ओह, मेरे पास भूत वर्तमान भविष्य है ही नहीं।
कब के फिसल चुके।
समय धीमा धीमा,
आसपास,
बिना किसी आगा पीछा के,
छितराया भर है। तनु 29/1/2015
Adhyayan
Tuesday, 29 January 2019
भूत वर्तमान भविष्य
गूँजती आवाज़ें
सुबह सवेरे, करीब साढ़े तीन बजे नींद खुल गई, लगा कि तुमने आवाज दी मैं नींद में ही जोर से हाँ कहा तो सबसे पहले मम्मी ने पूछा क्या हुआ मैंने कहा कि बाहर कोई हैै, आवाज दे रहा है।
वो बोली नहीं कोई नहीं है बहुत कोहरा और अंधेरा है अभी, इस समय कौन आयेगा, मैं बाहर गई, कोई नहीं था।
ऐसे ही गूँजती है कानों में आवाज़।
पर आवाज़ तो तुम्हारी लगी मुझे, हजारों आवाज में मैं तुम्हें पहचान सकती हूँ।
खैर....
फिर नींद कहाँ आनी थी। मैंने गैस पर चाय का पानी चढ़ा कर माँ से पूछा,
मदर इंडिया चाय लोगे आप ?
उन्होंने कहा अभी नहीं, सो जा, रातों को चलती रहती है।
बस सारी बातें फिल्म की तरह दौड़ने लगी।
तुम कब मिले, कैसे मेरे दिल के इतने करीब आ गए, कुछ याद नहीं है।
देखा तो तुम्हें पहले भी कई बार था, पर तुम मेरे कब बने मुझे पता नहीं चला।
मेरी हर बात में तुम्हारा नाम, कई बार किसी ने कुछ बताया कि तुम मेरे जाने से खुश हो, सुनते ही दो पल अजीब सा लगता फिर मेरी आत्मा कहती कि ऐसा हो ही नहीं सकता, सामने वाले से क्रास क्वैंश्चन करने से बात में गड्डमड्ड की स्थिति।
फिर उन सबकी सोच पर तरस आता कि क्यों ये मुझे तुमसे दूर करना चाहते हैं, पागल हैं, तुम्हारी और मेरी तो आत्मा एक है।
तुम्हारा मेरा रिश्ता ऐसा बन गया था कि जब तुम मेरे घर की तरफ आते थे और मुझे आभास हो जाता था कि तुम हो, मैं जल्दी से जाकर दरवाजा और गेट खोलती तो तुम भी चौंक जाते कि कहते, अरे कैसे पता चला?
मैं कहती, मुझे लगा कि तुमने आवाज दी।
फिर तुम मुझे देखकर कहते, नहीं तो...
और मासूम सी हँसी हँसते हुए कहते, आओ अंदर चलो।
शायद बात नहीं होती थी हमारी, मैं तुम्हें चाय को पूछती तुम कहते मैगी बनाओ, कुछ खाया नहीं है मैनें।
तुम्हारी मौजूदगी ही हौसला बढ़ाने के लिए काफी थी।
मैं अपना काम करते रहती तुम अपने फोन पर बात करते हुए काम निबटाते, मैं बीच-बीच में आकर तुमसे बातें करते रहती, हर समय अपनी शिकायतों का पुलिंदा तुम्हारे सामने रख देती, देखो ये कागज आया है, बिना देखे घर में ले लिया,
पूछते भी नहीं कि किसने दिया, अब देखो...
लगाओ चक्कर ?
और देखो तुम कैसे जोर से मुझे देखकर फिर से हंस देते, मैं आँखे फाड़कर तुम्हें देखते रह जाती... ?
तुम कहते...
लाओ, मुझे दे दो मैं देख लूँगा,
मेरी सारी मुसीबतों को जेब में रख कर चल देते।।
वीनीत के बाद से तुमने मुझे कभी अकेले नहीं छोड़ा, डैडी की बीमारी में महीनों मेरे पास अस्पताल की सीढ़ियों पर गुजारना, क्योंकि हम वहाँ से लगातार डैडी पर नजर रख सकते थे।
और अब 21 तारिख को तुम्हारा फोन, तुम्हें वो भी आभास हो गया कि मैं शायद...
कितना निस्वार्थ प्रेम है तुम्हारा,
पता है, मैनें ही मोतियों के दान किये होंगे कि तुम मुझे मिल गये।
तुमने अपने हजारों हजार काम छोड़कर मुझे सहारा दिया।।
कभी आज तक जतलाया नहीं, और आज भी लोगों की देख कर मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान बढ़ता जाता है।
जो जरा से में अपने को जतलाने लगते हैं।
तुम हमेशा खुश और सफल रहो, देखो मैं भी तो स्वार्थी हूँ, क्योंकि तुम्हारी वजह से जिंदगी जी रही हूँ तो तुम्हें याद कर रही हूँ।
तुम मेरी जान में बसे हो मेरे भाई रोहित!
जीते जी ही इस बात को कह पाऊँ, यही मंशा है मेरी।
मेरे सारे आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं।
तुम सदा खुश रहो।
अगर कोई जन्म होता होगा तो मुझे तुम फिर से मेरे भाई के रूप में चाहिए।
ये साथ बना रहे!
नर्म दूब
वो प्यारा अहसास हर पल महसूस होना
यूँ बाँहे फैलाकर बहती नर्म दूब में हवा सी फक्क, फना हो जाना!
मेरे भीतर कहीं जैसे सीपी में कीमती मोती पनपता है।
बादल के अंदर से बूंदों सा नीर छलकता है!
तारों का झिलमिल आँचल नीला स्याह आसमान पहनता है!
कई बार तेरे अहसास में खो जाना मुझे कितना चौंका देता है। मिल जाओ तो तकरार, न मिलें तो बेकरार।
मेरे ही अजब से सवाल हजारों अश्क बहा देते हैं ।
मैं यूँ जैसे बार-बार रेत में जैसे ठंडी बयारों से लड़कर कोई लहर लौटती है।
तेरी बाहों में सिमट कर तेरी ही लटों में उँगलियों को पिरोती हूँ।
कढ़ाई में छन- छन सी छौंक लगाती है तेरी यादों का छनकता अहसास।
वो उँगलियों की पोरों का हल्का स्पर्श, कोई भँवरा जैसे फूलों की कोमल सी पंखुड़ियों को छूता है।
नम बूँदे भरी हवा जैसे मेरे गालों को सहलाती है।
तेरे आ जाने से से रात की कोमल बाहों में प्यारा चाँद चमकता है और विशाल अम्बर में चमक बिखेरता है साथ में टिम टिम तारे भी आँख मिचौली के खेल में भाग लेने दौड़े चले आते हैं।
कभी टिमटिमाते, कभी लाईन बनाते
और कभी शरारती से छिप जाते।
वो भी तो एक अहसास होता है न जो पेट में तितलियों सा दौड़ जाता है, अच्छा लगता है, अच्छा लगता है! ☺️ ✌️ तनु 24/1/2019 Haldwani
Thursday, 24 January 2019
तितलियाँ
वो प्यारा अहसास हर पल महसूस होना
यूँ बाँहे फैलाकर बहती नर्म दूब में हवा सी फक्क, फना हो जाना!
मेरे भीतर कहीं जैसे सीपी में कीमती मोती पनपता है।
बादल के अंदर से बूंदों सा नीर छलकता है!
तारों का झिलमिल आँचल नीला स्याह आसमान पहनता है!
कई बार तेरे अहसास में खो जाना मुझे कितना चौंका देता है। मिल जाओ तो तकरार, न मिलें तो बेकरार।
मेरे ही अजब से सवाल हजारों अश्क बहा देते हैं ।
मैं यूँ जैसे बार-बार रेत में जैसे ठंडी बयारों से लड़कर कोई लहर लौटती है।
तेरी बाहों में सिमट कर तेरी ही लटों में उँगलियों को पिरोती हूँ।
कढ़ाई में छन- छन सी छौंक लगाती है तेरी यादों का छनकता अहसास।
वो उँगलियों की पोरों का हल्का स्पर्श, कोई भँवरा जैसे फूलों की कोमल सी पंखुड़ियों को छूता है।
नम बूँदे भरी हवा जैसे मेरे गालों को सहलाती है।
तेरे आ जाने से से रात की कोमल बाहों में प्यारा चाँद चमकता है और विशाल अम्बर में चमक बिखेरता है साथ में टिम टिम तारे भी आँख मिचौली के खेल में भाग लेने दौड़े चले आते हैं।
कभी टिमटिमाते, कभी लाईन बनाते
और कभी शरारती से छिप जाते।
वो भी तो एक अहसास होता है न जो पेट में तितलियों सा दौड़ जाता है, अच्छा लगता है, अच्छा लगता है! ☺️ ✌️ तनु 24/1/2019 Haldwani