तुम्हारे हाथों की छुअन... :)
अपने फ़लक के चांद को
कुछ सोचते हुए मैंने
खींच कर छुटाया
और थोड़ा दायीं ओर करके
फिर चिपका दिया
हाँ, अब सप्तर्षि ठीक से दिखता है
पर ऊपर की तरफ़ वो चार सितारे
अभी भी कुछ जँच नहीं रहे
ह्म्म
चलो इन्हें थोड़ा छितरा देती हूँ
लेकिन इससे जगह कम हो जाएगी
रोहिणी और झुमका के लिए
और हाँ, नीचे की ओर ये कई तारे
कुछ अधिक ही सीध में नहीं लग रहे ?
मैं इसी उधेड़-बुन में थी
अपने घर के आकाश को
सजाने की धुन में थी
कि तभी तुम आये
मेरे चेहरे पर छाई
दुविधा देख
तुम मुस्कुराये
कुछ पल गगन निहारा
फिर अपनी अंजुली में
समेट लिया आकाश सारा
पूरा चांद और हर इक तारा,
मैं चौंक कर अपनी उधेड़-बुन से निकली
मुझे अचरज में देख
तुम खिल-खिलाकर हँस पड़े
और बड़ी चंचलता से तुमने
सारे सितारे फिर से
आकाश में यूं ही बिखेर-से दिए
मेरी हैरत असीम हो गई!
हर सितारा अपनी जगह
तरतीब से टंक गया था!
चांद भी अचानक
कुछ अधिक ही
सुंदर लगने लगा!
और सारा आकाश
एकदम व्यवस्थित हो गया
फिर तुम करीब आकर
मेरे कांधे पर हाथ रख
बैठ गये!
मैं आश्चर्य की प्रतिमूर्ती बनी
कभी आकाश को, कभी तुम्हें
कभी तुम्हारे सुंदर हाथों को
देखती ही रह गयी!
कुछ तो हुनर है,
तुम्हारे हाथों की छुअन में
कि हर चीज़ सज जाती है
सलीके से!
चाहे वो ज़िन्दगी हो या आकाश !