पीठ पर प्रखर सूर्य से लंबवत बढ़ती परछाई...
मैं नाप चुकी गांव, शहर, मैदान, सागर और आकाशगंगाओं के व्रहदतम आकार ।
युगों से घोर कृष्ण पक्ष,
अवतरित पीठ जलाता.!!!
सूर्य भूल चुका पश्चिम अवहोरण ।
लौटकर अवश्य ..
अपने अंतिम व्रत पर करेगा पूर्ण ग्रहण !
सूर्य निगल लेगा तुम्हें।।
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