Adhyayan

Monday, 17 October 2022

साया

"तनु " तेरी आँखों में देखती हूँ ख्वाब इस कदर कि, हकीकत की दुनिया अनजानी सी लगती है! 
न आने की आहट न जाने की टोह मिलती है कब आते हो कब जाते हो !
आम का पेड़ हवा में हिलता है तो पत्थरों की दीवार पे परछाई का छीटा पड़ता है और जज़्ब हो जाता है, जैसे सूखी मिटटी पर कोई पानी का कतरा फेंक गया हो !धीरे धीरे आँगन में फिर धूप सिसकती रहती है कब आते हो, कब जाते हो, बंद कमरे में कभी-कभी जब दीये की लौ हिल जाती है तो, तुम्हारा साया मुझको घूँट घूँट पीने लगता है आँखें मुझसे दूर बैठकर मुझको देखती रहती है कब आते हो कब जाते हो "तनु "दिन में कितनी-कितनी बार मुझको - तुम याद आते हो !!!

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