बिलखती जिंदगियों को देख
माया खत्म होने लगी और
अनायास तुम मेरे सामने आ गये
हे तथागत!!
हे बुद्ध!!
हाँ जान गयी मैं,
कैसे विमुख हुए होगे तुम?
दुख -पीड़ा
मोह माया
जीवन- मृत्यु
जय-पराजय
इहलोक-परलोक
जन्म-पुनर्जन्म
प्रस्थान-आगमन
इहकाया-पराकाया
के मोह से कैसे मुक्त हुए होगे।
अपने प्राणों से प्रिय आत्मनों को घर में छोड़ते हुए पीड़ा तो तुम्हें भी महसूस हुई होगी।
अपने पीछे कितना कुछ छोड़ गए तुम!!
दुख से घबराकर तुम्हारा पलायन।
महाभिनिष्क्रमण!!!
सत्य की खोज....
और अंत में
बुद्ध हो जाना
हे देव 🙏
मन में यही भाव मेरे भी आया।
नहीं संभव है मेरे लिए!!
कैसे पूर्व नियोजित प्रारब्ध से आश्रितों को जानबूझकर छोड़ा जा सकता है ?
यह संभव नहीं है,
शायद किसी के लिए भी नहीं
क्योंकि इतिहास की
पृष्ठभूमि पर न जाने
कितने शुद्धोधन,कितनी गौतमी और कितनी यशोधराओं के अश्रुओं की गाथा,
किसी एक बुद्ध को जन्म देती है!!!
नमन है आपके चरणों में
हाँ,
प्रण लिया अगर इस जीवन में
कुछ होंठों पर मुस्कान सहेज संकू
किसी की भूख को रोटी परोस सकूं
और किसी अनाथ को अपने मातृत्व का संबल दे सकूं तो
शायद यही मेरा महापरिनिर्वाण होगा
साभार 🙏
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