Adhyayan

Friday, 27 November 2020

घुमक्कड़ी

#आत्मचिंतन #घुमम्कड़ी 

घुमक्कड़ी हमें कहीं वाह्य दुनिया में नहीं बल्कि अपने भीतर ले जाती हैं।

यात्राएं, हमें हमारे अपने ही दिल-दिमाग के गलियारों और मन के अंदर न जाने कितने परतों में बसे स्मृति पटल पर लम्हा लम्हा गुजरते हुए ले जाती हैं ! 
प्रकृति के साथ बीते लम्हों के कितनी यादों को ताजा कर देती है।
तब लगता है कि खुद के साथ कितने दिन से नहीं रहे थे । अपने साथ, दुनिया भर की बातों और किस्सों के बीच कहीं भूल गये खु़द को ।
कब से रोया नहीं था, खुद के के लिए, जब किसी ने रूलाया तो रो दिए औरों के कर्मों को खुद का मान लिया।
      कब से खुद के लिए हँसे नहीं थे , कुछ याद नहीं आ रहा कि जिसे सोचकर बरबस ही होंठों पर मुस्कान आ जाए।
हँसी खो चुके थे, सबका साथ देते देते। 
        यात्राएं और यायावरी खुद को तलाशती हैं, गहराई और स्थिरता लाती हैं।
कि आज भी लगा है कुदरत मैं और एक हो गये हैं ।
बरबस मेरी मुलाकात मेरी मुस्कान से हो गयी।

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