आज हम पायल पुराण पढेंगे, चाहे किसी को अच्छा लगे या ना लगे... मैं भी तो सुनती हूँ
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सामने वाले घर में पहली मंजिल (फर्स्ट फ्लोर) से आवाज आई, मम्मी जी.. मम्मी जी आलू है क्या ?
भूतल में रहने वाली सासु जी, जल्दी से बाहर निकल कर आई, बोली- पायल.. क्या कह रही है ?
पायल - अरे मैंने कहा, आलू है क्या ?
सासु माँ - हाँ (सासु माँ पढी़ लिखी है, बच्चों को होमवर्क भी कराती है, उनके पास आलू हमेशा होते हैं )
पायल- दो दे दीजिए, दीपक के लिए नाश्ता बनाना है...
सासु माँ अंदर गयी, चार पाँच आलू लाकर ऊपर से नीचे को लटके थैले में डालकर बोली, ले लो, थैला खींच लो... तो आज पायल के घर आलू की सब्जी बनेगी... सबको पता चला...
भूतल में रहने वाली सासु जी, जल्दी से बाहर निकल कर आई, बोली- पायल.. क्या कह रही है ?
पायल - अरे मैंने कहा, आलू है क्या ?
सासु माँ - हाँ (सासु माँ पढी़ लिखी है, बच्चों को होमवर्क भी कराती है, उनके पास आलू हमेशा होते हैं )
पायल- दो दे दीजिए, दीपक के लिए नाश्ता बनाना है...
सासु माँ अंदर गयी, चार पाँच आलू लाकर ऊपर से नीचे को लटके थैले में डालकर बोली, ले लो, थैला खींच लो... तो आज पायल के घर आलू की सब्जी बनेगी... सबको पता चला...
पायल - सब्जी वाले भैया सुनो..
बताओ,
पायल - भिंडी है? जल्दी से दे दो, सुनो पाव किलो ही देना... और सुनो छोटी छोटी ही देना, भरवाँ भिंडी बनानी है...
चालीस रूपये किलो है जी, पाव भर पन्द्रह रूपये की होगी..
पायल-दिमाग तो ठीक है तुम्हारा...
सब जगह तीस रूपये की हो रही है, चलो दस रूपये की दे दो..
ना दीदी.. इतने में नहीं हो पाएगा, हमारी खरीद ही ना पड़ती इतने की तो..
सब्जी वापस तराजू से नीचे रख दी गई..
पायल - ऊपर से ही चीखते हुए, तमीज नहीं है तुम्हें, ऐसे कैसे सब्जी नीचे रख दी...
सब्जी वाला - ना दीदी हम क्या तमीज दिखायेंगे आपको... दस - दस रूपये में तमीज भी मिलेगा क्या, हम तो आपन लोगों से सीख लेवें है...
तो आज दिन की मम्मी जी की सब्जी, सुबह दिये आलू, और अब एक गिलास दूध में काम चला, और भिंडी की सब्जी बनते बनते रह गई...
कुल मिलाकर आज सबको पता चला कि सुबह से दोपहर तक क्या क्या रहा...
बताओ,
पायल - भिंडी है? जल्दी से दे दो, सुनो पाव किलो ही देना... और सुनो छोटी छोटी ही देना, भरवाँ भिंडी बनानी है...
चालीस रूपये किलो है जी, पाव भर पन्द्रह रूपये की होगी..
पायल-दिमाग तो ठीक है तुम्हारा...
सब जगह तीस रूपये की हो रही है, चलो दस रूपये की दे दो..
ना दीदी.. इतने में नहीं हो पाएगा, हमारी खरीद ही ना पड़ती इतने की तो..
सब्जी वापस तराजू से नीचे रख दी गई..
पायल - ऊपर से ही चीखते हुए, तमीज नहीं है तुम्हें, ऐसे कैसे सब्जी नीचे रख दी...
सब्जी वाला - ना दीदी हम क्या तमीज दिखायेंगे आपको... दस - दस रूपये में तमीज भी मिलेगा क्या, हम तो आपन लोगों से सीख लेवें है...
तो आज दिन की मम्मी जी की सब्जी, सुबह दिये आलू, और अब एक गिलास दूध में काम चला, और भिंडी की सब्जी बनते बनते रह गई...
कुल मिलाकर आज सबको पता चला कि सुबह से दोपहर तक क्या क्या रहा...
बगल के घर की बाॅलकनी से संगीता आई, तो पायल ने उधर को मुँह किया और बोली देखो तो, कितना बत्तमीज है ये... सब्जी भी बेचने का तमीज नहीं है इसको... (लो और बोलो) संगीता भी जाॅब करती है, समझती है सब... हँस के बोली, भाभी जी कहाँ से लाते हो आप इतनी एनर्जी...
मैं भी लिखते - लिखते जोर से हँस पड़ी... ओफ्फो... हाहाहाहा...
मैं भी लिखते - लिखते जोर से हँस पड़ी... ओफ्फो... हाहाहाहा...
ओह गाॅड, फिर से अवाज़ आई, दीपक... दीपक...
ऊपर आ जाओ, जाना नहीं है क्या ?
दीपक जल्दी से - हाँ...
पायल अंदर को जाती हुई, फिर मत कहना कि मैं चली गई...
दस सेकेंड बाद ही, सुन नहीं रहे हो क्या, आॅटो आ गया क्या? ऊपर आ जाओ, मैं चली जाऊँगी...
फिर मत कहना, मैंने वॉर्न नहीं किया,
दीपक ऊपर जाकर - सुनो ऑटो क्यों ? अपनी गाड़ी में जायेंगे !
पागल हो क्या? तुम चुप रहो, अपने मन की मत करा करो हमेशा... (बेचारा दीपक, और वो भी अपने मन की, पायल का थप्पड़ ना पड़ जाये उसे )
ऊपर आ जाओ, जाना नहीं है क्या ?
दीपक जल्दी से - हाँ...
पायल अंदर को जाती हुई, फिर मत कहना कि मैं चली गई...
दस सेकेंड बाद ही, सुन नहीं रहे हो क्या, आॅटो आ गया क्या? ऊपर आ जाओ, मैं चली जाऊँगी...
फिर मत कहना, मैंने वॉर्न नहीं किया,
दीपक ऊपर जाकर - सुनो ऑटो क्यों ? अपनी गाड़ी में जायेंगे !
पागल हो क्या? तुम चुप रहो, अपने मन की मत करा करो हमेशा... (बेचारा दीपक, और वो भी अपने मन की, पायल का थप्पड़ ना पड़ जाये उसे )
अगली सुबह, यानी कि आज... दीपक का छोटा भाई, वर्षा की अवाज़ कम ही आती है सो वर्षा के पति का नाम नहीं मालूम है... हाँ तो छोटे भाई ने दीपक को अवाज दी..
भाई, ये लो फोन है... अपना फोन दीपक को पकड़ा दिया...
बातों से समझ आ रहा है कि टैक्सी वाले का है, छोटा भाई कहने लगा, कि मुझे क्यों बता रहे हो यार.. जिनका फोन है उसे बताओ... टैक्सी वाला कुछ बोला, फिर छोटे ने बड़े को अवाज़ दी, ये लो आप बात करो...
दीपक - मैं क्या बात करूँ
छोटा भाई - आपका फोन है, आप जानो...
दीपक - मेरा नम्बर किसने दिया ?
छोटा-फोन पकड़ो, मुझे देर हो रही है....
भाई, ये लो फोन है... अपना फोन दीपक को पकड़ा दिया...
बातों से समझ आ रहा है कि टैक्सी वाले का है, छोटा भाई कहने लगा, कि मुझे क्यों बता रहे हो यार.. जिनका फोन है उसे बताओ... टैक्सी वाला कुछ बोला, फिर छोटे ने बड़े को अवाज़ दी, ये लो आप बात करो...
दीपक - मैं क्या बात करूँ
छोटा भाई - आपका फोन है, आप जानो...
दीपक - मेरा नम्बर किसने दिया ?
छोटा-फोन पकड़ो, मुझे देर हो रही है....
बात ये है कि अँकल जी का हर महीने डायलिसिस होता है, और आज उन्हें हस्पताल जाना है, तो इस वजह से टैक्सी मंगायी है, अब टैक्सी का भाड़ा कौन अदा करेगा, इस बात की समस्या है, दोनों भाई एक दूसरे पर टाल रहे हैं... आँटीजी ने कल ही पूछा था दीपक से, वो भी घर तो आने तो कह के चले गया था.. सो अँकल जी ने टैक्सी वाले को फोन किया होगा...
ये हर महीने होता है
ये हर महीने होता है
अंकल जी ने किसी जमाने में बड़े शौक से अपने दोनों बेटों को पढाया लिखाया होगया, सोचा होगया बच्चे बड़े हो के हमारा ख़याल रखन्गे , एक तीन मंजिला मकान भी लिया है , दोनों बेटे एक एक मंजिल में रहते है , देल्ही में बहुत होता है ये सब , पर् आज ये बेटे कैसे अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे है ...
इस कहानी को लिखने का मेरे मंतव्य भी यही है , कि माँ बाप अपना सिर्फ फ़र्ज़ निभाए और कतई बच्चों में आश्रित न हो , आज अंकल जी ने अगर अपने घर को भाड़े में दिया होता तो उन्हें चालीस हज़ार कि अतिरिक्त इन्कम होती , और वो अपनी निजी कार ले कर एक ड्राईवर भी रख सकते थे , और अपनी और आंटीजी कि जिंदगी आसान बना सकते थे...
सब अपना फ़र्ज़ , जिम्मेदारी जरुर निभाए , भावनाओं में बह कर अपना सब कुछ यु ही न दे दें और कभी भी किसी से भी उम्मीद न बना के रखे... हर रिश्ते में जरुरी है... कभी भी किसी को दुःख नहीं पहुचेगा...
..समाप्त..
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