Adhyayan

Tuesday, 12 December 2023

छुअन

तुम्हारे हाथों की छुअन... :)

अपने फ़लक के चांद को
कुछ सोचते हुए मैंने
खींच कर छुटाया
और थोड़ा दायीं ओर करके
फिर चिपका दिया
हाँ, अब सप्तर्षि ठीक से दिखता है
पर ऊपर की तरफ़ वो चार सितारे
अभी भी कुछ जँच नहीं रहे
ह्म्म
चलो इन्हें थोड़ा छितरा देती हूँ
लेकिन इससे जगह कम हो जाएगी
रोहिणी और झुमका के लिए
और हाँ, नीचे की ओर ये कई तारे
कुछ अधिक ही सीध में नहीं लग रहे ?

मैं इसी उधेड़-बुन में थी
अपने घर के आकाश को
सजाने की धुन में थी
कि तभी तुम आये
मेरे चेहरे पर छाई
दुविधा देख
तुम मुस्कुराये
कुछ पल गगन निहारा
फिर अपनी अंजुली में
समेट लिया आकाश सारा
पूरा चांद और हर इक तारा,

मैं चौंक कर अपनी उधेड़-बुन से निकली
मुझे अचरज में देख
तुम खिल-खिलाकर हँस पड़े
और बड़ी चंचलता से तुमने
सारे सितारे फिर से
आकाश में यूं ही बिखेर-से दिए

मेरी हैरत असीम हो गई!
हर सितारा अपनी जगह
तरतीब से टंक गया था! 
चांद भी अचानक
कुछ अधिक ही
सुंदर लगने लगा! 
और सारा आकाश
एकदम व्यवस्थित हो गया
फिर तुम करीब आकर
मेरे कांधे पर हाथ रख
बैठ गये!
मैं आश्चर्य की प्रतिमूर्ती बनी
कभी आकाश को, कभी तुम्हें
कभी तुम्हारे सुंदर हाथों को
देखती ही रह गयी! 

कुछ तो हुनर है, 
तुम्हारे हाथों की छुअन में
कि हर चीज़ सज जाती है
सलीके से! 
चाहे वो ज़िन्दगी हो या आकाश !

"तनु"

Friday, 11 August 2023

कवच

क्षमा करना शत्रुओ!
___________________

सच बतलाने में हर्ज है क्या ? 

मेरा दोष केवल इतना ही है कि ऊब जाती हूं शत्रुओं से 

क्षमा करना शत्रुओ, कि जो ये कांस्य के कवच पहनकर कुरुक्षेत्र में खड़े हो, तुम्हारी पसलियों पर कितने चुभते नहीं होंगे!
जबकि पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के बावजूद आज इतनी उमस ! 

बहुधा ऊब जाती हूं प्रेम करते करते फिर यह तो घृणा है!
क्योंकि मैंने देखा है कि तुम तो दिखावे में जीते हो, तुम्हें किस बात की कमी है। 
तुमने मेरा ही तो हाथ थाम कर मुझे डुबोया है। 

ऊब जाती हूं लड़ते-लड़ते, जबकि मैंने ही किया हो संघर्ष का शंखनाद और रणभूमि में दोनों दिशाओं में सजी हो अठारह अक्षौहिणी सेनाएं, मेरे अगले प्रहार की विकल प्रतीक्षा में!
और ऊब जाती हूं मित्रता के प्रसार से फिर यह तो शत्रुता है!

इसमें दिशाशूल का दोष नहीं. मत कोसो कुमुदनाथ सान्याल के पंचांग को, जिसमें भ्रामक सूचनाएं ! 

दोष तो मेरा है कि ऊब जाती हूँ कि तुम्हारी कुटिल चालों से। 

याद है घर की बूढ़ी की मौत उसकी अलमारियां खगालते तुम लज्जाहीन हो जाने को आतुर। 
ब्रेड के मक्खन के लिए लपलपाती तुम्हारी जीभ। 
उन्नीस सौ निन्यानवे में अध्यापिका थी . पढ़ाती थी कई विषय, पर तुम मेरा प्रमुख विषय बन गये हैं। 
तुम्हारे लालसा, लालच की कोई सीमा नहीं। 

जब तक प्रेमी थी, लिखती थी प्रणय का आकुल अंतर ! 

दो हज़ार चार में योद्धा का रूप धरा। कोहनियां छिल गईं, दिखलाऊं क्या ? 

यह दो हज़ार सत्रह है और मुखपुस्तक पर लिख रही हूँ , जबकि प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं शत्रुगण. 

क्षमा करना शत्रुओ, कि जो ये प्रत्यंचा खींचे कुरुक्षेत्र में खड़े हो, दुखने लगे होंगे तुम्हारे कंधे! 

रविवार है, तुम धनुष रख दो! 

मायावी था "मारीच". नानाविध रूपों में आता था. 

मायावी मैं भी हूं, किंतु ऊब जाती हूँ अतिशीघ्र !

ऐन अभी मुझे "प्यासा" का गुरु दत्त याद आ रहा है, जिसने जयघोष के निनाद के बीच कह दिया था । 

"मैं वो नहीं हूं, जो आप लोगों ने मुझे समझ लिया है !"

और अगले ही क्षण हाहाकार में बदल गया था जयघोष, भर्त्सना का रूप धर चुकी थीं प्रशस्तियां ! 

भीड़ आपको जिस नाम से पुकारे, आत्मघाती होता है भरी सभा में उससे इन्कार ! 

गुरु दत्त ने नींद की गोलियां अवश्य खाई थीं, किंतु वह आत्मघाती नहीं था।
वो केवल गुरु दत्त होने से ऊब गया था ! 

जैसे औलिया होने से ऊब गया था निज़ामुद्दीन जब उसके घर के पूर्वी दरवाज़े से भीतर घुस आया था सुल्तान ! 

मैं अपने आप से ऊब जाती हूँ, क्षमा करना शत्रुओं !

और जो आरोप तुमने मुझ पर लगाए हैं, उन्हें एक जिल्द में जोड़कर छपवा लेना ऐय्यारी उपन्यास और बेच आना मंडी में । 

क्योंकि मुफ़्त नहीं मिलते हैं कांसे के कवच।
मुफ़्त नहीं मिलता है पसलियों पर घाव !
खीसे में कौड़ी होगी तो सौदों का सुहाता रहेगा !

2017  💐

Saturday, 29 July 2023

क्षितिज

क्षितीज का छोर

उस गरजते समुद्र पर
लौटती लहरों का ठंडापन
विहंगम सा पट जो खुला है
           अंतिम क्षितिज तक
बेचैन मन का कोई कोना
स्थिर करता है
मैं आत्महत्यों तक वहाँ पहुँचती हूँ
विषाद के विचलित दिन लिए
                    उद्विग्नता के पल
हिलोरे सागर पर वाष्प से हो चले हैं
विलुप्त, विस्मृत यह आकर्षण है...
                        मौन आकर्षण
तिर जाती है आत्महत्या स्वयं ही,
मगर यह आनंद नहीं शून्य सा है
जिसमें नीरवता है, रिक्तता है।
                   प्रेरणा है वैराग्य सी,
जिसके विपरीत प्रभाव से पुनः पुनः
लौट पड़ता है जीवन पीछे
भर जाता है एक और आत्महत्या
तिरोहित होने की एक और
                       साधना उस तक
जो गरजता है दिगंत तक,
क्षितिज के एक छोर से दूसरे छोर तक

Monday, 3 July 2023

स्त्री

जिन लोगों के रास्ते फौलाद के सींखचे हो, वे लोग चाहे कुछ न कर सकते हों, पर किसी दिन उन सींखचों को तोड़ देने का सपना जरूर देख सकते हैं।

पर मेरे  रास्ते में तो लहू-माँस के सींखचे लगे हुए हैं...

एक औरत अपनी कोख से जब लहू-माँस को जन्म देती है, तो वह उन सींखचों के पीछे खड़ी होकर उन्हें तोड़ देने का सपना भी नहीं ले सकती ! 
  ______________________

Friday, 30 June 2023

समीकरण

#ज़िंदगी

मांस का धड़कता, कुछ सौ ग्राम लोथडा़
भारी होकर एक कोने में , पसलियों में टकराता, अटका सा, पीड़ा देता हुआ !
बाज़ुओं में रक्त प्रवाह भी ठंडी तकलीफ देता हुआ प्रतीत होता है ! 
_______________

एक सीध में 
जब रखे गए तर्क और तक़ाज़े 
दलीलें और जिरहें
तो उनको 
मान लिया जाए ? 

और कदाचित् 
कोई ग्लानि ही रही होगी मन में 
कि उन औरों से अधिक त्वरा से माना
जिन्होंने कभी चाही ही नहीं थीं 
कोई सफ़ाइयां.

स्वयं से कहा-
मैं स्वांग करने को विवश हूं!
और तब ऐसा स्वांग रचाया 
कि उसी पर कर बैठे 
पूरा भरोसा!

फिर आत्मरक्षा में कहा-
और विकल्प ही क्या था?
और यह सच था कि कोई और 
सूरत नहीं रह गई थी
किंतु दु:खद कि इतने भर से
मरने से मुकर गए 
अकारण के दु:ख! 

दुविधा ये थी कि 
एक सीध वाले समीकरणों को 
सत्यों की तरह स्वीकार 
कर लिया जाता

जबकि अधिक से अधिक
वो इतना ही बतलाते थे कि
वरीयता का क्रम क्या है!

और ये कि 
क्या क्या बचाने के लिए 
मुफ़ीद रहेगा नष्ट कर देना 
क्या कुछ और!

तुम या मैं...

क्यों, क्यों नहीं सत्य कह सकते हैं।
जबकि झूठ सजा सँवार कर कहा।
क्या पहले नहीं बताया कि छला गया है कई बार अब और नहीं, बस! 

और अब... 
घटनाक्रम और मैं स्वांग करने के लिए लाचार हूँ ।

क्यों, क्या सिर्फ इसलिए कि देखते हैं सब ?

तुम्हारी चाहत

अलख

थोड़ा थोड़ा करके,
सचमुच मैंने पूरा खो दिया है तुम्हें,
जिद्दी हो तुम,
पछतावा है मुझे तुम्हें खोते देखकर भी...
कुछ कर न पायी! 
आँखे सूनी हैं मेरी, 
जिन्हें नहीं भर सकती असंख्य तारों की रोशनी भी।
और न ही है कोई हवा मौजूद इस दुनिया में।
जो महसूस कर सके उपस्थिति तुम्हारी।
एक भार जो दबाए रखती थी
हर पल प्रेम के आवेश को,
उठ गया है, तुम्हारे न रहने से।
अब कितना हल्का महसूस करती हूँ मैं
तिनके की तरह
पानी में बहते हुए।
और फिर रूप बदल कर तुम्हारा आना
शांत झील में पत्थर मार दिया हो जैसे ।।।

An old writing...
Written in 2009

Saturday, 24 June 2023

पीठ जलाता सूर्य

पीठ पर प्रखर सूर्य से लंबवत बढ़ती परछाई... 

मैं नाप चुकी गांव, शहर, मैदान, सागर और आकाशगंगाओं के व्रहदतम आकार ।

 युगों से घोर कृष्ण पक्ष,

अवतरित पीठ जलाता.!!! 
सूर्य भूल चुका पश्चिम अवहोरण ।
 लौटकर अवश्य .. 
अपने अंतिम व्रत पर करेगा पूर्ण ग्रहण ! 

सूर्य निगल लेगा तुम्हें।। 

और अतंत तुम्हारे ताप के लंबवत अवरोध से बढ़ती परछाई मेरी।.   ...... "तनु"

Friday, 19 May 2023

फसल

प्रेम कहने से नहीं हुआ कभी प्रेम जताने से भी नहीं जताया जा सका कभी।

प्रेम को आँका नहीं जा सका सारे समीकरण विश्लेषण अंततः प्रेम के आगे घुटने टेक देते है।

प्रेम नहीं होती दिमाग की उपज, प्रेम होती है दिल की फसल। जिसे काट कर आप उगाही नहीं कर सकते।

ये फलती फूलती है, खर पतवार की तरह बिना, अपना आगा पीछा सोचे, तब तुम चाहो इसे वश में करना ।

तो सुनो,

प्रेम तुम्हें दुःख ही देगा! प्रेम को बहने दो, प्रेम को उड़ने दो, प्रेम को जाने दो, रुका हुआ जल, थमी हुई पवन, दुखदाई है!

जाने दो मत बाँधो !!! "तनु" 

Thursday, 18 May 2023

भव बंधन

सुनो, मैं हूँ , 
मैं तब तक मैं हूँ , 

जब तक हूँ ! 
जन्म/काल/भव/बंधन के पार की मैं, 
इस बार  "हूँ" 
समूची सम्पूर्ण 
सारी संवेदनाएं अबकी बार मैं 
पहचानना /बोलना /समझना /सीखना, जानती हूँ! 
मैं पहचान सकती हूँ, सबसे सुन्दर रंग , 
मुझे पता है स्पर्श का फर्क, 
मैं सुबह को जानती हूँ ! 
बंसत के दिनों की सबसे खूबसूरत साँझ सुनो 
अगर खोज सको तो खोज कर मिल लो मुझसे, 
सब कुछ जो अकारण व्यर्थ हो जाएगा 
मैं अगले जन्म का वादा तो नहीं करती!!! 
                                        " तनु "

Sunday, 14 May 2023

बर्फ़ के लोग

अक्सर
जैसे जैसे दिन ढ़लने लगता है, मन भारी सा होने लगता है।

जब क्लास सेकंड का रिजल्ट आया और बच्ची थर्ड में गयी तो पिता खुश हो गए और घूमने के लिए अपनी  बहन के साथ भेजने का निर्णय कि छुट्टियों में दो महीने के लिए घर से दूर घरवालों के बिना शिमला रहना पड़ा था तब उसने बचपन में पहली बार ऐसा भारीपन महसूस किया था।

वो दो महीने आज बयालीस साल बाद भी उसे नहीं भूलते। 

अंग्रेजो के जमाने की अनेक मंजिला विशाल कोठी में अलग अलग हिस्से में कई परिवार रहते थे।
सबकी पंजाबी भाषा की आवाज़ें आती थी।
क्या पका है?
खाना बन गया क्या?
आज लक्कड़ बाजार तक जाना है।
किसी को नीले इंजन और डिब्बे वाली रेलगाड़ी पकड़नी है।
सुनते रहने को बहुत कुछ लेकिन बोलने के लिए कुछ नहीं और वैसे भी कोई सुनने वाला भी नहीं।
कहा क्या जाता है ये भी पता नहीं!
जैसे तो बच्चों को बोलना नहीं होता है।
सब उम्र में बड़े।
हक ही नहीं बोलने का।

दिनचर्या में हर रोज सुबह चुपचाप उठो, ब्रश करो, ठंडे पानी से हाथ मुँह धोयो या नहाओ तो घंटा डेढ़ घंटा कंपकापा लो।
क्यूँकी ये तो पता था कि पानी गर्म करने वाली रॉड हटा नहीं पायेंगे और बिजली का काला गोल स्विच तो पहुंच से बहुत दूर है। 

फिर चाय के साथ पैकेट से निकली ब्रेड या नाश्ता जो मिले खा लो।
अलग से भूख लगे तो नाश्ता लंच और डिनर के बीच में कुछ नहीं खा सकते चाहे उसने नाश्ता पूरा किया या नहीं।
चाहे लंच खाया गया या नहीं।
चाहे डिनर की रोटियाँ ठंड में अकड़ गयी हों।
उस बर्फ वाले घर का बच्चे के हाथ में चिप्स कभी केला कभी सेब कभी बार्नवीटा वाला दूध होता था। 
हाँ एकबार उस बच्चे से कह कर सबके सामने ही बार्नवीटा की खुशबु ली थी अच्छी लगी थी।
सब खूब हँसे, खुश हो गये।

उसने सबकी ओर देखा उसे पता नहीं चला मजाक था या उसमें क्या मजाक था? 

पिता की समझदार बहन नहीं समझ पाई कि इसे भी देना चाहिए।
सीधे लोग होते हैं न।

बड़े होकर बाद में सीधेपन से ही सुना था अरे तो इसे कहना चाहिए था न।

पिता ने तो बिटिया के लिए चलते समय नोट की गड्डी दी थी उन्हें, ये देखा था उसकी छोटी आँखों ने, जब पिता ने बिटिया का हाथ सौंपा था कि इसको इस छुट्टी अपने घर घुमा लाओ और अच्छे अच्छे दो तीन जोड़ी कपड़े ले भी लेना इसके। 

फिर वहाँ 
बाक़ी समय सब काम में व्यस्त।
कहीं घूमना नहीं कोई पड़ोसी कहते अरे लाओ इसे भी साथ घुमा लाते हैं तो नजरों से ही मना करने के लिए कह दिया जाता।
सीख लिया ये भी कि उधर देखना और तुरंत सिर हिला कर मना कर देना।

रोज सुबह से ही घर में कोई अंदर जा रहा कोई बाहर जा रहा।
मूकदर्शक देखते हुए कुछ समझ में आ जाए तो दुबले पतले हाथों से कुछ काम करने के लिए कोशिश की ।

पर सही तो होगा नहीं तो झिड़की खा कर वापस बालकनी में बिना आत्मा के शरीर लिए लटक जाओ।

हर दिन सुबह से शाम तक दो महीने तक।
बर्फ या जंगल को घूरते रहो। 
सबकी बालकनी टूटी कंडी (टूटी कंडी जगह का नाम, वहां चिड़ियाघर होता था) को जाने वाले रास्ते की ओर खुलती थी।
टूटी कंडी का रास्ता बहुत दूर नीचे था।
देवदार के बड़े बड़े वृक्षों से आँखे जमाती हुई खोजती सी बर्फ के ढेर में फिसल जाती थी और अचानक चींटी के बराबर का कोई न कोई इंसान बर्फ भरे रास्ते में दिख जाता था।
मेरी आंखे लगातार उसका पीछा करते रहती थी जब तक वो ओझल न हो जाए।।।
मन अब भी उन्हीं रास्तों पर भटकता है लेकिन कोई भी तो अपना नहीं दिखता।

बच्चों को रिश्तेदारों के घर मत भेजा करो।
कैसे भी।
चाहे बच्चा जिद करे या आपको लगता है कि वहां पढाई करने भेज दो या कुछ भी कारण हो।
जीते जी बिना किसी खास परिस्थितियों के बच्चों को दूर नहीं करना चाहिए।
एक बार चिठ्ठी में दो लाईन लिखने के लिए चिठ्ठी दी गयी, उसने लगभग सौ बार लिख दिया जल्दी आओ जल्दी आओ और चिठ्ठी बंद कर दे दी।
उन्होंने पढ़ने के लिए चिठ्ठी की तह खोली और खोलते ही बरस गये, क्यों हम तुझे खाना नहीं दे रहे हैं तुझ पर अत्याचार कर रहे हैं।
उसे समझ में नहीं आया कि क्या हुआ क्यों डांट रहे हैं।
उसने तो बार बार सिर्फ आने के लिए लिखा था ताकि अब जल्दी आ जाएंगे। 

तब से मन भारी हो जाता है।
दो में पढ़ने वाले बच्चे के मन में हमेशा के लिए ये नया अहसास घर कर गया।

एक बार मदर्स डे पर वही फिलिंग।

और अब तो उसकी, अपनों की यादों के बीच उनके बिना अक्सर शामें उदास होती है।

जब जब मन उदास होता है तो उस फिलिंग के जन्म का समय जरूर याद आता है।

"तनु "

Saturday, 25 February 2023

लंबी यात्राएं

वे
--
वे जो लम्बी यात्राओं से
थककर चूर हैं उनसे कहो
कि सो जाएं और सपने देखें 
वे जो अभी-अभी 
निकलने का मंसूबा ही
बांध रहे हैं
उनसे कहो कि 
तुरंत निकल पडें
वे जो बंजर भूमि को
उपजाऊ बना रहे हैं 
उनसे कहो कि
अपनी खुरदरी हथेलियाँ 
छिपाएं नहीं 
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में
कुछ नहीं है ।

पतझड़

"काल चक्र" 

पतझड़ में घास... 
पतझड़ में एक पत्ते से घास ने कहा,
तुम नीचे गिरते हो तो कितना शोर मचाते हो! 
            मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हो! 
पत्ता क्रोधित होकर बोला, 
                  "बदजात माटी मिली" 
                    बेसुरी, क्षुद्र कहीं की, 
         तू ऊँची हवाओं में नहीं रहती, 
    तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने, 
फिर पत्ता, वह पतझड़ का वह पत्ता,
        जमीन पर गिरा और सो गया! 
           जब बसंत आया वह जागा, 
और.. 
तब वह घास की पात था! 
फिर पतझड़ आया और शिशिर की नींद से, 
                       उसकी पलकें भरी हुई थी, 
ऊपर से हवा में से पत्तों की बौछार हो रही थी! 
           वह बुदबुदायी, 
उफ, ये पतझड़ के पत्ते,कितना शोर करते हैं, 
           मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हैं!!!

Saturday, 11 February 2023

#सकारात्मक/#नकारात्मक

#सकारात्मक/#नकारात्मक

मेरे लफ्ज़ फ़ीके पड़ गए तेरी एक अदा के सामने,
मैं तुझे ख़ुदा कह गया अपने ख़ुदा के सामने! 

आज Promise day है।
क्या आज आप promise कर सकते हैं कि किसी का भी मन नहीं दुखाओगे।।। 
अपनी माँ, पत्नी, बहन, भाई, पिता, बच्चों या साथियों का अपमान नहीं करोगे।

जो बात आप चीखकर कुढ़कर कहते हो उसे प्यार से न सही लेकिन आराम से तो कह सकते हैं न।

आप जानते हैं कि अगर आप चीखकर बात करते हैं तो इससे सामने वाले पर आपकी निगेटिव एनर्जी ट्रांसफर हो जाती है आप तो उस जगह से चले जाएंगे किंतु अब सुनने वाले ने भी वो कहीं न कहीं झोंकनी है।

माना कि एक पति ने अपनी पत्नी को डांट दिया और उसके बाद उनका बच्चा आकर माँ से बात करना चाहता है तो अपने खराब मूड की वजह से माँ भी बच्चे को झिड़क देगी कि जा यहाँ से अभी मुझे परेशान मत कर।
बच्चे को वजह तो पता नहीं लेकिन उसका बालमन दुखी हो जाएगा उसे बुरा लगेगा कि मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है।
वो स्कूल चला जाएगा या फिर खेलने के लिए।
स्कूल में वो अपने खराब मूड की वजह से सहपाठियों से या तो बात नहीं करेगा या किसी बात को लेकर झगड़ा करेगा क्योंकि यही तो उसने देखा है, माँ बाप दोनों झगड़ते हैं दोनों चीखते हैं तो बच्चे को ये एक आमतौर पर अपनाया जाने वाला व्यवहार लगेगा और अपने दैनिक जीवन में उसे आत्मसात कर लेगा।
यही बात लागू होती है स्त्रियों पर,
अपनी किसी बात के लिए आप परेशान हो और अपनी किसी बात को कह नहीं पा रहे हैं क्योंकि आपको पता है कोई मेरी सुनता ही नहीं है तो आप अपनी उस बात को तो कहोगे नहीं लेकिन कहीं न कहीं अपनी झल्लाहट निकाल दोगे और पति को कुछ उल्टा जवाब दे दिया, अब आपकी झल्लाहट ट्रांसफर हो गई आपके पति पर।
वो साहब घर से गाड़ी तक बुरा सा मुँह बना कर गये तो हो सकता है कि रास्ते में ट्रैफिक की समस्या से उनका पारा जल्दी चढ़ेगा और वो कहीं पर अपना एक्सीडेंट करा लें या किसी से झगड़ लें।
या फिर सुरक्षित अपने काम की जगह पहुँच भी जाएं तब भी कुछ न कुछ सोच रहे होंगे और कुछ विपरीत परिस्थितियों में हो हल्ला या सामने वाले को डाँट सकते हैं या फिर अपने बाॅस के कुछ भी काम बताने के कारण उनका मूड खराब हो सकता है।
क्योंकि हो सकता है कि सुबह बाॅस भी किसी निगेटिव एनर्जी का शिकार हुए हो।
तो अब ये सारा मामला निगेटिव एप्रोच का है।
#सकारात्मक_एप्रोच

अब अगर अपनी सही बात पत्नी अपने पति से कह पाती कि मुझे फला फला परेशानी है या फिर इस काम को ऐसे करते हैं (आप अपने हिसाब से परिस्थिति का आंकलन कर सकते हैं।) पत्नी को विश्वास होना चाहिए कि पति 
उनकी बात पर जरूर गौर करेंगे अपनी बात को लेकर अच्छे से समझाएं, दोनों मिलकर उस समस्या या बात का सकारात्मक या नकारात्मक पहलू समझे फिर उसको किर्यान्वित कर सकते हैं।

हाँ वो स्थिति अलग है कि जब कोई समझना ही न चाहे।
अब आप सकते हैं कि आपके बात करने और बोलने का क्या प्रभाव हो सकता है ?

आपको क्या करना चाहिए? 
कोई भी विषय या परिस्थिति के लिए धैर्य आपका व्यवहार पूरी तरह से जिम्मेदार होता है।
आप किसी को जज मत कीजिए इंसान की परिस्थिति या बात को समझिये फिर आंकलन कीजिए कि आपको उनके साथ मेलजोल रखना चाहिए या नहीं? 
हो सकता है कि आप अपनी जगह सही है और सामने वाले का व्यवहार अनुचित है तो आप उनको उनके हाल पर छोड़ दीजिए क्योंकि आपको अपने मूड को खराब नहीं करना चाहिए उससे आपको आगे परेशानी हो सकती है।
आपको और भी कई ज्यादा जरूरी काम करने हैं। 
और हर बार किसी भी समस्या का समाधान दो बार सोच कर करें।
उत्साहित होना और आत्मविश्वासी होना बहुत अच्छा है लेकिन अति उत्साह या अति आत्मविश्वास घातक हो सकता है।
क्योंकि सामने वाले का अपना दिमाग है और जरूरी नहीं कि वो आपकी बातों से उसी वक्त सहमत हो जाए।

आप अपनी बात आराम और धैर्य से रखिए क्योंकि एक्शन का रिएक्शन जरूर होता है आपने अपना धैर्य खोया तो सामने वाले को भी उस स्तर पर आने में सेंकेंड नहीं लगेगा।

कम ही लोग होते हैं जो आपकी बात को समझे क्योंकि उन्होंने कभी आपके जैसा सोचा नहीं होगा।

माना कि ये जानते हुए भी मेरा ऐसा कहना गलत है कि कोई मुझे भी कहे तो मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा फिर भी हम उनसे वो बात कह देते हैं और सामने वाला आपकी बात को लेकर परेशान नहीं होता है या आपसे कभी कोई शिकायत नहीं करता है तो समझिए कि उसके अंदर कितना धैर्य है वो परिस्थितियों से कितना लडा़ हुआ है और उसे आपकी मनोदशा का अंदाजा है।
चाहे आप अपने को कितना भी होशियार समझे लेकिन ज्यादा समझदार वो है।

कभी भी किसी को कम मत आकिएं और न ही कभी खुद को ज्यादा समझदार।
हो सकता है कि सामने वाला कुछ न कहे लेकिन आपकी मानसिकता को समझ रहा है।
क्योंकि जब आप किसी का अपमान कर रहे होते हैं तो अपने सम्मान को खो रहे होते हैं। 
आज और अभी से अपने बातचीत में अपने व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश के लिए आप सभी को साधुवाद !

"Tanuisms"

Friday, 20 January 2023

पीड़ा

अभी अभी
__________

सपाट दीवार पर
नक्काशीदार फ्रेम से
माला पहन मुस्कुराकर 
बाहर झाँकते लोग
कभी नहीं बता पाते अपने यूं 
तस्वीर हो जाने का कारण !
वे नहीं बता पाते जीवन से मृत्यु तक के 
सफर की वे सारी दुश्वारियाँ और अड़चनें, 
जो जीवन के दोराहों , चौराहों ,पगडंडियों ,
लाल बत्तियों और स्पीड ब्रेकरों पर उनसे दोचार हुई थी !
वे नहीं बता पाते कि उम्रभर 
पाई-पाई जोड़कर सहेजे संभाले घर से 
अपने अंतिम सफर को निकलते 
उस ऊबड़ खाबड़ काठ की शैया पर लेटे
चुभी थी उनकी पीठ में कोई कील ,
काँधे बदलते लगे थे कितने हिचकोले,
वे नहीं बता पाते अग्नि का वो ताप 
जिसने चंद मिनटों में राख कर 
मिला दिया था उन्हे उनकी बिछड़ी मिट्टी से!
उनकी यह मुस्कुराहट मौन संकेत है इस सत्य का
कि अपनी बिछड़ी मिट्टी से मिलने का 
यह सफर बताने का नहीं 
अपितु मृत्यु को जीकर उसे स्वयं में 
आत्मसात करने का होता है!