Adhyayan

Monday, 18 May 2020

लम्बा सफर

आशा काम से घर आती है, कार से उतर कर बरामदे में देखती है कि वहाँ माँ बैठी हुई है और साथ में पड़ोस की आँटी भी बैठी हुई है।

आँटी कहती हैं, आशा बैठो बेटा, आपसे तो मिलना ही नहीं होता है।
जब तक हम घर में काम निपटारा करते हैं आप चले जाते हो।
और सुनाओ कैसा चल रहा है सब।

सब ठीक है आँटी।
कामकाज भी ठीक है जितना खोदो उतना पियो।
आजकल मार्केट ठंडा पड़ गया है, 

हाँ बिटिया तुम्हारे अंकल भी यही कहते हैं। बाजार में ग्राहकों की कमी आ रही है और दुकान पर बहुत कम लोग आते हैं।
कभी कभी तो पूरा दिन यूँ ही निकल जाता है।

आशा बैठकर सामने रखी मेज पर बोतल देखते हुए पूछती है, माँ ये पानी ठीक है।
वो हाँ कहते हुए कहती है अभी लाई हूँ, साफ है।
आशा पानी पीती है।
तभी माँ कहती हैं कि आज गीता का फोन आया था।
आशा पानी गटकते हुए पूछती है कौन गीता?

अपने आसपास गीता भी तो बहुत हैं।

अरे मूलचंद की बेटी जिसे तूने अपने साथ काम पर भी रखवाया था।
कह भी रही थी कि मुझे तो दीदी ने बचा लिया था आँटी , नहीं तो पता नहीं मेरा क्या हाल होता।
मेरी बहन यमुना वही फँस गई और बेचारी आज भी अपनी जिंदगी को रो रही है।

आशा को याद आ गया तो बोली, 
ओह अच्छा, वो नेपाल वाले।
अब ठीक है वो ?

हाँ, वो तो ठीक है पर उसकी बहन के साथ गलत हो गया उसके ससुराल वाले उसके दो लड़कों को ले गए और लड़की को छोड़ गये।

आगे माँ बोली, मैंने कहा उसको, लड़की को साथ में क्यों रखा उसको भी भेज देना था, क्या चाहिए वो लड़की।

आशा की पहले ही विचारों को लेकर अपने घर में सबसे कम ही पटती थी और अचानक इस बात ने उसे फिर से व्यथित कर दिया तो वो बोल उठी - क्यों लड़की क्यों जाती सिर्फ इसलिए कि वो लड़की है।
और आपको पता है न, कि वो लोग लड़कियों के साथ क्या करते हैं।

आँटी तुरंत बोली क्यों क्या हुआ था आप अपना दिमाग खराब मत करो बेटा, जाओ अंदर जाओ।

आशा बोली, बात अंदर जाने की नहीं है आँटी।
मैं तो अंदर चले जाऊँगी लेकिन ये क्यों इस तरह की बातें करते हैं क्यों लड़कियों के प्रति भेदभाव रखते हैं जबकि इनको पता है कि वो वैश्यालय चलाते हैं।
क्या होगा उस बच्ची के साथ ये अच्छे  से जानतीं हैं ।

तब कैसे गीता को पुलिस की मदद से बचाया मैं आपको बता नहीं सकती हूँ।

एक बार पूरा चलचित्र की भाँति उसकी आँखो के आगे घूम गया।

कैसे उसने गीता को बचाया था, साँसें अटक गई थी आशा की इस जद्दोजहद में।

यू पी से दो जीप भर कर मोटे साँड जैसे मुस्टंडे आए थे उसकी ननद के साथ।

सुबह चार बजे उसने गेट पर घंटी बजाई इत्तेफाक से उस दिन मैं घर में थी।
मैंने ही चैनल गेट खोला।

तो वो दुबली-पतली सी आशा के सामने बैठकर पैरों में लिपट गई थी कि दीदी मुझे बचा लो।
आशा ने तो उसको पहचाना भी नहीं उठा कर देखा तो गीता।

अरे क्या हो गया तुझे तेरी तो शादी हो गई थी न।
तू यहाँ कैसे ?
अच्छा चल चल अंदर चल, यहां बहुत ठंड है।
कितनी तेज हवा चल रही है और कहते हुए आशा ने अपना शॉल गीता के ऊपर डाल दिया।
वो रेशमी पीले रंग के  मुचड़े से सूट में और भी पीलिया की मरीज लग रही थी।

अंदर आकर उसने बताया कि शादी नहीं दीदी, भाई उसे हरिद्वार शादी में ले गया था और शराब पीने के बाद 3000 रुपये में उसको बेच आया था।
अब शादी कहो या जो भी।

हमारे यहाँ लड़की के घरवालों को लड़के वाले पैसे देते हैं दीदी, गीता बता रही थी। 

तो तूने मना क्यों नहीं किया?

उसने आशा की ओर देखा, आशा की नजरों ने उसके अंदर झांका तो अपना ही सवाल बेमानी लगा।

अपनी शादी के लिए आशा भी तो मना नहीं कर पाई थी। घरवालों के आगे 18 /19 साल की उम्र की लड़की की कहाँ चलती है।

फिर आशा को याद आया, पर तेरी शादी तो तेरे पापा उस बड़े उम्र के बिहारी से कर चुके थे न।

कैसे लोग हैं ये?

हाँ दीदी, आप तो बाहर ही रहते हैं न आपको पता नही है मैं वहाँ से आ गई थी वो भी बहुत मारपीट करता था।
बाहर नल से पानी लाना होता था तब भी मारता था और गलत शक करता था।

क्यों उसके घर में पानी का नल भी नहीं था तो क्या देखकर शादी की तेरी।

उसने भी पापा को तीस हजार रुपये दिये थे।
वो तो किराये के मकान में रहता था वैसे बिहार का था वो, यहां रेता बजरी का काम करता था लेबरों का ठेकेदार।
और उम्र में बहुत बड़ा था वो।
एक दिन उसने मारा, बहुत चोट लगी थी तो मैं वापस आ गयी ।

आशा की आँखें आश्चर्य से फैली रह गई, मतलब तुझे तेरे पापा ने भी बेचा था.....

आशा बड़बड़ाने लगी... 
अरे, जब घर में ही ऐसा है तो बाहर कैसे बचोगे भई।

तब आशा सुबह जल्दी नहा तैयार होकर उसे 5 बजे ही पुलिस थाने ले गई और एस ओ साहब को फोन किया वो भी जल्दबाजी में चौकी पहुंच गये।
आशा कृतज्ञता से भर उठी उनका धन्यवाद करते हुए खान साहब को सारी बातें बताने लगी ।

सारी बातें सुनकर अनुभवी एस ओ बोले अभी तो मैं आपकी मदद कर देता हूँ लेकिन ये फिर से ऐसा होगा।
आप या तो इसको अपने साथ रखिये या फिर इसको अपने घर को छोड़कर जाना चाहिए।
इसके बाप को मैं पहचानता हूँ।
खाने की रेहड़ी लगाता है और दारुबाजी में रहता है।

आशा कुछ देर सोच में पड़ गयी और जल्द से फैसला लेते हुए बोली, ठीक है मैं इसे अपने साथ ले जाऊँगी वहीं संस्थान में कुछ काम मिल जाएगा इसे।
आप फिलहाल इसकी मदद करें।

एस ओ साहब ने अपने मातहतों को आदेश दिया और जीप भेज दी।
कुछ देर में उन लोगों ने आकर रिपोर्ट दी कि, सर...
भगा दिया सबको।
आशा, गीता के साथ चौकी पर ही बैठी थी।
तब तक एस ओ साहब ने एक दो फोन भी अटैंड किए।

सिपाहियों के आ जाने के बाद एस ओ साहब बोले कि मैडम मैं आपको अच्छे से जानता हूँ इसलिए आपके एक फोन पर सोया था यूंही उठकर आ गया था।
आशा ने देखा कि उनके बाल भी यूँ ही अस्तव्यस्त हैं।

वास्तव में सुबह पांच बजे तो सब सोए ही होते हैं।
इस बात का आभास तो था ही, और कृतज्ञता से भर उठी आशा और हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा तो वो बोले, नहीं इस सबकी जरूरत नहीं आप अपना भी ख्याल रखियेगा।
वो लोग खतरनाक है।
आपके सामने मुझे ये जो दो फोन आए थे ऊपर से थे।
काफी इन्फुलेएंस लोग हैं, मजबूरी है, क्या कहें हम पुलिस की नौकरी कर रहे हैं लेकिन बदमाशी हर जगह है।

इसके ससुराल वालों ने उन लोगों को अच्छी सर्विस दे रखी है। अफसरों के फोन आ रहे थे।

आशा ने गीता की ओर देखा वो बोली हाँ दी, सब लोग आते हैं वहाँ।

मुझे भी वही काम करने के लिए कह रहे थे तभी मैं दो दिन से किसी तरह से भाग कर आ गयी हूँ।
मेरी हालत बहुत खराब हो गई है।
आशा अजीब सी स्थिति में आ गई। शर्मिदगीं देने वाली बातें सुनकर आशा, एस ओ साहब से नज़रें भी मिलाने के लिए झिझक महसूस कर रही थी।

अच्छा सर, हाथ जोड़कर, थैंक्यू कहते हुए तेजी से पलटने के बाद अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ती गई।

गीता भी लगभग दौड़ती हुई पीछे से आ कर गाड़ी में पीछे बैठ गयी।

आगे आकर बैठ, आशा ने कहा।
गीता चुपचाप आगे आ गयी।

तूने बताया नहीं कि तेरे साथ क्या हुआ था ?
बता रही थी दी, आप बातचीत में कम ध्यान देते हैं न।
आंटी जी ने सुना था।

खैर, चल अब.... क्या करना है ?

गीता बोली - दीदी जी, ये लोग तो फिर आ जाएंगे।
आशा गाड़ी चलाते हुए बोली, मेरे साथ चलेगी ?

कुछ कैंटीन की किचन में काम मिल जाएगा।

हाँ दीदी मुझे आप ले जाओ।
घर वालों में कोई भरोसा नहीं है मुझे।
यहाँ मुझे डर लगता है, ये फिर से कहीं मुझे ....

आशा ने गीता का वाक्य पूरा नहीं होने दिया...

ठीक है, चलो...
बैठो गाड़ी में, 
बहुत दूर जाना है अभी...

तनुजा जोशी ।

चित्र - गूगल साभार