लाली के पांच सौ रुपये ...
लाली के ससुराल वालों ने लाली से विनती की, लाली अपने मायके चले जा, वहाँ तेरी अच्छी देखभाल हो जायगी!
वहाँ अस्पताल है, तेरे माँ बाप तुझे अस्पताल दिखा लेंगे, ये पहाड़ है, अस्पताल भी पास नहीं ।
जब तब बरखा हो जाती है और बरफ गिरती है।
पाला पड़ता है रास्ते फिसलन वाले हैं।
तू मान अपने माँ बाप के घर चले जा।
लाली सोच में पड़ गयी....
कैसे अम्मा - बाबाजी के सामने जाएगी।
कैसे जवान भाई से बात करेगी ?
अनुशासन से भरपूर घर !
लाली सोचती रही और पति ने लाली को उसके अम्मा बाबा के घर छोड़ दिया और आगे नौकरी में चला गया।
पाँच महीने का बच्चा पल रहा था, लाली किसी तरह अपने को ढक छोप कर रखने की भरपूर कोशिश करती।
हर महीने डाक्टर के पास जाना होता।
डाक्टर अल्ट्रासाउंड बताते, पर लाली किससे बताए ?
हफ्ते - दो हफ्ते में लाली के पति का फोन आता, तब लाली शाल ओढ़े फोन तक जाती और अपनी पूरी बात बताती।
लाली इस तरफ़ नमस्ते हाँ - हूँ में जवाब दे रही होती तो कोई कुछ समझ नहीं पाता या किसी को कुछ समझना ही नहीं था।
अल्ट्रासाउंड तीन सौ रुपये से लेकर सात सौ तक का होता था तो पति समझा देता कि अल्ट्रावायलेट किरणें होती है जो बच्चे को नुकसान पहुंचा देती हैं, डाक्टर का क्या है वो तो पैसा बनाने के लिए कहते हैं।
ठीक है ध्यान रखना के साथ फोन का क्रेडिल रख दिया था।
सुबह लाली पोस्ट आफिस जाती है और बचपन से ही लाली के लिए बनाए अकाउंट से दादी अम्मा के जमा किए हुए पैसे निकाल कर शहर के बड़े अस्पताल में साढ़े तीन सौ रुपये का अल्ट्रासाउंड कराती है !
तब रिपोर्ट देखकर तब डाक्टर बताते हैं कि दाँयी ओर बच्चे का सिर अटका हुआ है कोशिश करना कि बांयी करवट ही लेटो।
और ये दवाई लो।
खाने में एहतियात रखो।
अंडा - दूध, फल खाओ।
हूँ - हाँ करती हुई केबिन से बाहर आकर साढ़े सात सौ रुपये की दवाई लेती है और घर आ जाती है।
घर पहुंचते ही अम्मा का बोलना शुरू।
कहाँ गयी थी और तेरे ससुराल वाले हमें खा जाएंगे।
क्या है तेरे हाथ में, ला दिखा।
लाली ने झट हाथ पीछे किया और लबरड़ते हुए उस कमरे से अंदर को जाते हुए आगे बढ़ गयी।
अम्माँ की आवाज़ आ रही थी, अरे आजकल के डाक्टर झूठ बोलते हैं।
उन्हें अपना अस्पताल चलाना होता है।
हमारे तो सारे बच्चे घर में हुए, कौन था हमें देखने वाला।
लाली का सिर दर्द से फटा जा रहा था कि कैसे उसके ससुराल वालों ने उसे उसके घर भेज दिया।
लेकिन लड़कियों के लिए कहीं कोई ठिकाना नहीं है।
अचानक एक दिन अम्मा जी के तेज दर्द उठा अस्पताल में भर्ती कराया गया तो पता चला कि पित्त की थैली निकालने का आपरेशन होगा। उसमें बहुत पथरिया जमा हो गयी हैं।
लाली के भाई ने आनन फानन में सब इंतजाम कर दिया और कह रहे थे कि अभी साथ में लाली है आपरेशन करा लो अम्मा।
बाद में दिक्कत आ जाएगी, अभी ये तुम्हारी देखभाल हो जाएगी।
और चटपट आपरेशन हो गया।
डाक्टर चैकअप करने आते तो लगे हाथ लाली को भी ताकीद कर जाते।
बिटिया वजन कंट्रोल कर लो अभी से इतना मोटापा अच्छा नहीं
लाली को सातवाँ महीना लग चुका था और वो शर्म से सकुचा जाती।
कह नहीं पाती कि वो प्रेगनेंट है।
अम्मा की सेवा करने में उसके प्राण कंठ में अटक जाते।
अम्मा कपड़े बदलना, चादर बदलने के लिए अम्मा नर्स को झिड़क देती क्योंकि नर्स का तो रोज़ का ही काम है वो क्यों अम्मा पर नरमी बरते।
अम्मा मना कर देती और फिर सब काम लाली को करना होता।
भाई भी आता तो कहता, हाँ लाली जीज्जी घूमने जाया करो सच में कुछ वजन बढ़ रहा है तुम्हारा।
लाली कुछ काम के बहाने अम्मा की बेड के पास नीचे बैठ जाती और बैग में कुछ खटर पटर करते रहती।
किसी तरह से सात दिन के बाद डाक्टर ने डिस्चार्ज कर दिया और अम्मा जी अपने महल में आप गयी।
इधर दादी माँ की हालत नाजुक सी हो रही थी।
दो तीन साल से बीमार होती और ठीक हो जाती।
दादी को लाली की औलाद देखने की बड़ी इच्छा थी।
मेरी लाली का पोता अपने गोद में रखूंगी और सोने की सीढ़ी पैर में बंधवा कर जाऊँगी।
खैर दादी पोते के आने से एक महीना पहले ही चली गई।
और एक बार लाली फिर तमाशाईओं के बीच फंस गई।
लोगों का आना जाना लगा रहता।
वो कभी किसी को चाय देती किसी को पीठ के पीछे लगाने के लिए तकिया।
रात में रूकने वाले मेहमानों के लिए इंतजाम।
किसी का खाना, किसी का नाश्ता।
कभी कुछ - कभी कुछ।
सिर्फ़ अपने अम्मा बाबा की इज्जत रखने के लिए सब सहन करते रही।
जहाँ चाहा , ब्याह दिया, जिसने जब चाहा उस हिसाब से बिसात बिछा दी।
आगे फिर समय के साथ....
अचानक लाली को दर्द उठा तो उसने अपनी माँ से कहा तो माँ ने टाल दिया, अरे नहीं ऐसा नहीं होता है।
तब तो बहुत जोर का दर्द होता है तुझे क्या पता।
उसने माँ की ओर देखा और अच्छा कहते हुए लाली उठ कर छत पर आ गई और टहलने लगी और दर्द को आत्मसात करने की कोशिश करने लगी।
हाँ, सही तो कह रही थी अम्मा,
आख़िर लाली को दर्द का क्या पता ?
उसे तो कभी दर्द का अह्सास हो ही नहीं सकता था उसने तो सहन करना सीखा था।
लाली को दर्द से छुटकारा नहीं मिल रहा था तो उसने अम्मा के पास आकर कहा, अच्छा अम्मा हम अस्पताल जाकर आते हैं और देर हो जाए तो आप सरकारी अस्पताल आ जाना।
पागल हो गयी है क्या, बहुत अपने मन की हो गयी हो लाली, चुपचाप घर में बैठो।
तभी एक फोन आया और लाली को पुकारा गया तो लाली आ गयी।
लाली अपने सुंदर से कालेज के खादी के बैग में गाऊन डाल रही थी और जल्दी से दो गाऊन बैग के हवाले करते हुए फोन उठाया।
दूसरी ओर से लाली की ननद जी बोल रही थी।
लाली ने जल्दी से नमस्ते करते हुए कहा कि वो अस्पताल जा रही है, इस समय उसे यही सही लग रहा है।
क्योंकि घर में सब बड़े - बहुत बड़े हैं और हम उनसे कुछ नहीं समझा सकते।
डाक्टर ने जो तारीख दी है वो या तो दस दिन इधर है या उधर।
और जिज्जी हमें बहुत तकलीफ हो रही है।
वैसे भी बच्चा सुरक्षित होगा हमें तो भरोसा भी नहीं है।
क्योंकि आपके भैया बहुत हाथ अजमाए हैं हम पर।
अच्छा रखती हैं।
अब जो भी हो।
लाली अस्पताल पहुँची तो सरकारी डाक्टरनी ने साथ में कौन है पूछा तो लाली ने चट से पाँच सौ रुपये डाक्टरनी को थमा दिए।
डाक्टरनी साहिबा समझ गयीं।
तब के पाँच सौ रुपये आज के पाँच हजार रुपये।
मैडम ने चुपचाप रूपये थामे और सफेद कोट की जेब में रख लिया और नयी लड़कियों को बुलाकर स्ट्रेचर मँगाया और लाली को कपड़े बदलने का आदेश देते हुए कमरे में भिजवा दिया।
तभी लाली ने अपने पैरों पर पानी रिसता हुआ महसूस किया और वो नर्स से बोली, देखो ये क्या हो रहा है ?
एक नर्स आयी उसने लाली का चैकअप किया और बोली, बच्चे का वॉटर बैग लीक होने लगा है,
हाँ, डिलीवरी अभी हो सकती है।
आप... आओ जल्दी!
दर्द बढ़ाने के लिए इंजेक्शन दे दिया।
लाली के हाथ में बेड के सिरहाने में लगी रॉड थमा दिया।
और लाली चुप्पी साध कर कसमसाने लगी।
तभी "आया अम्मा " आयीं और कहती है बेटा तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो?
तुम्हारा बच्चा गिरने वाला है।
लाली को कुछ समझ में नहीं आया और आँखों के कोनों से आसूँओ की धार बहने लगी।
और बोली... आया अम्माँ, हमसे चींखा नहीं जाएगा।
प्लीज आप कुछ करो।
हमें जोर से चिल्लाना नहीं आता।
सुना है कि दर्द होने पर डाक्टरनी और नर्सें डाँटती है।
आया अम्मा झपट कर बाहर भागी और लगभग दौड़ाते हुए डाक्टरनी मोंगा जी को ले आई।
डाक्टर के आते ही दो मिनट में बच्चा हो गया और सारे कमरे में सन्नाटा था।
सब खुसर पुसर कर रहे थे कि ये तो चूँ भी नहीं बोली ।
हमें तो लगा कि मर गयी है।
जरा देर के बाद लाली ने अपने कपड़े समेटने की कोशिश की जिसको देखकर आया अम्मा को लाली को देखकर सहानुभूति हो आई।
उन्होंने लाली के माथे पर अपना कोमल हाथ फेरा। लाली को कपड़े संभालने के लिए मदद की और प्रशंसा में बोली इसे कहते हैं लोक लाज रखना।
लाली ने आया अम्मा की मदद से खुद को संभाला और एक स्ट्रेचर से दूसरे स्ट्रेचर में आ गयी।
उसे एक साधारण से कमरे में लाया गया जहां अन्य बेडों पर कई स्त्रियां थी।
उन्हें देखकर लाली का मन घबरा गया कि तभी उसने कमरे में खुलने वाली खिड़की से देखा कि उसकी सहेली चली आ रही है और कुछ मिनटों में वो पता करते हुए कमरे में पहुंच गयी।
आते ही उसने ताना दिया, बता तो देती।
डाक्टरनी तुम्हारी बहुत तारिफ कर रहे थे, क्या किया तुमने ?
अच्छा....
हमने बताया था लेकिन किसी ने सुना नहीं।
वो चुप हो गयी, अच्छा लो, हम तुम्हारे लिए लिए दलिया लाए हैं, ये खाओ ।
तुम्हें भूख लगी होगी, इससे आराम मिलेगा।
और सुनो डिलीवरी तुम्हारी ही हुई है न तुम तो इतने आराम से बैठी हो ।
लाली ने हल्के से कहा, नहीं हमें बहुत दर्द है!
लेकिन किसको बताएं ?
इसलिए चुप हैं।
तुम हमें घर ले जाने का पूछो न, यहाँ बहुत घबराहट होती है।
अच्छा तुम्हारे भाई से बात करते हैं।
मान जाए तो।
लाली बोली... नहीं जाने दो, उनसे न कहो।
तब तक लाली की अम्मा जी भी आ गयी।
अचानक अस्पताल में चहल पहल हो गयी।
अचानक मिठाई - पेस्ट्री आदि बंटने लगे।
नर्सों की जेब में पैसे ठूंसे जाने लगे।
अब लाली के मायके आए का नाम तो रखना हुआ न और अम्मा की आवाज़ आती हुई सुनाई देती है कि....
लाली की अम्माँ एक रौ में बोलते हुए कह रहीं थीं, मैं तो डर गई थी, जब बच्चे के रोने की आवाज़ आई!
किसी ने पूछा क्यों ?
अरे बहुत पतली आवाज में रोया बच्चा, तो हमें लगा कि "लड़की "हो गयी है, हमारा तो कलेजा धक हो गया था।
अच्छा हुआ कि लड़का हुआ और हम भी पाप ग्रह से बचे।
हम कल ही बारह सौ रुपये के पुराने बर्तन बेचे थे अब वही काम आ गये।
नेपथ्य से आवाज़े आती जा रही थी।
लाली को अन्दर से बरबस जोर से हँसी आ गयी, मन में सोच रही थी बेचारे करोड़पति लोग कितने गरीब हैं ये...
बर्तन बेच कर नाती जनवाएंगे ।।।
इन्हें समझ में भी आता है कि क्या कह रही हैं ये ?
फिर लाली ने अपने बच्चे की ओर देखा फिर उसकी बारीक सी सफेद उँगली पकड़ कर धीरे धीरे से सहलाती है।
लाली की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, शुक्र है तुम सही सलामत हो बच्चे।
खुशी के आँसू और खुद की डिलीवरी...
अब क्रम से होने वाली एक मानसिक पीड़ा का अन्त हुआ है ।
और अब आगे जो होगा देखा जाएगा।
लाली को अब तक ये समझ में आ ही गया था कि उसका ब्याह मात्र ऐसे हाड़ मांस के आदमी के साथ हुआ है जिसकी सभी इंद्रियां मौजूद हैं लेकिन उसके अंदर आत्मा नहीं है !
न मायके वालों को उसकी या उसके बच्चे की फिक्र है न ससुराल वालों को।
सभी को अपने से मतलब था कि कोई हमें न नाम रख दे, कि हमने नहीं देखा !
लाली के दर्द से किसी को कोई मतलब नहीं था।
हाँ - लाली को पाँच सौ रुपये का लड़का पैदा हुआ, उस बच्चे ने तो लाली को कम ही परेशान किया...
है न ?
कम से कम लाली यही सोचती है।