Adhyayan

Friday, 23 December 2022

प्रतिज्ञा

ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा ख़ुद को
चाँद चमकता है रोशनाई की तरह आवारा पानी पर
दिन एक-से भागते हैं एक-दूजे का पीछा कर

बर्फ़ पसर जाती है नाचते चित्रों जैसे
पश्चिम से फिसल आते हैं समुद्री पंछी
कभी-कभी एक जहाज़ । ऊँचे-ऊँचे तारे ।
एक स्याही को पार करता जहाज़
आह ! अकेला ।

अकसर मैं उठ जाता हूँ पौ फटते ही और मेरी आत्मा गीली होती है
दूर सागर ध्वनित-प्रतिध्वनित होता है
अपने बंदरगाह पर ।

ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
ऐसी करता हूँ प्रीत और क्षितिज छिपा लेता है तुम्हें शून्य में
इन सब सर्द चीज़ों में रहते करता हूँ तुमसे अब भी प्रेम
अकसर मेरे चुम्बन उन भारी पोतों पर लद जाते हैं
जो समुद्र को पार करने चल पड़े हैं, बिना आगमन की संभावना के
और मैं पुराने लंगर-सा विस्मृत पड़ा रहता हूँ

घाट हो जाते हैं उदास जब दोपहर बँध जाती है आकर
मेरा क्षुधातुर जीवन निरुद्देश्य क्लांत है
मैंने प्यार किया, जिसे कभी पाया नहीं ।
तुम बहुत दूर हो
मेरी जुगुप्सा लड़ती है मंथर संध्या से
और निशा आती है गाते हुए मेरे लिए

चाँद यंत्रवत अपना स्वप्न पलटता है
और तुम्हारी आँखों से सबसे बड़ा सितारा टकटकी लगाए देखता है मुझे
और क्योंकि मैं करता हूँ तुमसे प्रीत
हवाओं में चीड़ तुम्हारा नाम गुनगुनाते हैं
अपने पत्तों की तंत्री छेड़ते ।

पाब्लो नेरुदा

अनुवाद

Thursday, 8 December 2022

त्याग /आनन्द

उत्सव मेरे जीवन जीने के ढंग की बुनियाद है--त्याग नहीं, आनंद। 
आनंद सभी सुंदरताओं में, सभी उल्लास में, वो सब जो कुछ जीवन लाता है, क्योंकि यह सारा जीवन परमात्मा का उपहार है। 
मेरे लिए जीवन और परमात्मा पर्यायवाची है।

सच तो यह है कि जीवन ‘परमात्मा’ से अधिक अच्छा शब्द है। 
परमात्मा दार्शनिक शब्द है जबकि जीवन वास्तविक है, अस्तित्वगत है। 
‘परमात्मा’ शब्द सिर्फ शास्त्रों में होता है। यह मात्र शब्द है, निरा शब्द है। 
जीवन तुम्हारे भीतर है और बाहर है--वृक्षों में, बादलों में, तारों में। 
यह सारा अस्तित्व जीवन का नृत्य है । 

जीवन को प्रेम करो।

अपने जीवन को संपूर्णता से जिओ, जीवन के द्वारा दिव्य से मदमस्त हो जाओ।

मैं जीवन के बहुत गहन प्रेम में हूं, इसी कारण मैं उत्सव सिखाती हूं।
हर चीज का उत्सव मनाया जाना चाहिए; हर चीज को जिया जाना चाहिए, 
प्रेम किया जाना चाहिए।

मेरे लिए कुछ भी लौकिक नहीं है और कुछ भी पारलौकिक नहीं है।
सब कुछ पारलौकिक है, सीढ़ी की सबसे निचली पायदान से सबसे ऊपर की पायदान तक। 
यह एक ही सीढ़ी है : 
शरीर से लेकर आत्मा तक, शारीरिक से आध्यात्मिक तक, सब कुछ दिव्य है।  "तनु"

Saturday, 26 November 2022

एप्लीकेशन

कुछ कड़वा भूलने के लिए कुछ यादों को ताजा करना जरूरी है।।।
कुछ बचपन की बातें याद करना सही है।
हालांकि, हल्की सी हँसी आ गयी जिससे मैं खुद भी घबरा जा रही हूँ।

संस्मरण

कालेज में हमारा एक सब्जेक्ट का पीरियड साढ़े तीन बजे होता था और बाकी सभी क्लासेज दिन में साढ़े बारह से एक बजे तक निपट जाते थे।

खाली समय हमें यूँ ही दाएँ बाएं बैठकर गुजारने होते थे।

मेरे लिए दिन के वो दो ढाई घंटे बहुत अझेल हो जाते थे।
क्योंकि तब भी ज़्यादा लोगों से पहचान बढ़ाने की आदत नहीं थी और लगता था कि घर चल दो।
घर में डैडी जी के बिजनेस रिलेटेड कई किस्म के रजिस्टर मेंटेन करने होते थे तो लगता है कि बेकार कालेज में देर हो रही है और काम पूरा नहीं होगा तो डैडी की डाँट पड़ेगी।

एडमिशन के एक डेढ़ महीने बाद जब हम सभी मित्र बैठे हुए थे तो मैंने कहा कि यार इतनी देर फिजूल में बैठना मुश्किल हो जाता है।
इसी में लड़के लडकियों ने हाँ हाँ कहा और इसी बात को सभी ने अपने-अपने वर्जन में रिपिट किया और घर की कुछ न कुछ मज़बूरी भी बताई जैसा कि अमूमन होता है।
एक बार को बार बार कहना।

खैर...
मैंने कहा कि क्या ये बदला नहीं जा सकता है?

अच्छा सुनो एक एप्लीकेशन लिखते हैं और प्रिसिंपल सर को दे देते हैं।
फिर विचार विमर्श किया कि एक एप्लीकेशन लिखी जाए और सभी छात्र जो सहमत हैं इस पर साईन कर देते हैं और प्रिसिंपल सर को देकर आते हैं।

फिर आई बारी लिखने की, सभी ने कहा तुम लिखो राउटिंग सही आएगी।

मैंने भी मन ही मन सोचा कि हाँ बचपन में तुमने मेरे डैडी जी और Kusum Bisht Ma'am के हाथों मार खाई होती तो तुम्हारी भी राइटिंग सही होती।
एक ही शब्द कई कई बार लिखाए जाते थे!

फिर एक रजिस्टर के बीच के पेज पर समय बदलाव के लिए एप्लीकेशन लिखी।
ताकि सभी के साईन कराये जा सके।

तीस चालीस छात्र छात्राओं के साईन के बाद भी कुछ छात्र बच गये थे कि अचानक आखिरी क्लास की घंटी बजी और हम क्लास में जाने के लिए चल पड़े।

फिर मेरे साथियों ने कहा कि जो जिन छात्रों के साईन नहीं हुए हैं वो क्लास में आ रहे हैं और तू उनसे साईन करा ले।

ओह हाँ, सही कहा ।
क्लास में पहुंच कर इधर उधर देख कर मैंने पर्चा निकाला और सामने पहचान के एक स्मार्ट से लड़के की ओर ये सोचते हुए बढ़ा दिया कि ये तो कालेज इलैक्शन की तैयारी कर रहा था और जीत पक्की थी, लिहाजा बाकी लड़कों से ही साईन करा लेगा।

हालांकि सब बारहवीं पास करके आए थे लेकिन पहचान न होने से कुछ अटपटा ही लगता है।
पहचान बढ़ाने की कोई जरूरत भी महसूस नहीं होती थी।

कागज देखने के बाद उस लड़के ने फटाफट एप्लीकेशन पकड़ी और फोल्ड करके अपनी जेब के हवाले कर दी।

अब मुझे समझ में नहीं आया कि वो साईन क्यों नहीं कर रहा है।
हम दो तीन लड़कियों ने आपस में एक दूसरे की ओर देखा तो सभी क्वैशचन मार्क वाली स्थिति में आ गये।
कि शायद क्लास के बाद साईन करा लेगा।
क्योंकि तभी अचानक हमारे प्रोफेसर साहब आ गये।
अनर्गल बकते हुए बोले अरे छोकरियों नैन मटक्का मत करो।
बाहर क्यों झांक रहे हो पढाई करो।

नोट - (कई पूर्व छात्र-छात्राएं समझ जाएंगे कि कौन से सर ऐसा बोलते थे )

सभी नये बच्चों के लिए उनका इस तरह से बोलना एक किस्म की प्रताड़ना दे जाता था और दो चार उजड्ड लड़के नीचे सिर करके खीं-खीं कर हँसते थे, तब लगता था कि ये पक्का किसी गाँव खेड़े के लड़के होंगे )

बाद में मैंने अपनी फ्रेंड से कहा, अब तू ही कागज मांग, उसने तो जेब में रख लिया!
तू माँग ला मैं प्रिन्सिपल सर को दे आऊंगी!
उसने चटपट बोला, हाँ चल अच्छा है मुझे ऑफिस जाने का मन नहीं था, डर लगता है, मैं इससे applications ले लेती हूँ, वो आसान है !

अब जब क्लास खत्म होने के बाद वो application मांगने गई और उसको कहा कि वो लैटर दे दो, जो अभी तुम्हें तनु ने दिया था!
वो आवक सा रहा और मुझे ढूँढने लगा!
मैं क्लास से निकल कर कॉरिडोर में अपनी दोस्त का इंतजार कर रही थी।
लेकिन बाहर आवाज आ रही थी।
Friend ने दुबारा कहा कि इधर उधर क्या देख रहे हो, जल्दी दो, प्रिन्सिपल सर निकल जाएंगे, कागज उनको देना है!

अब वो सकपका कर दौड़ा।
दौड़ाते हुए उसने कॉरिडोर में मुझे देखा तो मेरे सामने रूक गया, जैसे ही मैंने उसको देखा तो मैंने ये भी देखा कि हमारी सखी भी लगभग दौड़ लगाते हुए उसके पीछे पीछे आ रही है।
मैं लड़के की ओर अनदेखा करते हुए अपनी फ्रेंड से बोली क्या हुआ?

तो वो एकदम से बोला ये वो लैटर माँग रही है जो आपने मुझे दिया।

मैंने कहा - हाँ तो....
दे दो न वो आगे देना है।

क्यों.... वो बोला क्या है वो ?

मैने कहा हद है पढ़ा नहीं अभी तक ?
बाकी का काम तो क्या ही कराया होगा,
आप ऐसे इलैक्शन लड़ेंगे ?
जबकि ये काम आपने करना चाहिए।

वो बोला, मैंने सोचा घर जाकर देखूँगा।

मैं हल्की सी आवाज़ में लगभग चीख ही पड़ी अरे यार....
क्यों अभी साईन कर दो न।
वो प्रिसिंपल को देना है।

वो बोला - साईन क्यों?
प्रिसिंपल... मतलब?

मैं - क्यों का क्या मतलब, क्लास का समय चेंज कराना है या नहीं?

अब उसकी समझ में आया उसने आव देखा न ताव, कागज़ जेब से निकाल कर सरसरी नजर मारी और तेजी से हाथों में लगभग पटक कर चल दिया कि काग़ज़ हाथों से गिर गया ।

अब हम दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा तो समझ में नहीं आया कि....
ये पागल है क्या?

ये क्या बात हुई , ये एप्लीकेशन फेंक कर क्यों चला गया ?

इसको क्लास नहीं बदलनी है क्या?

खैर मैंने एप्लीकेशन उठाई और हम दोनों लोग आफिस की ओर चल पड़े।

वैसे मैं कालेज में सिर्फ एक साल ही पढ़ पाई थी।
बाकी की पढ़ाई बाहर रहते हुए करी।
पता होता तो बैकार में इतनी मेहनत नहीं करती।

बाद में जब हम दोस्तों को उसके काग़ज़ पटकने का कारण समझ आया तो बहुत हँसी भी आई और बहुत प्यार भी।

अब उम्र हो चली है न।
कुछ बातें बहुत आसान होती हैं जिन्हें जबरदस्ती काम्पलीकेटेड बना दिया जाता है! 

सभी फ्रेंड्स फ्रेडलिस्ट में है ।।।

Monday, 17 October 2022

साया

"तनु " तेरी आँखों में देखती हूँ ख्वाब इस कदर कि, हकीकत की दुनिया अनजानी सी लगती है! 
न आने की आहट न जाने की टोह मिलती है कब आते हो कब जाते हो !
आम का पेड़ हवा में हिलता है तो पत्थरों की दीवार पे परछाई का छीटा पड़ता है और जज़्ब हो जाता है, जैसे सूखी मिटटी पर कोई पानी का कतरा फेंक गया हो !धीरे धीरे आँगन में फिर धूप सिसकती रहती है कब आते हो, कब जाते हो, बंद कमरे में कभी-कभी जब दीये की लौ हिल जाती है तो, तुम्हारा साया मुझको घूँट घूँट पीने लगता है आँखें मुझसे दूर बैठकर मुझको देखती रहती है कब आते हो कब जाते हो "तनु "दिन में कितनी-कितनी बार मुझको - तुम याद आते हो !!!

Sunday, 2 October 2022

मन का डर

क्यों तुझे  डर है कि तू पिघल कर न बन जाए कोई शिला

जाते जाते तुम स्त्री का स्त्रीत्व विचित्र रूप से क्यूँ ले जाते हो,
वो बनना संवारना चाहती है तो उसे अज़ीब लगता है!

तुम चाहे दुनिया से चले जाओ या यूँ ही आगे बढ़ जाओ, स्त्री को एक ठहराव दे जाते हो!

मजबूत हो जाती है वो!
उसका फोन आया , कल जाना है न..
क्या पहना जाए, मेरे पास तो कुछ रहता भी नहीं है न, आप जानते ही हो!

स्वयं जूझते हुए आगे बढ़ गयी तो क्या यहाँ तो हजारों लड़कियां अपनी अंदर की लड़ाई लड़ रही हैं।

कहा कि साड़ी पहन लो या अच्छा सा लॉंग कुर्ता, जीन और कुछ फंकी ज्वैलरी ।

कहते ही वह आश्चर्य मिश्रित रूप से ऊहापोह की स्थिति में आ गयी वो।

क्यों... क्या सजना संवरना नहीं चाहती है वो.?
उसकी आशाएं जिंदा है अभी। 

चाहती है, पर उसने जिसे आधार मान लिया था वो बीच रास्ते में उसका हाथ छुड़ा कर सदा के लिए उसे अकेला करके चला गया।

जूझना पड़ा उसे हालातों से, अपनी भावनाओं से अब बमुश्किल होश आया है उसे तो पहला शब्द था कि हाँ आगे बढ़ना चाहती है वो।

अब मन बनाया है लेकिन अब उसे, उसके जैसा कोई नहीं चाहिये जिससे वो सबसे ज्यादा प्रभावित थी, दिलोजां से चाहती थी।

सोच रही हूँ कि कैसा प्यार था कि जिसके बिना रह नहीं सकती अब भी यादों में है उसी के जैसा कोई भी नहीं चाहिए।
सिर्फ़ आदत हो गई थी उस घुटन में रहने की। 
अंदर तक प्रेम के बहाने उसी प्रेमी के द्वारा उसके कुचले, दबे अहसासों से अब तक डरी हुई है वो ,
हाँ, समझ में आती है उसकी बात।

और अपने से, अपनों से, परायों से लड़ते- लड़ते, लिहाज़ करते, समाज की मर्यादा निभाने की कोशिश उसे मर्दाना ही तो बना दिया इन परिस्थितियों ने।

लड़ रही है वो।
कोशिश मत कर, बस हो जाने दे जो हो रहा है।
बह जा हवा के साथ।

कष्ट अवश्यंभावी है, पर पीड़ित होना स्वेच्छा पर निर्भर है।
तेरा स्त्रीत्व ही तेरा अस्तित्व है।                             
                 "तनु " 3/9/2019

Thursday, 29 September 2022

घुमक्कड़ी

मेरी मनोवृति घुमक्कड़ है।

सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करते हुए मुक्त भाव से यात्राओं को अभिव्यक्ति करने में जो आनंद मिलता है वो किसी और बात में नहीं।
और कुछ मित्र ऐसे मिले हैं कि अपनी इस प्रवृत्ति में इजाफा ही हुआ है।
घुमक्कड़ी के वजीफे मिलते रहे। 

मेरी स्वयं की प्रकृति सौंदर्य प्रेमी है।।
मेरा मन साहित्य की भांति घुमक्कड़ स्वभाव का है जो स्वयं की खोज में निरंतर वृद्धि करता है।

सदैव सुखद अहसास होता है कि हम जहां भी जाते हैं वहां से कुछ-न-कुछ ग्रहण करने को मिलता है।

मेरे द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम , सौंदर्य , भाषा , स्मृति हैं जिनको शुद्ध मनोभाव से प्रकट करने की कोशिश कर पाती हूँ।

घूमते हुए हम देश काल परिस्थितियों को तटस्थ भावों से देखते हैं और अपने मनोभावों को लिख पाते हैं ।।

यात्राओं में लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है।
हजारों किस्से कहानियों का जन्म होता है, लोग , उनका परिवेश, बोली, भाषा, संस्कृति, वहां का इतिहास और परंपरागत धरोहरों की छवियांँ मन मस्तिष्क में अंकित होता जाती हैं।

और उन ढेरों किस्सों से बनी मैं।
कभी अपनी सी और कभी तो खुद के लिए भी अजनबी।

घूमते हुए जंगलों, पहाड़ों और नदियों से साक्षात्कार करते हुए महसूस होता है कि इंसान इनके बिना कितना निरिह है।
नदियों के किनारे की सभ्यता हमें हमारे होने का प्रमाण देते हैं। 
प्रकृति के दिए अनमोल उपहार के सामने क्या है ?
वादियों, बुग्यालों और उन्नत पहाड़ों पर जीवटता के अहसासों से भर जाते हैं।

जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म अपना लिया, उसे पेंशन कहां, उसे विश्राम कहां ?
आखिर में हडि्डयां कटते ही बिखर जाएंगी।”

खुद के लिए अन्तरात्मा से आवाज़ आती है कि मेरा जीवन, आजीवन यायावर रहे।।।

जन्मों जन्मांतर तक 🌳🥰 #incredibleindia
#uttarakhand #mountains #travel #hiking #adventure #uttarakhandheaven

Tuesday, 6 September 2022

रेत

#oldies2003

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में 
सावन जैसी धूप लिखी है क़िस्मत के हर ख़ाने में _____________________________________

रेत की कागज पर लेटी हुई ऊँगलियाँ 
सहसा उसे देख कर, 
सोचती नमकीन शब्द! 
निशा भी निस्तब्ध... 
कुछ गुरेज कर /
करती अधेड़ सी पहल, 
वह छठी इंद्रिय समझती /
मार के अदृश्य कंम्पनों को, जागृत तरंगों को 
जगी ऊँगलियाँ, अब लिख रहीं कुछ यादें
मुलायम रेत की नम जमी पर...

                    "तनु "

Tuesday, 30 August 2022

रूह

#कभी_कभी 

तुम आते हो ना यहाँ कभी कभी, कभी कभार मेरी याद तुम्हें इस बियाबान में घूमने के लिए मजबूर करती है। 
अब बहुत देर हो गई है, बैठे रहना चाहती थी तुम्हारे साथ घंटों चुपचाप खुले आसमान के नीचे , तुम्हारे बालों में उंगलिया फेरने का जी चाहता था !
कुछ मेरी ही सीमा रेखा ने बांध दिया है मुझको!
माना कि किसी को उत्तर नहीं देना है मुझे!
पर आँखों को तो जवाब देना है। 
ख़ुद को आईने में न देख पाऊँ... 
अपनी आंखों से बहुत डर लगता है मुझे।
ताउम्र नकली चश्मा नहीं लगा सकती हूँ न।
इस हलके-हलके बढ़ती जा रही उम्र को भी तो उत्तर देना होता है न।
      ढलती उम्र की एक आखिरी शाम को खुद से सवाल होगा न।
कि क्या खोया और क्या पाया ?
तब अपने शरीर से बाहर निकलती आत्मा झाँक कर देखगी मेरे खुद के अंदर।
तो पाएगी कि जमीर जिंदा था और तुम्हें भी आराम मिलेगा दमकते दामन को देखते हुए। 
और तब सुकून भर उठेगी रूह मेरी "तनु"... 
और मेरे साथ तुम्हारी भी पाकीजा रूह को करार मिल जाएगा।

Saturday, 27 August 2022

किसे पूछूं, कहाँ हो तुम

यू तो हर रोज सर्दी /गर्मियों की तरह आती जाती तुम्हारी यादें 
ये तो यादें हैं जो मेरे अख्तियार में है कि आती है! काश तुम भी होते।।। 
दर्द हो तो /खुशी हो तो /
तुम भी मेरे अख्तियार में होते तो बाँध ही लेती तुम्हें भी/
ताबीज बना के पहन लेती। 
क्या क्या जतन करे मैंने कि तुम मेरे रहो /पीर/फकीर, गंडे-ताबीज, खुदा-भगवान।  
कहते हैं कि रूक जाते हैं जाने वाले,
पर तुम तो रोकने वाले के ही बुलावे पर थे। 
सोने की कोशिश करती हूं कि मेरे ख्वाबों में आती तुम्हारी तस्वीर, हल्की खुली आँखों से तुम्हें महसूस करती हूं फिर कस के आँखे बंद करती हूँ कि गुम ना हो जाओ कहीं। 
क्या सच में कभी तुम्हें देख पाऊँगी, वहम भी क्या है कि तुम आज भी मेरी रूह में समाये हो। महसूस होते हो, साथ में।।। 
लोग कहते हैं कि ना याद करो जाने वाले को, कोई बताओ कैसे समझा सकते हो/ 
खुदा मेरे, तेरा दिया दर्द शिद्दत से संभाले हूँ मैं। 
जीते जी भी तो लोग जाते हैं, एक उम्मीद छोड़ कर,कि फिर मिलेंगे कभी। 
दूर से लोगों को तकती हूँ, कि तुम होते तो शायद ऐसे होते, तुम ये करते, तुम वो करते। 
पर तुम..... 
बस तुम और तुम। 
तुम्हें पता है कि किस कदर दर्द के अंधेरों में घुट गई है सांसे ये
क्या तुम मिलोगे कभी ?

Tuesday, 9 August 2022

#दोस्ती



1993 जून में बीकानेर की तपती दोपहरी की बात थी,
दरवाजे पर दस्तक हुई मैं नींद में अलसाई सी उठी।

दरवाजा खोलने पर गरम हवा का जबरदस्त थपेड़ा पडा़ और तपते सूरज की किरणों से आँखें चुँधिया गयी।

सामने बांधनी के रंगीन सूट में एक लड़की थी।
मैंने कहा - हाँ जी...
वो मुझे देखते हुए बोली, आपके बगल के कमरे में आँटी जी रहती है वो हैं क्या?

आप उनका दरवाजा खटखटाईये...

हाँ, मैंने किया पर कोई असर नहीं।

अच्छा मैं अंदर से देखती हूँ।
हमारा वरांन्डा एक ही था।
ऊपर से छत भी खुली हुई थी ताकि रोशनी और हवा का अच्छा आवाजाही हो।

मैं अंदर उनके सारे कमरे घूम कर आ गयी शायद वो लोग घर में नहीं हैं।

आकर उसको बोला, कोई नहीं है घर में।
बाद में देखना।

वो बोली अच्छा, अब कल आऊँगी, मैं उनसे सिलाई सीखने आई थी हमें कालेज का एक प्रोजेक्ट बनाना है उसके लिए चाहिए।

अच्छा...फिर अब ?

कल आऊँगी कहते हुए वो आगे बढ़ गयी। 
ठीक है कहते हुए मैंने भी दरवाजा ढाँप दिया और एक कुर्सी पर बैठी।
नींद से जगा दिया इसने अब क्या करूँ बोर हो जाऊँगी और उफ इतनी गर्मी।
सो गयी थी तो पता नहीं चल पाया।

फिर उसको ही मन में याद किया कि ये इतनी गर्मी में कैसे आ गयी।
बाहर तो निकलने का ही नहीं हो रहा है।
और अचानक याद आया कि अरे हद हो गई मैं उसको अंदर बैठने के लिए कह सकती थी उसको पानी पूछना था।

हालांकि फ्रिज़ नहीं था मटके का पानी तो.... ओ हो।

मैंने झपटते हुए दरवाजा खोला और दौड़ कर बाहर आई कि दिखेगी तो आवाज़ दूँगी और बुला लूँगी।

पर नहीं दिखी और मुझे भी तो वहाँ आए एक हफ्ता ही हुआ है बाहर निकल कर देखा तक नहीं है कि कौन सी गली कहाँ जाती है।
अफसोस हो गया अब तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है, यूँ भी घर से पहली बार निकली हूँ पता भी नहीं था कि पूछते भी हैं।
अगले दिन फिर से दस्तक हुई दरवाजा खोला तो सामने फिर एक युवती। हम उम्र

मैंने कहा आप कल भी आई थीं क्या?
वो बोली - हाँ, मंडीवाल आँटी जी से कुछ सामान बनवाना है और कुछ सीखना भी है।

मैंने जल्दी से कहा अच्छा आप अंदर आ जाईये बाहर बहुत गर्मी है, खूब तप रहा है।
वो बोली राजस्थान है जी ये तो होगा ही।
हाँ बात तो सही है आप बैठिए मैं आंटी जी को देखती हूँ।
अंदर देखा तो फिर कोई नहीं था।

आपने उनको बताया था कि आप आने वाली हैं क्योंकि आप कल भी आए थे।

नहीं सुबह कालेज चले जाते हैं और अभी वो मिल नहीं रही हैं हमने उनसे सीखने के लिए बात करनी है।
ओह अच्छा।
अच्छा मैं शाम को कह दूँगी आपका नाम बता दीजिए।
उसने बताया सरोज सहारण नाम है उसका।
लिख दीजिए नाम तो याद रहेगा आपकी कास्ट याद नहीं आएगी।
हमारे उधर नहीं होते हैं न।

वो बोली कहाँ से हो आप।
नैनीताल...
नैनीताल? 
वो जो पिक्चर में आता है अरे बड़ी सुन्दर जगह है वो तो।

अपना मन तो फूल कर कुप्पा हो गया।
हाँ बहुत खूबसूरत है।

वैसे राजस्थान भी बहुत सुंदर है।
अभी देखा नहीं है सब काम वगैरह सैट हो जाए तो देखने जाऊँगी।
वो बोली चलना मेरे साथ बहुत दोस्त हैं और घर आना माँ पिताजी से मुलाकात होगी और दो भाई बहन हैं।
सिर्फ दोस्त ही नहीं मिली पूरा परिवार मिल गया। 
फिर पानी कुछ देर बाद रूह आफजा शर्बत आदि के साथ बातें होते होते अटूट रिश्ता बन गया।

जिंदगी के अहम् फैसला तुझसे पूछा और तू फिक्र मत करना सब कुछ ठीक चल रहा है। 
आज तक कई कहानियां गढ़ रहे हैं।
तब से अब तक कोई दिखता ही नहीं कि जिससे दिल की बात की जा सके।
जो अन्तर्मन को छू सके।
अब तो लोगों से सिर्फ़ कहा जाता है, बताया जाता है, महसूस कोई नहीं करता !

Tuesday, 28 June 2022

जिंदगी

#ज़िंदगी

मांस का धड़कता, कुछ सौ ग्राम लोथडा़
भारी होकर एक कोने में , पसलियों में टकराता, अटका सा, पीड़ा देता हुआ !
बाज़ुओं में रक्त प्रवाह भी ठंडी तकलीफ देता हुआ प्रतीत होता है ! 
_______________

एक सीध में 
जब रखे गए तर्क और तक़ाज़े 
दलीलें और जिरहें
तो उनको 
मान लिया जाए ? 

और कदाचित् 
कोई ग्लानि ही रही होगी मन में 
कि उन औरों से अधिक त्वरा से माना
जिन्होंने कभी चाही ही नहीं थीं 
कोई सफ़ाइयां.

स्वयं से कहा-
मैं स्वांग करने को विवश हूं!
और तब ऐसा स्वांग रचाया 
कि उसी पर कर बैठे 
पूरा भरोसा!

फिर आत्मरक्षा में कहा-
और विकल्प ही क्या था?
और यह सच था कि कोई और 
सूरत नहीं रह गई थी
किंतु दु:खद कि इतने भर से
मरने से मुकर गए 
अकारण के दु:ख! 

दुविधा ये थी कि 
एक सीध वाले समीकरणों को 
सत्यों की तरह स्वीकार 
कर लिया जाता

जबकि अधिक से अधिक
वो इतना ही बतलाते थे कि
वरीयता का क्रम क्या है!

और ये कि 
क्या क्या बचाने के लिए 
मुफ़ीद रहेगा नष्ट कर देना 
क्या कुछ और!

तुम या मैं...

क्यों, क्यों नहीं सत्य कह सकते हैं।
जबकि झूठ सजा सँवार कर कहा।
क्या पहले नहीं बताया कि छला गया है कई बार अब और नहीं, बस! 

और अब... 
घटनाक्रम और मैं स्वांग करने के लिए लाचार हूँ

क्यों, क्या सिर्फ इसलिए कि देखते हैं सब ?

Sunday, 19 June 2022

महा निर्वाण

बिलखती जिंदगियों को देख
माया खत्म होने लगी और 
अनायास तुम मेरे सामने आ गये

हे तथागत!!
हे बुद्ध!!
हाँ जान गयी मैं,
कैसे विमुख हुए होगे तुम?
दुख -पीड़ा
मोह माया 
जीवन- मृत्यु
जय-पराजय
इहलोक-परलोक
जन्म-पुनर्जन्म
प्रस्थान-आगमन
इहकाया-पराकाया
के मोह से  कैसे मुक्त हुए होगे।
अपने प्राणों से प्रिय आत्मनों को घर में छोड़ते हुए पीड़ा तो तुम्हें भी महसूस हुई होगी। 

अपने पीछे कितना कुछ छोड़ गए तुम!!
दुख से घबराकर तुम्हारा पलायन।

महाभिनिष्क्रमण!!!
सत्य की खोज....
और अंत में
बुद्ध हो जाना
हे देव 🙏
मन में यही भाव मेरे भी आया।

नहीं संभव है मेरे लिए!!
कैसे पूर्व नियोजित प्रारब्ध से आश्रितों को जानबूझकर छोड़ा जा सकता है ?
यह संभव नहीं है, 
शायद किसी के लिए भी नहीं
क्योंकि इतिहास की
पृष्ठभूमि  पर न जाने
कितने शुद्धोधन,कितनी गौतमी और कितनी यशोधराओं के अश्रुओं की गाथा,
किसी एक बुद्ध को जन्म देती है!!!
नमन है आपके चरणों में 
हाँ,
प्रण लिया अगर इस जीवन में
कुछ होंठों पर मुस्कान सहेज संकू
किसी की भूख को रोटी परोस सकूं
और किसी अनाथ को अपने मातृत्व का संबल दे सकूं तो
शायद यही मेरा महापरिनिर्वाण होगा

साभार 🙏

Monday, 28 February 2022

सफ़र

अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं।
रूख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं

हम दौड़ में अव्वल आयें ये ज़रूरी नहीं,
हम सबको पीछे छोड़ दें ये भी ज़रूरी नहीं।
ज़रूरी है  दौड़ में शामिल होना,
ज़रूरी है हमारा गिर कर फिर से खड़े होना।
ज़िन्दगी में इम्तेहान बहुत होंगे,
आज जो आगे हैं कल तेरे पीछे होंगे।

बस हम चलना मत छोड़ें,
बस हम लड़ना मत छोड़ें !!!

Thursday, 10 February 2022

काल चक्र

"काल चक्र" 

पतझड़ में घास... 
पतझड़ में एक पत्ते से घास ने कहा,
तुम नीचे गिरते हो तो कितना शोर मचाते हो! 
            मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हो! 
पत्ता क्रोधित होकर बोला, 
                  "बदजात माटी मिली" 
                    बेसुरी, क्षुद्र कहीं की, 
         तू ऊँची हवाओं में नहीं रहती, 
    तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने, 
फिर पत्ता, वह पतझड़ का वह पत्ता,
        जमीन पर गिरा और सो गया! 
           जब बसंत आया वह जागा, 
और.. 
तब वह घास की पात था! 
फिर पतझड़ आया और शिशिर की नींद से, 
                       उसकी पलकें भरी हुई थी, 
ऊपर से हवा में से पत्तों की बौछार हो रही थी! 
           वह बुदबुदायी, 
उफ, ये पतझड़ के पत्ते,कितना शोर करते हैं, 
           मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हैं !!!

Tuesday, 18 January 2022

#वाशिंगमशीन

#वाशिंग_मशीन

नीति ने अपने बेटे के बैग में से कपड़े निकाल कर धोने के लिए सेमीवाशिंग मशीन में डाल दिए!

एक बार और देख लेती हूँ सोचकर वो दो - तीन मिनट में मशीन तक पहुँची तो धक से रह गयी, जल्दी से स्विच ऑफ करके मशीन बंद की!

कुछ नोट ऊपर से ही तैर रहे थे, उसने हाथ से कपड़े उल्ट कर देखे तो बहुत सारे, बीस, सौ, पचास के नोट, फोटो आई डी, गाड़ी का लाइसेंस सब भीगे हुए थे।

उसे समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है ?
वो हतप्रभ सी थी ! 

फिर उसने सावधानी से सब सामान हटाया और बाहर आकर बेटे को आवाज़ देकर कहा, बेटा सुनो।

तुम अभी आए हो और मशीन में तुम्हारा पर्स और इतना सब सामान कहाँ से आया होगा ?

और इतना कहते कहते ही अचानक जैसे उसे कुछ ध्यान आया...

अच्छा, ओह....
अपने माथे पर हाथ लगाया और बोली, अरे ये सब तुम्हारे कपड़ों, जेब में होगा न ये पर्स।

अरे रे, ये क्या कर दिया मैंने!

तब तक बेटा भी वहां पर आकर चुपचाप मुँह को हाथ से ढककर चुपचाप मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....

नीति ने उसकी ओर देखा तो बोली,
 क्या?
ऐसे क्या मुस्कुरा रहे हो, कुछ कहते क्यूँ नहीं, डाँटो मुझे।

सौरभ, नीति का बेटा...
प्यार से उसका हाथ पकड़कर कहता है आओ यहाँ बैठो आप।
अब इसमें डाँटना क्या ।

मैं खुद धो लेता, आपने क्यों किया ? 

उसकी बातों में नीति ने कहा, सुन, सुन।

प्रेस करके सूखा देती हूँ। 
वरना सब कागज और पैसे गल जायेंगे।

सौरभ बोला - नहीं माँ, कोई बात नहीं माँ, सूख जायेंगे, आप टेंशन मत लो, सूख जाएंगे...

फिर नीति का उतरा हुआ चेहरा देखकर सौरभ बोला वैसे भी आपको कौन सा पैंट की जेबें चैक करने की आदत है।

ह्म्म.... 
हाँ....

कहते हुए नीति को याद आने लगा कि कई साल पहले इसी तरह से शादी के करीब-करीब साल भर बाद पति के घर आ जाने पर उनको नाश्ता आदि देकर कपड़े धोने की मंशा से उनका सूटकेस खोला कि कल तो यहीं से कल ससुराल के लिए जाएंगे।

वहां मशीन नहीं है यही से कपड़े वगैरह धो लेती हूँ। 
वहाँ तो पहाड़ पर ठंड भी बहुत होगी। 

कपड़े निकालते हुए उसमें दो लिपिस्टिक लैक्मे की क्रीम और कुछ भी प्रसाधन का सामान और कुछ अतंवस्त्रों के डिब्बों को देखा तो उसे लगा कि अरे वाह, मेरे लिए सामान लाए हैं।

वो मन में खुश हो गयी।
फिर खुद से बोली...
चलो, बाद में खुद ही देंगे।

उसने सूटकेस में से धोने वाले  कपडों को निकाला और मशीन में डालकर अपने काम में लग गईं। 

अगले दिन सुबह ही ससुराल के लिए निकलना है पैकिंग भी करनी है बाजार से घर की जरूरत और बाकी कुछ भी खरीदारी करनी है।
काफी व्यस्त थी नीति!
सब्ज़ी वगैरह लेनी है, पड़ोसी मिलेंगे, मिठाई, गुड़ भी लेना है।
पहाड़ पर गुड़ होना जरूरी होता है।
सासु के लिए कुछ गरम ब्लाउज के कपड़े लेने हैं।
अरे कितना काम बचा है अभी तो । 
कल सुबह जल्दी छह बजे की बस से निकलना भी तो है! 

अगले दिन ससुराल में आकर रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्तता के चलते याद नहीं रहा था कि पति के सूटकेस में उसके लिए गिफ्ट और सामान था।

तीसरे दिन तब याद आया जब वहीं कपड़े "अतंवस्त्रों" को जिठानी के धुले कपड़ो की बाल्टी में देखा।
साँसे ज्यादा तेज़ हो गई और सब घूमता हुआ सा लगा....
तब यही वजह थी क्या जब बड़ी जेठानी ने ताकीद की थी जरा इनका ध्यान रखना...
अच्छी बात नहीं की ये, तब नीति को इतना कुछ समझ में नहीं आया था!
आज एक कड़ी जुड़ गई।

फिर किसी तरह से खुद को घसीटते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए सीढियां उतरने लगी।
पीछे से कोई पुकार रहा था नीति, नीति।
अरे सुन क्या हुआ, अचानक कहाँ को जा रही है।
और नीति को जैसे कुछ सुनाई नहीं दिया था। 

तब से आज तक जेब या सूटकेस नहीं देखे थे नीति ने !
शायद अब आदत नहीं रही।

हाँ, भूल ही तो गयी थी! लेकिन 
वाशिंगमशीन के कपड़ों की तरह मन से सब साफ़ नहीं होता है न।