Adhyayan

Saturday, 29 July 2023

क्षितिज

क्षितीज का छोर

उस गरजते समुद्र पर
लौटती लहरों का ठंडापन
विहंगम सा पट जो खुला है
           अंतिम क्षितिज तक
बेचैन मन का कोई कोना
स्थिर करता है
मैं आत्महत्यों तक वहाँ पहुँचती हूँ
विषाद के विचलित दिन लिए
                    उद्विग्नता के पल
हिलोरे सागर पर वाष्प से हो चले हैं
विलुप्त, विस्मृत यह आकर्षण है...
                        मौन आकर्षण
तिर जाती है आत्महत्या स्वयं ही,
मगर यह आनंद नहीं शून्य सा है
जिसमें नीरवता है, रिक्तता है।
                   प्रेरणा है वैराग्य सी,
जिसके विपरीत प्रभाव से पुनः पुनः
लौट पड़ता है जीवन पीछे
भर जाता है एक और आत्महत्या
तिरोहित होने की एक और
                       साधना उस तक
जो गरजता है दिगंत तक,
क्षितिज के एक छोर से दूसरे छोर तक

1 comment: