Adhyayan

Sunday, 3 February 2019

जीवन संबंध

हम चर्चा करते हुए मासिक धर्म में होने वाले रक्तस्राव से गर्भाशयी माइक्रोबायोम तक जा पहुँचे थे।

"माहवारी का ख़ून गन्दा है या साफ़ ?"
"गन्दगी को परिभाषित करिए। स्वच्छता को भी।"
"मासिक धर्म के समय स्रावित होने वाले रक्त में कुछ तो ऐसा है , जो गन्दा है और जिससे दूर रहना चाहिए। अन्यथा संक्रमण हो सकता है।"
"मासिक धर्म के समय जो कुछ भी स्त्री-योनि से बाहर आता है ,वह क्या है ---जानते हैं ?"
"नहीं।"
"उसमें ख़ून के अलावा गर्भाशयी ऊतकों के टुकड़े होते हैं। वे ऊतक जो सम्भावित गर्भ की तैयारी के लिए उस अंग ने रचे थे। लेकिन गर्भ ठहरा नहीं। तो उन्हें त्यागा जा रहा है। इस तरह से स्त्री-गर्भाशय तीस वर्षों तक हर माह गर्भाधान की तैयारी करता है। शिशु के लिए पलना बनाता और उसे नष्ट करता है। यही कुदरत है। अब इसके बाद आप गन्दगी के विषय पर वापस आइए। ख़ून सबके भीतर है। पुरुष-स्त्री सभी के भीतर। दलित-ब्राह्मण-अँगरेज़ सभी के भीतर। ऊतक चाहे मस्तिष्क का को , हृदय का अथवा गर्भाशय का , वह शरीर के अंगों का ही हिस्सा है। उसमें गन्दा जैसा क्या हुआ ?"
"सुनते तो यही आये हैं।"
"आपको एक दिलचस्प बात बताता हूँ। लोग स्त्री-योनि , स्त्री-गर्भग्रीवा , स्त्री-गर्भाशय , स्त्री-अण्डाशय , स्त्री-अण्डवाहिनी में कोई अन्तर नहीं जानते। योनि से जो भी बाहर आता है , उसे गन्दा मान बैठते हैं।"
"पर लोगों की चली आ रही सोच में कुछ तो स्थापन रहा होगा ?"
"आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि स्त्री-योनि में बड़ी आँत के बाद सबसे अधिक जीवाणु हैं। बड़ी आँत जहाँ मल का निर्माण होता है। इस लिहाज से तो वह बड़ी आँत के बाद शरीर का सबसे गन्दा स्थान है। ध्यान रहे मैं योनि की बात कर रहा हूँ , ऊपर के हिस्सों गर्भग्रीवा-गर्भाशय-अण्डवाहिनी-अण्डाशय की नहीं।"
"वहाँ जीवाणु नहीं रहते ?"
"वहाँ जीवाणु होते हैं , यह हमने अब जान लिया है। स्वस्थ स्त्रियों में भी। गर्भाशय में मौजूद इन जीवाणुओं का एक पूरा पर्यावरण है। इसे वैज्ञानिक यूटेराइन मायक्रोबायोम का नाम देते हैं। स्वस्थ स्त्रियों की जन्मी सन्तानों की आँवों का जब हमने निरीक्षण किया , तो वहाँ जीवाणु पाये। हम सोच में पड़ गये कि ये यहाँ कैसे पहुँचे। करते क्या हैं। यक़ीनन कोई हानि तो नहीं पहुँचा रहे। लेकिन यह अवधारणा ध्वस्त हो गयी कि स्त्री-गर्भाशय में जीवाणु नहीं पाये जाते।"
"आप तो गन्दगी के विरोध में बोलते-बोलते पक्ष में बोलने लगे।"
"नहीं। आप मेरा मत समझ नहीं पा रहे। पहली बात स्त्री-योनि में जीवाणुओं की निश्चय ही बहुत बड़ी संख्या है। मल बनाने वाली बड़ी आँत के बाद। दूसरी बात यह संख्या योनि में है , गर्भाशय में नहीं। मासिक धर्म में आने वाला ख़ून गर्भाशय से आता है , योनि से नहीं।"
"अरे , पर योनि में पहुँच कर तो यह ख़ून दूषित हो गया न ?"
"पर योनि तो सदा से दूषित और जीवाणु-सम्पन्न है। चौबीस घण्टे। बारह महीने। सालों। तो फिर पुरुषों को स्त्री-संक्रमण के भय से सम्भोग ही त्याग देना चाहिए। स्त्री से संक्रमण का ख़तरा तो सम्भोग-मात्र से है !  एकदम स्वच्छ रहें। दूषण लेने से क्या लाभ ! फिर न कोई सन्तान जन्मेगी , न मानव-प्रजाति। सब-कुछ साफ़ ! इंसान की नस्ल भी साफ़ !"

वे कुछ कह नहीं पा रहे। गन्दगी की परिभाषा किसी मवादी फोड़े-सी फटकर बह चली है।

"हल्का महसूस हो रहा है ?"
"हम्म्म।"
"वैज्ञानिक कसौटियों पर अवधारणाओं को कसेंगे तो बहुत सारे दूषण अदूषण , दूष्य अदूष्य और दूषक अदूषक लगेंगे। बहुत सारी गंदगियाँ हमारे दिमाग में हैं , जिन्हें हमें साफ़ करना है। बहुत सारे अज्ञान के जीवाणु मस्तिष्क में हैं। बड़ी आँत और स्त्री-योनि के जीवाणुओं से कहीं अधिक हानिकारक।"

SShukla

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