"काल चक्र"
पतझड़ में घास...
पतझड़ में एक पत्ते से घास ने कहा,
तुम नीचे गिरते हो तो कितना शोर मचाते हो!
मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हो!
पत्ता क्रोधित होकर बोला,
"बदजात माटी मिली"
बेसुरी, क्षुद्र कहीं की,
तू ऊँची हवाओं में नहीं रहती,
तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने,
फिर पत्ता, वह पतझड़ का वह पत्ता,
जमीन पर गिरा और सो गया!
जब बसंत आया वह जागा,
और..
तब वह घास की पात था!
फिर पतझड़ आया और शिशिर की नींद से,
उसकी पलकें भरी हुई थी,
ऊपर से हवा में से पत्तों की बौछार हो रही थी!
वह बुदबुदायी,
उफ, ये पतझड़ के पत्ते,कितना शोर करते हैं,
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