अम्मा शैला से झूठ बोलती रही और शैला यकीन करते रही।
कभी उन लोगों से जानने की कोशिश ही नहीं की क्योंकि शैला को अम्मा पर यकीन था।
ईश्वर की इबादत की तरह शैला हर बात मानते रही और अपनों से दूर होती गयी।
कभी दिमाग में ये तक नहीं आया कि क्यों उसका सब कुछ छूटता जा रहा है।
नाते रिश्ते दोस्त, अपने पराये।
शैला कभी अपने बाबा से भी न कभी नहीं कह पाई।
जब उनके करीब आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कोई कुछ नहीं बोलता था पर दोनों समझते थे।
यही समझदारी सब कुछ खत्म कर गयी।
क्योंकि बाबा को देखते ही शैला की आखों में बेबसी के आँसू भर जाते थे।
कभी भी उनके सामने बोलना नहीं सीखा और गले में साँस अटक कर गोला सा बन जाती थी, दम घुटने लगता था कि क्यों नहीं जान पाते हैं आप।
आपकी ही तो संतान हैं न।
या जानबूझकर इतने मजबूर हो जाते हैं कि आप भी मेरी तरह अम्मा के झूठे जाल में उलझ कर रह जाते हैं।
हाँ.... यही होता होगा।
साफ तौर पर बात करने वाले कहाँ इतनी जालसाजी आती है और यकीन भी कोई कैसे करे कि एक औरत अपने जाये बच्चों के लिए इतनी कठोर होती है।
या तो वो जरूरत से ज्यादा चालाक है या फिर अपने सिवा कुछ नहीं सोच पाती।
अव्वल दर्जे की जाहिल औरत।
जो रोना धोना, कानाफूसी और सभी तरह के त्रियाचरित्र रोम रोम में बसे हैं।
और एक बात और कि उसे लड़की जात से सख्त नफरत है।
यहाँ तक कि भगवान् के बनाए जीवों पर भी उन्हें दया नहीं आती है।
ज्यों ही घर की पाली हुई कुतिया के बच्चे हुए और घर के नौकर बहादुर ने आकर खबर की कि जूली के बच्चे हो गये हैं तो अम्मा दौड़ कर वहां पहुंचती है और पलट कर देखते हुए एक एक कर किनारे छाँट कर रखे कि कितने कुत्ते हुए हैं और कितनी कुतिया।
और अम्मा शाम हो चुकने का इंतजार करने के बाद बोरे में उन छँटनी की हुई कुतियाओं को बोरे में रखकर सड़क के दूसरी ओर बहने वाली नहर के सुपुर्द करने से कभी नहीं चूकी।
और जब से शैला को समझ में आने लगा तो देखा कि हर साल दो बार ऐसा होता है।
एक बार तो अनजाने में शैला भी इस कृत्य में शामिल हो गई क्योंकि पता नहीं था कि बोरे में क्या बंद किया है।
अम्मा ने बोरे का ऊपरी बंधा हुआ सिरा पकड़ने के लिए कहा और साथ उठाने के लिए मदद करने के लिए कहा।
ज्योंही बोरा नहर की दीवार से टकराया और उसमें से जो आवाज़ आई तो शैला खुद चकरा कर गिर गई और झपट कर बोरे की ओर कूदी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
वो तो चंद सैकेंडो का काम था कि बोरा तो लहराते हुए ऊपर नीचे हिचकोले खाते हुए दूर और दूर चले गया।
शैला का हाथ अनायास ही मुँह के ऊपर से होते हुए सिर पर हाथ रखे हुए वो सन्नाटे में खड़े रह गयी।
कि तभी उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए जोर का झटका लगा, चल मरती क्यों नहीं है अब घर को, या तुझे भी यही फेक दूँ। अम्मा के कर्कश आवाज़ ।
तब उसे और कुछ नहीं लगा उस वक्त उनका झटका महसूस हुआ।
लेकिन शब्दों का असर अब होता है।
शैला दौड़ती हुई सड़क पार करते हुए दादी के पास भागी और जमीन पर चटाई बिछाकर मक्के के दाने सूखने के लिए निकालती हुई दादी की गोद में गिरते हुए सारी बातें उनको कही, और वो भी "शायद" कहते हुए।
क्योंकि शैला ने सिर्फ आवाज़ सुनी थी।
दादी सब जान रही थी लेकिन कह कुछ और रही थी।
न न च्येला, के और बात ह्वैली। के आई चीज ह्वैली ब्वार में।
कूड़ करकट हुनाल।
जा तू अपण किताब पढ़। उ त्यैर बाप थै क्वैली त तुकै त्यार बाप मार लगाल।
जा किताब पढ़। - (न बेटा, बोरे में कुछ और होगा, तू जा अपनी किताब पढ़। वो तेरे बाप से तेरी शिकायत करेगी तो वो तुझे मारेगा, तू जा किताब पढ़)
शैला दादी पर संदेह कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वहीं उसकी जीवनदायिनी थी।
हाँ, शैला भी तो एक लड़की जात थी तो भला वौ कैसे अछूती रहती।
बचपन से ही दादी ने ही शैला को स्तनपान कराया था तो वही तो उसकी माँ हुई।
अच्छा, ठीक है कहते हुए शैला अपने घुटने साफ करते हुए फ्राक ठीक करते हुए उठी और कमरे में जाकर स्कूल का बैग ढूंढने लगी।
तो आवाज आई...
ए री, यहाँ आ ये ले ये सिरी (बकरे का सिर) लाए हैं।
इसको साफ कर।
शैला आवाक सी उनका मुँह देखते रह गयी।
ऐसे आखें क्या फाड़ रही है काम करना सीख।
खाने को, लदौड़ चीरने (पेट भरने) के लिए खूब चाहिए।
मैं कैसे करूँ, मुझे नहीं आता है और मुझे स्कूल का काम करना है।
कल टैस्ट है।
हाँ, तूने ही तो मास्टरनी बनना है न , एक टैस्ट में पास नहीं होगी तो मर नहीं जाएगी और स्कूल में क्या झक मारने जाती है।
ताड़ जैसी होती जा रही है स्कूल में क्यों नहीं पढ़ती है अब बहाने बना रही है।
लगातार बोलते जा रही थी अम्मा।
तो बस चैं चैं की आवाज़ जैसे हवा में तैरती जा रही थी शैला को चींखते शब्द सुनाई दे रहे थे।
ले साफ कर इसे, तेरे बाबा कह गये हैं इससे साफ कराना।
अब बैठ यहाँ पर और स्टोव पर भूनकर चाकू से साफ कर इसको।
सुबह जल्दी उठकर पढने बैठना।
शैला कुछ भी नहीं सोचते हुए बैठ गयी और डरते डरते स्टोव पर बकरे के सिर को रख कर देखने लगी।
उसने देखा कि बकरी के सिर पर सींग फिर उसकी दयनीय नीली स्लेटी रंग की आखें।
और और किसी ने इसको मार दिया इसकी गर्दन अलग कर दी।
वहाँ पर भी माँस लटक रहा था खून के छल्ले लटके हुए थे।
वो अपने छोटे दिमाग में बस इतना ही सोच पाई और हल्के छोटे हाथों से काम करती जा रही थी, जी तोड़ मेहनत लग रही थी।
धीमी गति से चल रहा था सब धीमे धीमे बकरी के बाल जलते गये उसकी आँखें सिकुड़ गई, कान सिमट गये, सींग गिर पड़े।
चारों ओर जलने की बदबू।
जैसे शैला का पूरा बचपन जला जा रहा हो।
एक दो घंटे की मशक्कत के बाद उसने वो सब कर दिया
और जब वो खड़ी हुई तो जैसे उसके घुटने चिपक गये हो।
दो तीन बार की कोशिश के बाद दुबली पतली शैला ठीक से खड़े हो पाई।
उसने हाथ धोये, और अपनी आँखों में बहते पानी को नल के पानी से मिला दिया।
बार बार साबुन घिस रही थी कि वो बदबू जाती ही नहीं।
अंदर तक बस गयी है।
तब से लेकर हर दूसरे तीसरे दिन शैला के जिम्मे ये काम भी आ गया।
उसकी अम्मा ने उसे घर के कामकाज में अभ्यस्त बना दिया।
लेकिन..
ताजिंदगी जले हुए माँस की दुर्गंध को उसके रोम रोम में रच दिया।
शैला के अंदर - बाहर शरीर और आत्मा में आज भी कौंध जाती हैं वो कुतियाओं की आवाज़े और जले हुए माँस की दुर्गंध।