मैं कुछ लिखना चाहती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ
मेरा स्वप्न घरोन्दा छोटा था
पर सुन्दर सा ज्यों स्वर्ग समान
टूट गया, अब यादों के हेतु
रेत में रेखाचित्र बनाती हूँ,
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
यूँ नहीं विचार-शून्य मन हो
शान्त हृदय का प्रांगण हो
अनवरत प्रश्नों की महानदी में
तृण-मात्र बहा जाती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
सुनहली चाँदनी की स्याही से
आकाश पटल के कागज़ पर
कल्पना की कूची ले कर
कुछ चित्रित किया चाहती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
हे विधा! कैसा तुमने खेल किया
जीवन का ऐसा अजब आलेख किया
जीवन के इस कठिन मोड़ पर
तुमसे कई प्रश्न किया चाहती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
संध्या निशि सिंगार कर रही
है तिमिर साम्राज्य छाने को
इसी तम को मैं मान मित्रवत
हृदय की बात किया चाहती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
उतने मीठे गीत हैं होते
जितनी होती उन में पीड़ा
हृदय-भर अपनी इस पीड़ा से
एक गीत रचा चाहती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
जिव्हा जब उसे कह नहीं पाती
तब पीड़ा आँखों में भर आती है
अश्रु-बूंदें बहुत कुछ कह जाती हैं
जाने कब से नीर बहाती हूँ
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाती हूँ!
वेदना की क्या अभिव्यक्ति?
अश्रु समझ तुम सके नहीं
आँसूओं को ढाल शब्दों में
इन्हें मुखर करना चाहती हूँ