Adhyayan

Tuesday, 18 January 2022

#वाशिंगमशीन

#वाशिंग_मशीन

नीति ने अपने बेटे के बैग में से कपड़े निकाल कर धोने के लिए सेमीवाशिंग मशीन में डाल दिए!

एक बार और देख लेती हूँ सोचकर वो दो - तीन मिनट में मशीन तक पहुँची तो धक से रह गयी, जल्दी से स्विच ऑफ करके मशीन बंद की!

कुछ नोट ऊपर से ही तैर रहे थे, उसने हाथ से कपड़े उल्ट कर देखे तो बहुत सारे, बीस, सौ, पचास के नोट, फोटो आई डी, गाड़ी का लाइसेंस सब भीगे हुए थे।

उसे समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे हो सकता है ?
वो हतप्रभ सी थी ! 

फिर उसने सावधानी से सब सामान हटाया और बाहर आकर बेटे को आवाज़ देकर कहा, बेटा सुनो।

तुम अभी आए हो और मशीन में तुम्हारा पर्स और इतना सब सामान कहाँ से आया होगा ?

और इतना कहते कहते ही अचानक जैसे उसे कुछ ध्यान आया...

अच्छा, ओह....
अपने माथे पर हाथ लगाया और बोली, अरे ये सब तुम्हारे कपड़ों, जेब में होगा न ये पर्स।

अरे रे, ये क्या कर दिया मैंने!

तब तक बेटा भी वहां पर आकर चुपचाप मुँह को हाथ से ढककर चुपचाप मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....

नीति ने उसकी ओर देखा तो बोली,
 क्या?
ऐसे क्या मुस्कुरा रहे हो, कुछ कहते क्यूँ नहीं, डाँटो मुझे।

सौरभ, नीति का बेटा...
प्यार से उसका हाथ पकड़कर कहता है आओ यहाँ बैठो आप।
अब इसमें डाँटना क्या ।

मैं खुद धो लेता, आपने क्यों किया ? 

उसकी बातों में नीति ने कहा, सुन, सुन।

प्रेस करके सूखा देती हूँ। 
वरना सब कागज और पैसे गल जायेंगे।

सौरभ बोला - नहीं माँ, कोई बात नहीं माँ, सूख जायेंगे, आप टेंशन मत लो, सूख जाएंगे...

फिर नीति का उतरा हुआ चेहरा देखकर सौरभ बोला वैसे भी आपको कौन सा पैंट की जेबें चैक करने की आदत है।

ह्म्म.... 
हाँ....

कहते हुए नीति को याद आने लगा कि कई साल पहले इसी तरह से शादी के करीब-करीब साल भर बाद पति के घर आ जाने पर उनको नाश्ता आदि देकर कपड़े धोने की मंशा से उनका सूटकेस खोला कि कल तो यहीं से कल ससुराल के लिए जाएंगे।

वहां मशीन नहीं है यही से कपड़े वगैरह धो लेती हूँ। 
वहाँ तो पहाड़ पर ठंड भी बहुत होगी। 

कपड़े निकालते हुए उसमें दो लिपिस्टिक लैक्मे की क्रीम और कुछ भी प्रसाधन का सामान और कुछ अतंवस्त्रों के डिब्बों को देखा तो उसे लगा कि अरे वाह, मेरे लिए सामान लाए हैं।

वो मन में खुश हो गयी।
फिर खुद से बोली...
चलो, बाद में खुद ही देंगे।

उसने सूटकेस में से धोने वाले  कपडों को निकाला और मशीन में डालकर अपने काम में लग गईं। 

अगले दिन सुबह ही ससुराल के लिए निकलना है पैकिंग भी करनी है बाजार से घर की जरूरत और बाकी कुछ भी खरीदारी करनी है।
काफी व्यस्त थी नीति!
सब्ज़ी वगैरह लेनी है, पड़ोसी मिलेंगे, मिठाई, गुड़ भी लेना है।
पहाड़ पर गुड़ होना जरूरी होता है।
सासु के लिए कुछ गरम ब्लाउज के कपड़े लेने हैं।
अरे कितना काम बचा है अभी तो । 
कल सुबह जल्दी छह बजे की बस से निकलना भी तो है! 

अगले दिन ससुराल में आकर रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्तता के चलते याद नहीं रहा था कि पति के सूटकेस में उसके लिए गिफ्ट और सामान था।

तीसरे दिन तब याद आया जब वहीं कपड़े "अतंवस्त्रों" को जिठानी के धुले कपड़ो की बाल्टी में देखा।
साँसे ज्यादा तेज़ हो गई और सब घूमता हुआ सा लगा....
तब यही वजह थी क्या जब बड़ी जेठानी ने ताकीद की थी जरा इनका ध्यान रखना...
अच्छी बात नहीं की ये, तब नीति को इतना कुछ समझ में नहीं आया था!
आज एक कड़ी जुड़ गई।

फिर किसी तरह से खुद को घसीटते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए सीढियां उतरने लगी।
पीछे से कोई पुकार रहा था नीति, नीति।
अरे सुन क्या हुआ, अचानक कहाँ को जा रही है।
और नीति को जैसे कुछ सुनाई नहीं दिया था। 

तब से आज तक जेब या सूटकेस नहीं देखे थे नीति ने !
शायद अब आदत नहीं रही।

हाँ, भूल ही तो गयी थी! लेकिन 
वाशिंगमशीन के कपड़ों की तरह मन से सब साफ़ नहीं होता है न।