ख़ु्शी, मुस्कुराहटें
टीस की फिर आहटें
पुलकित हुआ तभी
मन ने आंसूओं के
हज़ार मोती चुगे!
रात भर, रात पर सोचती रही
दर्द का उठाए हल,
निज-मन को जोतती रही
शायद ख़ुशी उगे!
रात गई
खुला सुबह का बाड़ा
सह लिया, था मन में दर्द समाया
रात्री-वृक्ष ने वेदना-फूल
और फल दिये!
सुबह हुई
हमनें रात को झाड़ा
तह किया, बगल में उसे दबाया
पथ के निहारे शूल
और चल दिये!
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