवार होती है आंसूओं के गुबार से एकाएक दिखना बंद हो जाता है। तभी जोरों से ब्रेक लगाती हुई सामने खड़ी गाड़ी में टकराते हुए बचती है और अपना हैडब्रेक लगाती हुई अपना चश्मा हटाकर आँसूओं को पोछती हुई देखती है कि आगे जबरदस्त जाम लगा हुआ है।
तभी मनीष का फोन आया तो अब यंत्रवत फोन उठा कर हैलो कहती है।
रूकिए हम आ रहे हैं आप आगे चली गई।
नहीं, अब मैं बहुत आगे निकल गई हूँ बाजार पार कर लिया है।
जबकि वहीं पर जाम में फंसी हुई संज्ञा ने, मनीष से पहली बार इतना अच्छा झूठ बोला कि उन्होंने यकीन कर लिया।
फिर आधुनिक तकनीक के युग में एक मैसेज भेज दिया
Today you did a best job from your end.
And I really deserve this.
Thanks
तुरंत जवाब आ गया
I am really sorry. I didn't intend to hurt. It's just that dealing with multiple issues gets so stressful and out of control.
I am sorry.
फ़र्क सिर्फ इतना ही कि मैसेज मे इस बार फूल नहीं थे!
खैर...
इधर, शायद कहीं कोई गाड़ी फँस गई है पहाड़ी संकरी सड़क पर एक घंटे तक मनीष के घर से मात्र 100 मीटर की दूरी पर गाड़ी रास्ते से जरा हट कर बने हुए घरों की के लिए बनी पक्की पार्किंग में गाड़ी खड़ी दी।
मन में था कि कहीं मनीष न आ जाएं?
मनीष नहीं आए और संज्ञा कार के अंदर ही कुछ समय मिल गया, उड़ते से हल्के मन और शरीर से गाड़ी चलाती रही।
जैसे सब कुछ शांत हो गया।
जो अनहोनी की आशंका चलते वक़्त थी वो इस तरह सामने आई!
क्या यही था वो....
और किसने किसको कहाँ पर छोड़ दिया?
ये दोनों जान रहे थे कि फिर भी संज्ञा सोच रही थी कि आखिरी दिन अच्छा हो सकता था, बुला कर इस तरह से....?
वो भी तो चार दिन रह कर गयी थी यहाँ से, जिसके लिए उस दिन इतनी बात को लेकर issue भी हुआ था, उससे तो मनीष का कोई रिश्ता नहीं था और आज ये सब ?
कल तो कह रहे थे कि तुम आ गयी अच्छा हुआ।
क्या था ये सब?
आखिर क्यों ?
इस सबको आराम से भी तो कहा जा सकता था कि आज मैं नहीं आ सकता हूँ।
क्या कभी संज्ञा ने कोई जिद की थी... नही की थी, ख़ुद को जवाब दे रही थी वो!
वो सब उसके काबू से बाहर हो रहा था, उसकी साँसे थम सी रही थी, घुट गयी थी वो!
वही सब हो रहा था जो मनीष भी चाहते थे।
शायद अब ये एक सवाल बाकी के सवालों की तरह हर वक्त संज्ञा के जेहन में शोर मचाएगा।
मनीष इस सबको जानते हैं और फिर भी संज्ञाहीन हो गये।
और संज्ञा... संज्ञा शून्य !!!