नीति ने अपने बेटे के बैग में से कपड़े निकाल कर धोने के लिए वाशिंग मशीन में डाल दिए, एक बार देख लेती हूँ सोचकर वो मशीन तक पहुची तो धक से रह गयी, जल्दी से मशीन बंद की!
कुछ पैसे ऊपर से ही तैर रहे थे, उसने हाथ से कपड़े उल्ट कर देखे तो बहुत सारे, बीस, सौ, पचास के नोट, फोटो आई डी, गाड़ी का लाइसेंस सब भीगे हुए थे।
उसे समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है?
उसने सावधानी से सब सामान हटाया और बाहर आकर बेटे को आवाज़ देकर कहा, बेटा सुनो।
तुम अभी आए हो और मशीन में तुम्हारा पर्स और इतना सब सामान कहाँ से आया होगा?
और इतना कहते कहते ही उसे ध्यान आया...
अच्छा, ओह.... तुम्हारे कपड़ों में होगा पर्स।
अरे रे, ये क्या कर दिया मैंने!
तब तक बेटा भी वहां पर आकर चुपचाप मुँह को हाथ से ढककर चुपचाप मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....
नीति ने उसकी ओर देखा तो बोली, क्या.... ऐसे क्या मुस्कुरा रहे हो, कुछ कहते क्यूँ नहीं, डाँटो मुझे।
सौरभ, नीति का बेटा... प्यार से उसका हाथ पकड़कर कहता है आओ यहाँ बैठो आप।
बहुत डाँट खा चुकी हो।
मैं खुद धो लेता, आपने क्यों किया ?
उसकी बातों में नीति ने कहा कि सुन, सुन।
प्रेस करके सूखा देती हूँ।
वरना सब कागज और पैसे गल जायेंगे।
सौरभ बोला - कोई बात नहीं माँ, सूख जायेंगे, आप टेंशन मत लो वैसे भी आपको कौन सा पैंट की जेबें चैक करने की आदत है।
ह्म्म....
हाँ.... कहते हुए नीति को याद आया कि कई साल पहले इसी तरह से करीब करीब साल भर बाद पति के घर आ जाने पर उनको नाश्ता आदि देकर कपड़े धोने की मंशा से उनका सूटकेस खोला कि कल तो यही से ससुराल के लिए जाएंगे, वहां मशीन नहीं है यही से कपड़े वगैरह धो लेती हूँ।
वहाँ तो पहाड़ पर ठंड भी बहुत होगी।
कपड़े निकालते हुए उसमें सौंदर्य प्रसाधन का सामान और कुछ अतंवस्त्रों के डिब्बों को देखा तो उसे लगा कि अरे वाह, मेरे लिए सामान लाए हैं।
चलो, बाद में खुद ही कहेंगे कहते हुए उसने साफ करने के लिए कपडों को निकाला और अपने काम में लग गईं।
अगले दिन सुबह ही ससुराल के लिए निकलना है पैकिंग भी करनी है बाजार से घर की जरूरत और बाकी कुछ भी खरीदारी करनी है।
अगले दिन ससुराल में आकर रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्तता के चलते याद नहीं रहा था कि पति के सूटकेस में उसके लिए गिफ्ट और सामान था।
तीसरे दिन तब याद आया जब वहीं कपड़े "अतंवस्त्रों" को जिठानी के धुले कपड़ो की बाल्टी में देखा।
तब से आज तक जेब देखना भूल गयी नीति !
हाँ, भूल ही तो गयी थी!
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