Adhyayan

Monday, 28 February 2022

सफ़र

अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं।
रूख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं

हम दौड़ में अव्वल आयें ये ज़रूरी नहीं,
हम सबको पीछे छोड़ दें ये भी ज़रूरी नहीं।
ज़रूरी है  दौड़ में शामिल होना,
ज़रूरी है हमारा गिर कर फिर से खड़े होना।
ज़िन्दगी में इम्तेहान बहुत होंगे,
आज जो आगे हैं कल तेरे पीछे होंगे।

बस हम चलना मत छोड़ें,
बस हम लड़ना मत छोड़ें !!!

Thursday, 10 February 2022

काल चक्र

"काल चक्र" 

पतझड़ में घास... 
पतझड़ में एक पत्ते से घास ने कहा,
तुम नीचे गिरते हो तो कितना शोर मचाते हो! 
            मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हो! 
पत्ता क्रोधित होकर बोला, 
                  "बदजात माटी मिली" 
                    बेसुरी, क्षुद्र कहीं की, 
         तू ऊँची हवाओं में नहीं रहती, 
    तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने, 
फिर पत्ता, वह पतझड़ का वह पत्ता,
        जमीन पर गिरा और सो गया! 
           जब बसंत आया वह जागा, 
और.. 
तब वह घास की पात था! 
फिर पतझड़ आया और शिशिर की नींद से, 
                       उसकी पलकें भरी हुई थी, 
ऊपर से हवा में से पत्तों की बौछार हो रही थी! 
           वह बुदबुदायी, 
उफ, ये पतझड़ के पत्ते,कितना शोर करते हैं, 
           मेरे शिशिर स्वप्नों को बिखेर देते हैं !!!