Adhyayan

Tuesday, 6 September 2022

रेत

#oldies2003

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में 
सावन जैसी धूप लिखी है क़िस्मत के हर ख़ाने में _____________________________________

रेत की कागज पर लेटी हुई ऊँगलियाँ 
सहसा उसे देख कर, 
सोचती नमकीन शब्द! 
निशा भी निस्तब्ध... 
कुछ गुरेज कर /
करती अधेड़ सी पहल, 
वह छठी इंद्रिय समझती /
मार के अदृश्य कंम्पनों को, जागृत तरंगों को 
जगी ऊँगलियाँ, अब लिख रहीं कुछ यादें
मुलायम रेत की नम जमी पर...

                    "तनु "

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