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Thursday, 8 December 2022
त्याग /आनन्द
Saturday, 26 November 2022
एप्लीकेशन
कुछ कड़वा भूलने के लिए कुछ यादों को ताजा करना जरूरी है।।।
कुछ बचपन की बातें याद करना सही है।
हालांकि, हल्की सी हँसी आ गयी जिससे मैं खुद भी घबरा जा रही हूँ।
संस्मरण
कालेज में हमारा एक सब्जेक्ट का पीरियड साढ़े तीन बजे होता था और बाकी सभी क्लासेज दिन में साढ़े बारह से एक बजे तक निपट जाते थे।
खाली समय हमें यूँ ही दाएँ बाएं बैठकर गुजारने होते थे।
मेरे लिए दिन के वो दो ढाई घंटे बहुत अझेल हो जाते थे।
क्योंकि तब भी ज़्यादा लोगों से पहचान बढ़ाने की आदत नहीं थी और लगता था कि घर चल दो।
घर में डैडी जी के बिजनेस रिलेटेड कई किस्म के रजिस्टर मेंटेन करने होते थे तो लगता है कि बेकार कालेज में देर हो रही है और काम पूरा नहीं होगा तो डैडी की डाँट पड़ेगी।
एडमिशन के एक डेढ़ महीने बाद जब हम सभी मित्र बैठे हुए थे तो मैंने कहा कि यार इतनी देर फिजूल में बैठना मुश्किल हो जाता है।
इसी में लड़के लडकियों ने हाँ हाँ कहा और इसी बात को सभी ने अपने-अपने वर्जन में रिपिट किया और घर की कुछ न कुछ मज़बूरी भी बताई जैसा कि अमूमन होता है।
एक बार को बार बार कहना।
खैर...
मैंने कहा कि क्या ये बदला नहीं जा सकता है?
अच्छा सुनो एक एप्लीकेशन लिखते हैं और प्रिसिंपल सर को दे देते हैं।
फिर विचार विमर्श किया कि एक एप्लीकेशन लिखी जाए और सभी छात्र जो सहमत हैं इस पर साईन कर देते हैं और प्रिसिंपल सर को देकर आते हैं।
फिर आई बारी लिखने की, सभी ने कहा तुम लिखो राउटिंग सही आएगी।
मैंने भी मन ही मन सोचा कि हाँ बचपन में तुमने मेरे डैडी जी और Kusum Bisht Ma'am के हाथों मार खाई होती तो तुम्हारी भी राइटिंग सही होती।
एक ही शब्द कई कई बार लिखाए जाते थे!
फिर एक रजिस्टर के बीच के पेज पर समय बदलाव के लिए एप्लीकेशन लिखी।
ताकि सभी के साईन कराये जा सके।
तीस चालीस छात्र छात्राओं के साईन के बाद भी कुछ छात्र बच गये थे कि अचानक आखिरी क्लास की घंटी बजी और हम क्लास में जाने के लिए चल पड़े।
फिर मेरे साथियों ने कहा कि जो जिन छात्रों के साईन नहीं हुए हैं वो क्लास में आ रहे हैं और तू उनसे साईन करा ले।
ओह हाँ, सही कहा ।
क्लास में पहुंच कर इधर उधर देख कर मैंने पर्चा निकाला और सामने पहचान के एक स्मार्ट से लड़के की ओर ये सोचते हुए बढ़ा दिया कि ये तो कालेज इलैक्शन की तैयारी कर रहा था और जीत पक्की थी, लिहाजा बाकी लड़कों से ही साईन करा लेगा।
हालांकि सब बारहवीं पास करके आए थे लेकिन पहचान न होने से कुछ अटपटा ही लगता है।
पहचान बढ़ाने की कोई जरूरत भी महसूस नहीं होती थी।
कागज देखने के बाद उस लड़के ने फटाफट एप्लीकेशन पकड़ी और फोल्ड करके अपनी जेब के हवाले कर दी।
अब मुझे समझ में नहीं आया कि वो साईन क्यों नहीं कर रहा है।
हम दो तीन लड़कियों ने आपस में एक दूसरे की ओर देखा तो सभी क्वैशचन मार्क वाली स्थिति में आ गये।
कि शायद क्लास के बाद साईन करा लेगा।
क्योंकि तभी अचानक हमारे प्रोफेसर साहब आ गये।
अनर्गल बकते हुए बोले अरे छोकरियों नैन मटक्का मत करो।
बाहर क्यों झांक रहे हो पढाई करो।
नोट - (कई पूर्व छात्र-छात्राएं समझ जाएंगे कि कौन से सर ऐसा बोलते थे )
सभी नये बच्चों के लिए उनका इस तरह से बोलना एक किस्म की प्रताड़ना दे जाता था और दो चार उजड्ड लड़के नीचे सिर करके खीं-खीं कर हँसते थे, तब लगता था कि ये पक्का किसी गाँव खेड़े के लड़के होंगे )
बाद में मैंने अपनी फ्रेंड से कहा, अब तू ही कागज मांग, उसने तो जेब में रख लिया!
तू माँग ला मैं प्रिन्सिपल सर को दे आऊंगी!
उसने चटपट बोला, हाँ चल अच्छा है मुझे ऑफिस जाने का मन नहीं था, डर लगता है, मैं इससे applications ले लेती हूँ, वो आसान है !
अब जब क्लास खत्म होने के बाद वो application मांगने गई और उसको कहा कि वो लैटर दे दो, जो अभी तुम्हें तनु ने दिया था!
वो आवक सा रहा और मुझे ढूँढने लगा!
मैं क्लास से निकल कर कॉरिडोर में अपनी दोस्त का इंतजार कर रही थी।
लेकिन बाहर आवाज आ रही थी।
Friend ने दुबारा कहा कि इधर उधर क्या देख रहे हो, जल्दी दो, प्रिन्सिपल सर निकल जाएंगे, कागज उनको देना है!
अब वो सकपका कर दौड़ा।
दौड़ाते हुए उसने कॉरिडोर में मुझे देखा तो मेरे सामने रूक गया, जैसे ही मैंने उसको देखा तो मैंने ये भी देखा कि हमारी सखी भी लगभग दौड़ लगाते हुए उसके पीछे पीछे आ रही है।
मैं लड़के की ओर अनदेखा करते हुए अपनी फ्रेंड से बोली क्या हुआ?
तो वो एकदम से बोला ये वो लैटर माँग रही है जो आपने मुझे दिया।
मैंने कहा - हाँ तो....
दे दो न वो आगे देना है।
क्यों.... वो बोला क्या है वो ?
मैने कहा हद है पढ़ा नहीं अभी तक ?
बाकी का काम तो क्या ही कराया होगा,
आप ऐसे इलैक्शन लड़ेंगे ?
जबकि ये काम आपने करना चाहिए।
वो बोला, मैंने सोचा घर जाकर देखूँगा।
मैं हल्की सी आवाज़ में लगभग चीख ही पड़ी अरे यार....
क्यों अभी साईन कर दो न।
वो प्रिसिंपल को देना है।
वो बोला - साईन क्यों?
प्रिसिंपल... मतलब?
मैं - क्यों का क्या मतलब, क्लास का समय चेंज कराना है या नहीं?
अब उसकी समझ में आया उसने आव देखा न ताव, कागज़ जेब से निकाल कर सरसरी नजर मारी और तेजी से हाथों में लगभग पटक कर चल दिया कि काग़ज़ हाथों से गिर गया ।
अब हम दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा तो समझ में नहीं आया कि....
ये पागल है क्या?
ये क्या बात हुई , ये एप्लीकेशन फेंक कर क्यों चला गया ?
इसको क्लास नहीं बदलनी है क्या?
खैर मैंने एप्लीकेशन उठाई और हम दोनों लोग आफिस की ओर चल पड़े।
वैसे मैं कालेज में सिर्फ एक साल ही पढ़ पाई थी।
बाकी की पढ़ाई बाहर रहते हुए करी।
पता होता तो बैकार में इतनी मेहनत नहीं करती।
बाद में जब हम दोस्तों को उसके काग़ज़ पटकने का कारण समझ आया तो बहुत हँसी भी आई और बहुत प्यार भी।
अब उम्र हो चली है न।
कुछ बातें बहुत आसान होती हैं जिन्हें जबरदस्ती काम्पलीकेटेड बना दिया जाता है!
सभी फ्रेंड्स फ्रेडलिस्ट में है ।।।