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एहसास
याद रहता है कि बचपन से ही अपने होने को लेकर मैं असहज महसूस करती थी, हर वक़्त कि, मैं क्यों हूँ और हमें क्या करना है या ऐसे ही जिंदगी चलती है क्या ?
हम सामान्य बातों के लिए तर्कसंगत तरीके से सोचते हैं और असामान्य बातों के लिए असंगत रूप से।
हमें अपने जानने की सीमा बढ़ानी चाहिए और कभी अनजाने बातों के लिए गहरे में उतरना चाहिए।
मानवता का मतलब मानवीय मूल्यों और गुणों श्रेय ईश्वर को देना होगा।
मैं घंटों बाग में पानी देते हुए तितलियाँ ढूंढती और रंग बिरंगे फूलों के बीच ज्यादा रहती वही खाना चलता वही किताबें होती।
आमों के पेड़ के नीचे ठिकाना होता था।
ये असहज व्यवहार नहीं बल्कि अपनी पसंद में निर्भर करता है।
मुझे साफ सुथरा प्रैजेन्टेबल रहना अच्छा लगता था लेकिन तब चूड़ी बिंदी जैसी महिला सजग अनुभूति कभी नहीं रही।
मेरी भाभियाँ किसी शादी के आने से पहले चौकस हो जाती थी ब्यूटी पार्लर जाना, मैचिंग कपड़े, सैंडल आदि आदि जो भी आवश्यक सामान होता उनकी गप्पें और खरीदारी शुरू हो जाती।
वो बाजार से सामान लाते और फिर घर में सब घेर कर देखते और अब बाकी क्या क्या है इस बात का विचार विमर्श होता।
मुझे उनको देखकर अच्छा लगता सामान में अपना इन्टट्रैस्ट दिखाती और जरूरत होती तो अपनी बात भी कहती।
भाभीजी लोग कहते कि तुम क्या पहनोगे या चलो ये लो आदि।
मैं कहती नहीं भाभी जी, इतना लकदक।
नहीं हो सकता।
अपना तो सूट या जींस ही सही है या फिर जाऊँगी नहीं।
यूँ ही अच्छा समय चलता रहता।
फिर समय पलटा और विपरीत परिस्थितियों ने कुछ कहना या न कहना बंद करा दिया।
कोई कैसे समझ सकता है जब तक उसे उसका अहसास न हो।
हाँ, सालों साल चलते रहने वाले प्रकरण में उस वक्त की याद आती जब सब साथ में खिलखिलाकर हँसते थे, खाते थे।
कई बार देखा कि लोग मिलते लेकिन परिस्थितिवश वो सामने हँसने मुस्कुराने से कतराते कि यहाँ इन हालातों में कैसे कोई हँसे ?
धीरे धीरे ये होने लगा कि अगर हम हँसे तो लोग मन में आश्चर्य करते कि अरे...
तुम कैसे हँस सकते हो ?
तुम्हारे तो हँसने के सारे रास्ते बंद हैं।
तुम्हारा जो कुछ भी है अब हमारा है।
अब मुझे सच में हँसी आती, मैं उन सबको देखते हुए अंदर से खूब हँसती कि क्या तुम इंसान हो ?
तब उन दिनों "जिमी" (फिमेल कुत्ता) हमारी दुनिया में आई और वो ऐसा महसूस कराती थी कि आश्चर्य होता कि ये जानवर कैसे हो सकती है ?
हर किस्म के अहसास उसके अंदर है वो देखती कि सब दुखी हैं तो खाना नहीं खाती या नहीं दे रहे तो माँगती नहीं।
वो खुशी का इजहार भी करती है।
बात जिमी के विषय में नहीं है अहसासों की है।
तुम लोग पहले सहानुभूति और दर्द महसूस करते थे और अब उस दर्द और सहानुभूति का अहसास करा कर अहसान जताते हो और उन दर्द से से निकलने नहीं देते हो।
"शिबो शिब "जैसे खुद ब खुद इजाद कर दिये गये शब्द...
तब घटित होती जाती घटनाओं में मैने समझा कि घटनाओं के बारे में चिंता होती है लेकिन चिंतित नहीं होना चाहिए।
और उसका मतलब समझने की कोशिश करनी चाहिए।
तुम स्वयं रास्ता निकालो क्योंकि तुम्हारी और मेरी जिंदगी अलग है नकल मत करो।
मैं उनके बारे में सोचती कि तुम्हारे सहारे हैं कोई न कोई साथ देने वाला है।
मुझसे होड़ मत करो।
और अपने से कहती सावधान।गलत को गलत कह दो।
कोई भी वह व्यक्ति किसी और के साथ भला हो सकता है और तुम्हारे साथ नहीं।
हम इस कठोर दुनिया में बचे हुए हैं तो सिर्फ योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि अपनी इच्छा शक्ति के बलबूते पर।
कि किसी जिम्मेदारी को आपने खुद ओढ़ लिया है और अब जरूरत है उसके बारे में सोचने की उसे पूरा करने की।
हुआ है ऐसा कि जब किसी ने कहा कि वह ऐसा कह रहा था तब अंदर से जोर से हँसी आई कि तुम बता रहे हो या तुम्हारे अंदर का जानवर बता रहा है कि तुम पूछ रहे हो।
कहती नहीं हूँ लेकिन कौन हो तुम ? क्या हो तुम ?
बेजुबां हो तुम तो....
तुम्हारा बातों को जानने की कोशिश का लालच दिख रहा है इतना मत गिरो कि कभी नजरों से न उठ पाओ।
अपराधी भी अपराध करने के बाद सोचता है। तुम कहाँ और कितने गिरोगे ?
क्या मैं तुम्हारी न कह सकने वाली बात नहीं पहचान पा रही, बिल्कुल पहचान रही हूँ।
गलत विचार हैं रूक जाओ वही।
जानवरों के पास आवाज होती तो देवदूतों की जबान में बात कर सकते थे।
मेरी दुनिया में तो फरिश्ते रहते हैं।
जानवरों के प्रति हमारा व्यवहार किसी नैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं होता लेकिन मानव जाति के बौद्धिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हो जाता।
हम इस दुनिया में बचे हुए हैं इसलिए नहीं कि योग्य है बल्कि इसलिए कि हम आपको, इस प्रकृति को और पशुओं को प्यार करते हैं।
मेरे एक दोस्त ने हाल ही में कहा था कि "तनु" तुमने तब सबको जवाब देना चाहिए था और मैंने कहा कि तब मेरे पास उससे भी ज्यादा जरूरी काम था।
आज जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं न, ये नहीं कर पाते।
तब उनको विचारों में खो जाते हुए देखा मैंने।
उनकी आँखों की पुतलियों सिकुड़न से उन्हें सोच में पड़ते हुए देखा मैंने।
और फिर मुझे ही उन्हें वापस लाना पड़ा, अरे ज्यादा मत सोचिए, सब ठीक है अब।
हाँ, ठीक तो है पर कैसे किया होगा ?
हम सोच नहीं पाते और...