Adhyayan

Friday, 23 December 2022

प्रतिज्ञा

ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा ख़ुद को
चाँद चमकता है रोशनाई की तरह आवारा पानी पर
दिन एक-से भागते हैं एक-दूजे का पीछा कर

बर्फ़ पसर जाती है नाचते चित्रों जैसे
पश्चिम से फिसल आते हैं समुद्री पंछी
कभी-कभी एक जहाज़ । ऊँचे-ऊँचे तारे ।
एक स्याही को पार करता जहाज़
आह ! अकेला ।

अकसर मैं उठ जाता हूँ पौ फटते ही और मेरी आत्मा गीली होती है
दूर सागर ध्वनित-प्रतिध्वनित होता है
अपने बंदरगाह पर ।

ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
ऐसी करता हूँ प्रीत और क्षितिज छिपा लेता है तुम्हें शून्य में
इन सब सर्द चीज़ों में रहते करता हूँ तुमसे अब भी प्रेम
अकसर मेरे चुम्बन उन भारी पोतों पर लद जाते हैं
जो समुद्र को पार करने चल पड़े हैं, बिना आगमन की संभावना के
और मैं पुराने लंगर-सा विस्मृत पड़ा रहता हूँ

घाट हो जाते हैं उदास जब दोपहर बँध जाती है आकर
मेरा क्षुधातुर जीवन निरुद्देश्य क्लांत है
मैंने प्यार किया, जिसे कभी पाया नहीं ।
तुम बहुत दूर हो
मेरी जुगुप्सा लड़ती है मंथर संध्या से
और निशा आती है गाते हुए मेरे लिए

चाँद यंत्रवत अपना स्वप्न पलटता है
और तुम्हारी आँखों से सबसे बड़ा सितारा टकटकी लगाए देखता है मुझे
और क्योंकि मैं करता हूँ तुमसे प्रीत
हवाओं में चीड़ तुम्हारा नाम गुनगुनाते हैं
अपने पत्तों की तंत्री छेड़ते ।

पाब्लो नेरुदा

अनुवाद

Thursday, 8 December 2022

त्याग /आनन्द

उत्सव मेरे जीवन जीने के ढंग की बुनियाद है--त्याग नहीं, आनंद। 
आनंद सभी सुंदरताओं में, सभी उल्लास में, वो सब जो कुछ जीवन लाता है, क्योंकि यह सारा जीवन परमात्मा का उपहार है। 
मेरे लिए जीवन और परमात्मा पर्यायवाची है।

सच तो यह है कि जीवन ‘परमात्मा’ से अधिक अच्छा शब्द है। 
परमात्मा दार्शनिक शब्द है जबकि जीवन वास्तविक है, अस्तित्वगत है। 
‘परमात्मा’ शब्द सिर्फ शास्त्रों में होता है। यह मात्र शब्द है, निरा शब्द है। 
जीवन तुम्हारे भीतर है और बाहर है--वृक्षों में, बादलों में, तारों में। 
यह सारा अस्तित्व जीवन का नृत्य है । 

जीवन को प्रेम करो।

अपने जीवन को संपूर्णता से जिओ, जीवन के द्वारा दिव्य से मदमस्त हो जाओ।

मैं जीवन के बहुत गहन प्रेम में हूं, इसी कारण मैं उत्सव सिखाती हूं।
हर चीज का उत्सव मनाया जाना चाहिए; हर चीज को जिया जाना चाहिए, 
प्रेम किया जाना चाहिए।

मेरे लिए कुछ भी लौकिक नहीं है और कुछ भी पारलौकिक नहीं है।
सब कुछ पारलौकिक है, सीढ़ी की सबसे निचली पायदान से सबसे ऊपर की पायदान तक। 
यह एक ही सीढ़ी है : 
शरीर से लेकर आत्मा तक, शारीरिक से आध्यात्मिक तक, सब कुछ दिव्य है।  "तनु"