Adhyayan

Thursday, 29 September 2022

घुमक्कड़ी

मेरी मनोवृति घुमक्कड़ है।

सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करते हुए मुक्त भाव से यात्राओं को अभिव्यक्ति करने में जो आनंद मिलता है वो किसी और बात में नहीं।
और कुछ मित्र ऐसे मिले हैं कि अपनी इस प्रवृत्ति में इजाफा ही हुआ है।
घुमक्कड़ी के वजीफे मिलते रहे। 

मेरी स्वयं की प्रकृति सौंदर्य प्रेमी है।।
मेरा मन साहित्य की भांति घुमक्कड़ स्वभाव का है जो स्वयं की खोज में निरंतर वृद्धि करता है।

सदैव सुखद अहसास होता है कि हम जहां भी जाते हैं वहां से कुछ-न-कुछ ग्रहण करने को मिलता है।

मेरे द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम , सौंदर्य , भाषा , स्मृति हैं जिनको शुद्ध मनोभाव से प्रकट करने की कोशिश कर पाती हूँ।

घूमते हुए हम देश काल परिस्थितियों को तटस्थ भावों से देखते हैं और अपने मनोभावों को लिख पाते हैं ।।

यात्राओं में लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है।
हजारों किस्से कहानियों का जन्म होता है, लोग , उनका परिवेश, बोली, भाषा, संस्कृति, वहां का इतिहास और परंपरागत धरोहरों की छवियांँ मन मस्तिष्क में अंकित होता जाती हैं।

और उन ढेरों किस्सों से बनी मैं।
कभी अपनी सी और कभी तो खुद के लिए भी अजनबी।

घूमते हुए जंगलों, पहाड़ों और नदियों से साक्षात्कार करते हुए महसूस होता है कि इंसान इनके बिना कितना निरिह है।
नदियों के किनारे की सभ्यता हमें हमारे होने का प्रमाण देते हैं। 
प्रकृति के दिए अनमोल उपहार के सामने क्या है ?
वादियों, बुग्यालों और उन्नत पहाड़ों पर जीवटता के अहसासों से भर जाते हैं।

जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म अपना लिया, उसे पेंशन कहां, उसे विश्राम कहां ?
आखिर में हडि्डयां कटते ही बिखर जाएंगी।”

खुद के लिए अन्तरात्मा से आवाज़ आती है कि मेरा जीवन, आजीवन यायावर रहे।।।

जन्मों जन्मांतर तक 🌳🥰 #incredibleindia
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Tuesday, 6 September 2022

रेत

#oldies2003

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में 
सावन जैसी धूप लिखी है क़िस्मत के हर ख़ाने में _____________________________________

रेत की कागज पर लेटी हुई ऊँगलियाँ 
सहसा उसे देख कर, 
सोचती नमकीन शब्द! 
निशा भी निस्तब्ध... 
कुछ गुरेज कर /
करती अधेड़ सी पहल, 
वह छठी इंद्रिय समझती /
मार के अदृश्य कंम्पनों को, जागृत तरंगों को 
जगी ऊँगलियाँ, अब लिख रहीं कुछ यादें
मुलायम रेत की नम जमी पर...

                    "तनु "