सुनो, मैं हूँ ,
मैं तब तक मैं हूँ ,
जब तक हूँ !
जन्म/काल/भव/बंधन के पार की मैं,
इस बार "हूँ"
समूची सम्पूर्ण
सारी संवेदनाएं अबकी बार मैं
पहचानना /बोलना /समझना /सीखना, जानती हूँ!
मैं पहचान सकती हूँ, सबसे सुन्दर रंग ,
मुझे पता है स्पर्श का फर्क,
मैं सुबह को जानती हूँ !
बंसत के दिनों की सबसे खूबसूरत साँझ सुनो
अगर खोज सको तो खोज कर मिल लो मुझसे,
सब कुछ जो अकारण व्यर्थ हो जाएगा
मैं अगले जन्म का वादा तो नहीं करती!!!
No comments:
Post a Comment