अभी अभी
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सपाट दीवार पर
नक्काशीदार फ्रेम से
माला पहन मुस्कुराकर
बाहर झाँकते लोग
कभी नहीं बता पाते अपने यूं
तस्वीर हो जाने का कारण !
वे नहीं बता पाते जीवन से मृत्यु तक के
सफर की वे सारी दुश्वारियाँ और अड़चनें,
जो जीवन के दोराहों , चौराहों ,पगडंडियों ,
लाल बत्तियों और स्पीड ब्रेकरों पर उनसे दोचार हुई थी !
वे नहीं बता पाते कि उम्रभर
पाई-पाई जोड़कर सहेजे संभाले घर से
अपने अंतिम सफर को निकलते
उस ऊबड़ खाबड़ काठ की शैया पर लेटे
चुभी थी उनकी पीठ में कोई कील ,
काँधे बदलते लगे थे कितने हिचकोले,
वे नहीं बता पाते अग्नि का वो ताप
जिसने चंद मिनटों में राख कर
मिला दिया था उन्हे उनकी बिछड़ी मिट्टी से!
उनकी यह मुस्कुराहट मौन संकेत है इस सत्य का
कि अपनी बिछड़ी मिट्टी से मिलने का
यह सफर बताने का नहीं
अपितु मृत्यु को जीकर उसे स्वयं में