देखते हुए महसूस होता है कि किसी भी प्यार में पड़े इंसान का दर्द सिर्फ दर्द होता है।
उसके लिए मर्यादाएं और बंधन बाद में आते हैं।
कष्टकारी जीवन।
Adhyayan
Saturday, 24 March 2018
दर्द
Friday, 23 March 2018
कौन सा है मेरा घर ?
बाबूजी - नीरा , हाँ,बाबूजी
देख तो घर में शायद जिजाजी के चाचा लोग आये हैं।
तू जाकर चाय पानी का देख।
दुकान पर भीड़ है और लाईट भी चली गई, मैं तो पूछ भी नहीं पाया, कौन और कैसे आये।
सीधा घर को भेज दिया है। और हां सुन, जेनरेटर भी आॅन कर देना!
नीरा - अच्छा ठीक है
नीरा - माँ...
माँ - हाँ
नीरा बोली - कोई आए हैं क्या ?
माँ - हाँ, अंदर बैठे हैं तू जरा देख तो, कौन है चाय बन गई है।
नीरा - मतलब आप लोग पहचान नहीं पा रहे हैं क्या ?
पूछो न, कौन है ?
इतनी रात हो गई है, आठ बजने वाले हैं, कहीं और जाना होगा तो कैसे जाएंगे ये ?
माँ - अब कैसे पूछूं ?
तेरी दादी बैठी है, बातें कर रही है। शायद कोई जानने वाले ही होगें, पहाड़ से आए हैं और तेरी बुआ की ससुराल वालों होंगे।
नीरा - माँ, आप बिना जाने कैसे अंदर आने को कह सकते हैं ?
अच्छा लाओ चाय, वगैरह देते हैं।
नीरा ड्राइंग रूम में पर्दा हटाते हुए आगे बढ़ी और बोली - नमस्कार।
आओ आओ बेटी कैसी हो ?
नीरा बोली, जी ठीक।
और ये कौन है, जानने की कोशिश में बोली
आपको घर कैसे मिला ? मतलब किसने बताया ?
वो फुफाजी की बात करने लगे।
मेरा शिष्य था वो। और घर वालों से खूब अच्छा है। सभी लोग बढ़िया है।
कुल मिलाकर यह हुआ और सबने सोचा कि फुफाजी के जानने वालों में से हैं, अब आज यही रहेंगे।
90 के दशक की बात है, सीधे लोग हुआ करते थे।
किसी के घर हल्की सी जान पहचान से लोग बहुत आदर सत्कार करते थे।
रात के खाने में खाना सर्व करते करते ऐसा लगा कि मुझमें ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं मेरी स्कूली शिक्षा और अभी बी. ए के सब्जेक्ट वगैरह।
न जाने क्यों नीरा के दिमाग में करंट सा लगा और अचानक मुँह से निकला कि अंकल जी आप, हमारे घर यहाँ कैसे पहुचें ?
फुफाजी ने तो कुछ भी नहीं बताया और न यहाँ रहते हैं।
उन्होंने खाना खाते-खाते कोट की ऊपरी जेब से एक कागज़ निकाला और नीरा को थमा दिया।
जिसमें नीरा के परिवार की जानकारी और पता लिखा था।
पूरा पते के साथ लिखा था इकलौती लड़की, दो भाई है और हार्डवेयर का लंबा चौड़ा करोबार है।
अच्छा परिवार है।
पढ़ कर मैंने संशय की स्थिति में उनकी तरफ देखा अपनी मां की तरफ।
नीरा परेशान सी हो गई थी।
अच्छा मैं पानी लेकर आती हूँ और अंदर को जाते हुए माँ को इशारे से साथ आने को कहा।
माँ आई तो नीरा बोली, कैसे लोग हो, पता नहीं कौन लोग हैं ये।
ये मुझे देखने आए हैं। उस कागज पर मेरी जानकारी और चिह्न बना हुआ है।
कोई भी इस तरह कैसे माँ ?
कोई गाइडेंस नहीं।
समझ में नहीं आया कि क्या किया जाए।
घर में आकर इत्मीनान से बैठे हैं रहने के लिए आए थे और हमें पता तक नहीं कि कौन है ?
नीरा की दादी को घर में सब ईजा कहकर पुकारते थे तो नीरा ने दादी को यूँ ही आवाज़ दी,
"इजा" देखो आपको कोई बुला रहा है।
वो अंदर आई तो उनको उनके कमरे में ले जाकर बात बताई।
एक वही थी जो बात सुनती और समझती थी।
नीरा ने कहा कि इजा, ऐसे कैसे ?
उनको भी झटका लगा और वो अपनी भाषा में बोली।
भौत्ते चालाक लोग छन यो तो, बगैर बत्तैये कसी ए गी यों लोग।
(ये लोग तो बहुत ही चालाक लोग हैं, बगैर बताए कैसे आ गये हैं )
नीरा ने कहा, ईजा घर में किसी को भी अक्ल नहीं है उनको क्या पता कि इस घर में मूर्खों का राज है।
अब क्या होगा ?
इजा बोली - के जै बतौं अब (क्या बताऊँ अब)
नीरा के मां और बाबूजी चुप।
नीरा अपनी ईजा से कहा कि उन्हें हमें पीटने के अलावा कुछ नहीं आता भी है।
अभी कुछ कहो तो पिल जायेंगे।
न कभी पढ़ाया न कभी प्यार।
बस हमें पैदा करने के लिए जैसे अपराध बोध से ग्रस्त हो और मार कर अपनी भड़ास निकालते थे।
भाई बहन हर वक्त डरे सहमे।
इजा कुछ देर बाद सोच समझ कर फिर उनके पास बैठी और विस्तार से चर्चा की।
इजा ने कहा कि हमारी लड़की को मैने बहुत लाड़ से पाला है और पहाड़ में रहना इसके बस की बात नहीं है।
अभी पढ़ रही है छोटी सी है, अठारह साल भी पूरे नहीं हुए हैं।
अगले साहब - हा हा हा हा हा, पढ़ तो फिर भी लेगी, मैं भी मास्टर हूँ।
हम कोई रोक टोक नहीं लगायेंगे।
मतलब ठान कर और पूरी तरह से ठोक बजाकर आए थे।
खैर एक दो घंटे बाद सो गये।
नीरा भी अपने बैड में आकर लेट गयी।
आखों में नींद का नामोनिशान नहीं और आसूँ।
ईजा ने सिसकती हुई आवाज पहचानी और बोली... यहाँ आ बाबू, ऐसे नहीं रोते। आ मेरे पास आ।
देख मुझे अच्छा नहीं लग रहा।
आ मेरा बेटा , मेरे पास आ जा।
नीरा , ईजा की जान थी,
बहुत प्यार करती थी, उन्होंने ही अपना दूध पिला कर पाला पोसा।
नीरा चुपचाप उनके पास जाकर, उनको कस कर पकड़ कर सो गई।
उसने कहा आप मुझे बचा लोगे न ?
आप बाबूजी को मना कर दोगे न।
अभी तो कालेज में एडमिशन लिया है और अच्छे लोग नहीं लग रहे हैं ये मुझे।
हाँ - हाँ, तू सो अभी।
कुछ नहीं होगा, मैं तुझे लेकर यहाँ से चले जाऊँगी। तू सो अभी।
अभी तेरी इजा जिंदा है।
उनकी बात पर नीरा को भरोसा था उन्हें पकड़े हुए ही सो गयी थी।
सुबह अचानक चार बजे ही डर से आँख खुल गई।
इजा बोली, सो जा अभी, उजाला नहीं हुआ है।
नीरा पलट कर सोने की कोशिश करते रह गयी।
नींद आने का सवाल ही नहीं था।
पांच बजे तक सब जाग गये, अंकल आँटी भी तैयार हो रहे थे उनको सात बजे की गाड़ी पकडनी थी।
सब लोग काम में व्यस्त हैं उनके लिए नाश्ता बनाया और खिलाया।
बिना कुछ बोले, कुछ कहे सुने बिना एक तरफा रिश्ता पक्का हो गया और अब नीरा घर के लोगों को उनके घर जाना था।
( नीरा का आज भी एक सवाल है कि ऐसा ही होता है क्या ? )
या इसी घर में किसी के पास भी सोचने समझने की शक्ति नहीं है।
अगले कुछ महीनों के दौरान नीरा की माँ, बुआजी और उसके भाई के साथ उनके घर गये पता नहीं कैसे क्या देखा, क्या समझा... रिश्ता पक्का कर आए।
वहाँ क्या हुआ, क्या बातें हुई कुछ पता नहीं चल पाया, पर नीरा के भाई ने आकर नीरा से कहा नहीं दीदी , आपके लायक नहीं है फिर भी बात पक्की हो गई है, पर मैं छोटा हूँ क्या कहूँ।
माँ ने हा कर दी है, मै कुछ कहुँगा तो बाबूजी मारेंगे।
नीरा ने खाना बनाकर रखा हुआ था उसके चाचा के बच्चे घर आए थे तो वो सबको खाना खिला कर किचन समेट रही थी।
भाई बोलते जा रहा था, पर तुम चिंता मत करो, मेरा भी काम सेट हो जाएगा न तो मैं आपका खयाल रखूँगा।
अभी तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है।
नीरा को लगा कि ये ऐसा क्यूँ बोल रहा है, कैसा होगा वहाँ, क्या ये एक चेतावनी नहीं है?
नीरा को समझ नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी।।।
सब कुछ यंत्रवत हो गया, शादी भी हो गयी।
भंयकर बारिश का मौसम बन गया, कड़कड़ाती ठंड में नीरा ससुराल पहुंच गई।
जेठ के महीने में कभी इतनी बारिश नहीं होती है जाते वक्त इतनी जबर्दस्त बारिश, जैसे प्रकृति भी रो दी, कुछ ऐसा ही महसूस किया नीरा ने ।
लंबे सफर के बाद रात को ससुराल पहुँची , एकदम गाँव था, भीषण पहाड़।
देखकर ही धक्क सी हो गयी।
कलेजा गले तक आ गया, ओफ... क्या देखा उसकी माँ ने यहाँ ?
एक रिश्ते की आँटीजी भी।
ये तो कोई दुश्मन भी नहीं करता हैं।
रो तो वैसे भी रही थी, तब तो धच्च से जमीन पर बैठ गयी, पैरों को लकवा मार गया।
हे ईश्वर, ये कौन से कर्मो की सजा दी? क्या गुनाह किया है जो ऐसे पहाड़ में ???
गांव की एक औरत ने नीरा को पकड़कर उठाया और धीरे से कान में कहा, उठ चिंता मत कर, अब तो आ ही गयी है, हिम्मत कर।
नीरा ने उनकी ओर देखा, आसूओं से उनका चेहरा भी साफ नहीं दिखाई दिया, अंधेरा हो गया था।
तभी किसी ने कहा कि अपनी सास और जितनी भी औरतें हैं उनके पैर छूकर उन्हें पैसे देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं तो ऐसा ही कर।
नीरा ने उलझे हुए दुपट्टे और पिछौडे़ में से अपना पर्स निकाला, फिर कई औरतों को पर्स में से लिफाफे निकाल कर पकड़ाती और उनके पैर छूती औरते कुछ कहती एक दूसरे को कुहनी मारती बड़ी असभ्यता से सब चल रहा था।
आखिर में उससे फिर पैसे माँगे तो नीरा ने पूरा पर्स ही किसी के हाथ में देते हुए कहा आप बाँट लिजिए।
मुझे समझ नहीं आ रहा है।
अंदर जबरदस्त विचारों में...
कैसी शादी है, कितना अंधेरा है यहाँ।
फिर पत्थरों के बने बरामदे में से होते हुए दरवाजे से अंदर दाखिल हुए और लकड़ियों की सीढ़ियों पर चलने लगे।
लाईट नहीं के बराबर आ रही थी, नीरा को भारी भरकम लंहगे और जेवरात से चलने में दिक्कत हो रही थी और घुमावदार सीढियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी।
और अंदर से इच्छा हो रही थी सब कुछ छुड़ा कर वापस भाग जाए।
लेकिन कैसे...
लकड़ी का मकान था आखिरकार सीढियां खत्म हुई और तीसरी मंजिल पर एक कमरे में दाखिल होकर उसे जमीन पर एक चटाई पर बैठा दिया गया।
फिर औरतें उसे छू छूकर देख रही थी। अजीब सा लग रहा था कि जैसे कोई मंगल ग्रह की प्राणी फंस गया है।
कोई कान देखता और कोई जेवर।
कोई कपड़े टटोल रहा था कोई कीमत पूछ रहे थे।
हे भगवान्।
अपने घरवालों की याद आ गई और मन में कह रही थी
कोई तो मुझे ले जाओ, आ जाओ प्लीज।
रात के दस बजे फिर उसे चलने के लिए कहा तो वो अपनी जगह से खड़ी हो गई उसका रोम रोम दर्द कर रहा था जबरदस्त ठंड में अपने को दुपट्टे से समेट कर किसी तरह बैठी हुई थी।
एक कमरे में आते ही अज़ीब सी सीलन भरा बदबू का झोंका आया, 8×8 का कमरा, जिसमें एक पलंग और मेज लगी थी।
पलंग पर चादर पहचान ली कि ये तो उसके दहेज की है और पलंग भी वही है।
अभी-अभी सेट किया गया है और कमरे में सीलन भरी बदबू आ रही है।
दो तीन औरतें थी वो कुछ देर बैठ कर अपनी बातें करते रहे जिसमें शायद मोहल्ले की औरतें थी गाय भैंस और जंगल की घास लाने ले जाने किस्म की बातें चल रही थी।
कुछ देर बाद वो भी चले गए।
शायद एक या दो बजे वो बंदा आया, जिससे उसकी शादी हुई थी और जूते मोजे उतार कर बोला कि बाहर जाना है या लाईट बंद कर दूँ।
नीरा, घबराई तो थी ही, मुश्किल से बोली,
बाहर क्यों?
बाहर तो जंगल है ।
वो जोर से बोला, बाथरूम वगैरह।
नीरा - ओह, अच्छा... नहीं, नहीं जाना है ।
बड़ी हल्की सी लाईट थी जीरो वाट का बल्ब और लो वोल्टेज के साथ जल रहा था।
नीरा ने कहा, मुझे स्विच बता दीजिए जाना होगा तो मैं जला लूँगी।
वो अजीब सी आवाज़ में बोला, जनरेटर चला है।
नीरा को उसके पहले दिन ही चीखने का कारण समझ में नहीं आया और फिर हल्के से बोली - अच्छा।
कोई बात नहीं।
स्विच बोर्ड कहाँ हैं? दिख नहीं रहा।
इतना कहते ही वो आदमी आपे से बाहर हो गया और बोला....
अपने शहर के ड्रामे यहां मत दिखाना।
हमने पहले बताया था कि यहाँ लाईट नहीं है।
(ओ गाॅड, लाईट नहीं है मतलब। पूरे घर में लाईट नहीं है ?)
आज जनरेटर से काम कर रहे थे।
फिर उसने ऐसे चिल्लाना शुरू कर दिया कि नीरा का सिर घूम गया, लगा कि ये क्या हो गया ? और चीखते हुए बोलना सुन कर उसका भक्क से जोर से रोना ही निकल गया।
डर से खड़े हो गयी और पीछे खिसकते हुए एकदम दिवार से लग गई । उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे, खड़े रहे या पलंग पर बैठ जाए या यूं ही....
हे भगवान्, यूँ ही कुछ देर उधेड़बुन में रही तभी उसको खर्राटे की आवाज आने लगी देखा तो वो सो चुका था।
क्या ऐसा होता है नये घर में आकर।
सारा समय दिवार के साथ लग कर , थरथराते हुए और रोते हुए रात निकाली।
रात में पता नहीं कब वो थककर फर्श पर बैठ गयी थी और कब उसे रोते रोते नींद आ गयी।
सुबह आंख खुली तो कमरे का दरवाजा खुला था, नीरा, झटके से उठी और झपट कर दरवाजा बंद किया।
फिर हल्के से बाहर झाँक कर देखा तो कोई नहीं दिखा।
कमरे से बाहर पैर निकाला तो देखा कि बांयी ओर एक दरवाजा था और दायें तरफ से नीचे को जाती सीढियां।
और उसी तरफ को आगे जाने का रास्ता।
फिर बायीं तरफ का दरवाजा हल्के से धकेल दिया तो वो एक पुराना बाथरूम नुमा कमरा था।
पर समझ में नहीं आया कमरे में नल नहीं था बीच में एक छोटी सी सीमेंट की दिवार ही उसके बाथरूम होने की संभावना बता रही थी कि अचानक साबुन में नजर पड़ी तो कन्फर्म हो गया बाथरूम है।
क्या करूँ, पानी कहाँ से आएगा।
कल से रोते हुए हालत खराब हो चुकी थी, मुँह धोना था।
इतने में देखा कि सीढ़ी पर से एक लड़का ऊपर की तरफ आ रहा था।
उसको पूछा, तुम कहाँ रहते हो, वो बोला नेपाल।
कहाँ..असमंजस में पड़ कर फिर पूछा अभी कहाँ से आ रहे हो ? ..
वो बोला, नीचे से। पानी लेकर।
पानी लेकर क्यों ?
कमरे की तरफ इशारा कर के कहा यहाँ पर भी पानी नहीं है।
वो हंस कर बोला, दीदी यहां पानी नहीं होता है, बहुत दूर से लाना होगा।
नीरा का मन रोने को हो गया।
उसका हाथ ही पकड़ लिया और कहा कि मुझे बहुत प्यास भी लगी है और मुँह धोना है, नहाना है मुझे।
वो बोली - मैं, मैं क्या करूं ?
यहाँ के सब लोग कहाँ हैं, मुझे अकेले डर लग रहा है।
वो बोला, सब बाहर है कोई खेत में है कोई पानी लेने गया है।
अच्छा,
तुम, मुझे पानी पिला दो। मैने कल से पानी नहीं पिया है और नहाना भी है मुझे।
फिर उसने मुझे एक कनस्तर में पानी लाकर दिया और कहा इसी कमरे में नहा लो।
उसने कृतज्ञता से उस बच्चे को धन्यवाद दिया और पचास रुपए पकड़ा दिए। वो बहुत खुश हो गया और नीरा भी।
जल्दी जल्दी अपना सामान खोल कर कपड़े निकले।
नहाया और नयी जगह को टटोलने लगी।
नीरा कमरे से बाहर लंबी सी बालकनीनुमा जगह पर जाकर वहाँ का भूगोल समझने की कोशिश कर रही थी कि कहाँ से कहाँ को जाते हैं।
काफ़ी पुराना, कुछ डरावना लेकिन बड़ा सा घर है कोई दिखाई भी नहीं दे रहा है।
आगे बढती हुई बालकनी गयी तो देखा कि सामने से पूरा हिमालय नजर आ रहा था।
पर कोई उत्साह नहीं हुआ।
अचानक कुछ नीरा नीरा की आवजें आई तो वो चौंक पड़ी।
सास ससुर और ननद कमरे में पहुंचकर आवाज़ लगाने लगी।
आवाज सुन कर हां जी, आई.... कहकर भागी।
नयी जगह पर आवाज़ समझ में नहीं आई कि कहाँ से आ रही थी और अपना कमरा भी भूल गयी।
बस हाँ हाँ कहे जा रही थी।
फिर अचानक वो लड़का आया और जल्दी से नीरा का हाथ पकड़कर कर दौड़ते हुए कमरे के बाहर तक पहुंचा आया और एकदम गायब हो गया।
तब अंदर देखा, सास, ससुर (वही अंकल आंटी) और दो तीन जने और।
ससुर जी बोले, जो सामान और रुपए पैसे हैं । अपनी सास को दे दो, सब जगह रखना सही नहीं होता है।
मूकदर्शक सी अलमारी और सूटकेस की चाबी ही पकड़ा दी।
(एक ही बात सोची, कि ले लो, तुम्हारे घर में हैं अब जो चाहो करो। )
खैर शुरूआत इतनी जबर्दस्त हुई थी तो अब तो अंजाम अभी बाकी था।
गतांक से आगे...
अगले दिन सुबह से ही सामान बँट जाने के बाद घर को समझने के लिए नीरा ने रसोईघर में कदम रखा।
वहाँ उसने तीन औरतों को देखा और बढ़ कर उसने उनके पैर छूने चाहे तो वो जोर से हँस दी और बोली अरे इसके पैर क्यों छू रही हो, ननद है वो तुम्हारी।
नीरा को समझ नहीं आया कि उनकी गोद में तो बच्चा भी है।
खैर, जो भी हो।
अच्छा इसका मतलब पहले शादी हो गई होगी, नीरा को अपनी बुद्धि में हँसी आ गई और हल्की सी मुस्कान के साथ अगली दोनों औरतों के पाँव छूकर एक तरफ को हो गई क्योंकि कोई कुछ कह ही नहीं रहा था।
या तो क्या बोले जैसा है या फिर बोलेंगे नहीं ।
इतने में किसी की आवाज आई...
नीरा ...
नीरा ने अचकचा कर आवाज की दिशा में सिर उठाते हुए कहा - जी।
और फिर अंदर की महिलाओं की ओर देखा और जैसे पूछना चाहा कि कौन आवाज दे रहे हैं ?
नीरा की ननद ने कहा ईजा (माताजी) है बाहर, आपको बुला रही है।
नीरा रसोई घर से बाहर निकली तो एक दरवाजा सामने की ओर जाते हुए देखा जो एक कमरे में जाता है और बाई ओर एक दरवाजा बरामदे में खुलता है।
नीरा सामने की तरफ बढ़ गई, कमरे में प्रवेश कर के देखा कि दाई ओर फिर एक दरवाजा है उधर बढ़ी तो वो वो 6/12 का एक लंबा कम चौड़ाई वाला कमरा था इस कमरे और मंदिर वाले कमरे के बीच में लकड़ी की दिवार थी जिसके एक कोने में मंदिर स्थापित है सामने दो तीन बक्से एक के ऊपर एक जमा कर रखे हुए थे।
दूसरी ओर आमने सामने दिवार से लगी दो चारपाई है और एक चारपाई के ऊपर एक रस्सी पास ही खिड़की से लेकर दरवाजे तक खूंटी में बंधी हुई है और उसके ऊपर लाईन से ढेर सारे ऊनी सूती पहनने के कपड़े टंगे हैं और दूसरी चारपाई के ठीक ऊपर लकड़ी के तख्तों से ठोक कर बनाई हुई दो खाने वाली कानस या अलमारी सी बनी थी जिस पर पीले पड़ गई ढेर सारी किताबें और कुछ रोजमर्रा की काम आने वाली चीजें रखी हुई थी।
पैरों को वैसे ही वापस बाहर की तरफ खींचा और मन ही मन में डर लगने लगा कि अब फिर से कोई चिल्लाएगा कि कितनी देर हो गई है।
ऐसा सोचना था कि फिर आवाज आई,
हाई रे...
कहाँ रह गई कितने दिन लगेंगे, यहां तक आते आते ?
हाँ, जी जी आ गयी। अंदाज़ नहीं आ रहा है कि किधर जाऊँ ?
नीरा ने बाहर पहुंच कर देखा कि
सास का ठहाका देखने लायक था कि उनके अपने बड़े से लकड़ी के घर के लिए गर्वित तनी हुई गर्दन थुलथुल वजन की ज्यादा लंबी न हो सकी लेकिन हंसने से पूरा शरीर रबड़ के जैसा थर्रा गया था।
अपने घर के विस्तार के लिए उठा विशाल सा सीना और भी ऊँचा हो गया।
सास बरामदे में जमीन पर बिछे कालीन पर चादर डाल कर अधलेटी मुद्रा में मसनद टेक लगाए हुए लेटी हुई है।
नीरा ने वहाँ बैठते हुए उनके पैर छुए और फिर सास ने उसको आदेश दिया कि जाकर कोई अच्छा सा सूट पहन कर ला। फिर पूछा कि है तेरे पास ?
जी हाँ है।
फिर बोली नया है ?
हाँ जी चार पांच हैं।
जा लेकर आ पहले मैं देखूँगी।
उनके हाव भाव, चढ़ी हुई भौंहें, भंयकर लाल आँखे उनका विशालकाय शरीर नीरा को डराने और उलझन में डालने के लिए काफी था।
नीरा उठी और कमरे की ओर बढी, और सोच रही थी कि अब उसे हरदम इनके साथ ही रहना होगा न।
नीरा अपने सूट निकालकर वापस ऊपर आई और सास के सामने धीरे धीरे से अपने कपड़े रखने लगी तो उन्होंने झपट कर सब एक साथ खींच लिए।
नीरा के हाथ का नाखून भी धागे में उलझ कर खींच गया वो दर्द से कसमसा उठी लेकिन उसने मुंह आवाज नहीं निकाली और कपड़े एकदम छोड़ दिये।
उसकी सास कपड़ो को उलट पलट कर देखते हुए एक हल्के हरे और पीले फूलदार सूट को पकड़कर कहने लगी, ले इसको पहनकर जल्दी आ ।
और एक सूट को अपने अपने बड़े से पेट के नीचे दबाते हुए बोली ये कमला (ननद ) पहनेगी।
उसके लिए भी तुम लोगों ने कुछ करना चाहिये।
बाकी तू ले जा।
वो सूट नीरा के छोटे भाई ने उसे वैष्णो देवी से लाकर दिया था नीरा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन डर से कुछ बोली नहीं, हाँ मन में सोच रही थी कि काश वो बाकी के सब सूट ले लेते, भाई का लाया हुआ वापस कर देते ।
नीरा कपड़े समेटते हुए उठी तो नीरा को याद आया कि कालेज में पढ़ने के समय पैसे की कमी होने के बावजूद उसकी दोस्त ने उसे यह सूट शादी में तोहफे के रूप में देते हुए कहा था इसे मेरी तरफ से रख, आज तक तेरे खूब सूट पहने हुए हैं और मैं कभी कुछ नहीं दे पाई।
इसे पहनकर खूब अच्छे से मेकअप करना बड़ा सा सिंदूर लगाएगी न तो तुझ पर खूब जँचेगा।
और ज्यादा सुन्दर लगेगी तू।
हाँ ऐसे ही पागल जैसी मत बने रहना भगवान ने तुझे अपने हाथों से बनाया है पतली सी नाक बडी़ सी आँखे। खूब गहरा काजल लगाना और फिर बालों के अंदर काला टिका लगा लेना नहीं तो तुझे नजर लग जाएगी।
नीरा ने सूट पकड़ते हुए अपनी दोस्त से बोली चम्मू,
मुझे नहीं जाना है, कुछ कर दे प्लीज़।
मुझे यहाँ से कहीं दूर ले जा दे।
मुझे नहीं करनी है ये शादी।
वो लोग मुझे बहुत अजीब से लगे और उसे कस कर पकड़ कर रोने लगी।
चम्मू जल्द से खड़ी हुई और दरवाजा बंद कर दिया ताकि बाहर आवाज न जाए नहीं तो अगर पिताजी सुन ले तो अभी काण्ड होने में देर नहीं लगेगी।
वो बोली अब ऐसा मत कर कोई नहीं है जो तेरा या मेरा साथ दे सकें।
हम अभी कालेज फर्स्ट ईयर में हैं यार, हम कर ही क्या सकते हैं ये चाचा जी को या तेरी मम्मी को ही न जाने किस बात की जल्दी है।
कौन तुझे पसंद नहीं करता एक से बढ़कर एक रिश्ते आते तेरे लिए तो। चुप हो जा कल शादी है ऐसे मत रो।
आँखों में गढ्ढे बन गये हैं तेरे, काले घेरे हो गये हैं। इतना मत रो।
क्या पता, आगे सब अच्छा हो। यहाँ भी तो हर वक्त डाँट, सख्ती ही है।
और नीरा पुरानी बातें सब सोचते हुए कपड़े बदलकर आई तो सास ने लेट लेटे ही उसको औधे मुंह नीचे को खींच दिया और उसके जेवर टटोल दिए और फिर बोली मंगलसूत्र को बाहर निकाल।
हार क्यों नहीं पहना ?
कान आदि सब चैक करते हुए बोली, जा वो सामने वाले खेत में जा और वहाँ से हरा धनिया लेकर आ।
अच्छा कहते हुए नीरा वहाँ से उठी और सोचने लगी कि क्या था ये ?
धनिया तोड़ने के लिए कपड़े, जेवर...
अंदर से जिठानियों के हँसने की दबी दबी सी आवाजें आ रही थी।
नीरा ने अपनी जिठानी की बेटी की तरफ देखा और उसे इशारे से साथ चलने के लिए कहा, क्योंकि उसे वहां के बारे में कुछ पता नहीं था।
जिठानी की बेटी से शादी के दिन ही अच्छी दोस्ती हो गई थी मात्र सात साल की थी और चटर पटर बोलती थी।
वो शादी में नीरा के घर बारात के साथ आई थी और सुबह जब विदाई की तैयारी चल रही थी तो आकर दोस्ती लगा गई थी कि आप हमारी चाची हो और हमारा नाम मीतू है।
अभी जाते वक्त हम आपके साथ कार में बैठकर जायेंगे।
बहुत प्यारी सी लगी वो नीरा को।
मीतू झटपट चप्पल पैर में डालकर नीरा के हाथ को पकड़कर चलने लगी।
फिर नीचे सीढ़ियों पर उतरते हुए मीता ने कहा, चाची आपको पता है कि दादी ने आपको धनिया लाने के लिए क्यों भेजा है ?
हाँ सब्जी में डालेंगे।
हाँ चाची, वो तो सही है लेकिन आपको इसलिए भेजा है क्योंकि आप शहर से आए हो और गाँव की औरतें आपको देखें इसलिए।
आप सुंदर हो न।
ओह, शहर की बहू होने का दिखावा भी चाहिए और शहर की बहू को गांव के रहन सहन भी आने चाहिये।
जैसे ही नीरा खेत में पहुँची उसने आसपास के दो घरों की खिड़कियों पर आवाजाही सी महसूस की।
खिड़कीयों के पट हल्के खुलते बंद होते हुए अंधेरे में से कुछ सिर हिलने डुलने जैसा महसूस किया।
मीता खुसफुसाकर बोली, चाची देखा और शैतानी से जोरदार ढंग से हँसने लगी नीरा ने उसकी ओर देखा तो वो भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।
नीरा ने उसका हाथ पकड़ रखा था तो हल्के से दबा कर चुप होने का इशारा किया और सिर नीचे कर धनिया के साथ न जाने क्या क्या पत्ते तोड़ दिये।
खैर धनिया तोड़ने और इकठ्ठा करने के बाद नीरा, मीता से बाते करते हुए घर वापस आ गयी और रसोई में जाकर गैस के पास धनिया रख कर नीचे चौकी पर बैठ गयी कि तभी उसकी जिठानी ने पूछा ये सूट अच्छा लग रहा है ये किसने दिया?
लगा कि ये सब क्या पूछ रहे हैं ये फिर भी जवाब दिया कि ये मेरी दोस्त ने दिया। फिर उसके कान में हाथ लगाकर पूछा कि ये कानों के झुमके किसने दिये ?.....
अरे किसने दिया मतलब, घरवालों ने ही दिया होगा तो संक्षिप्त उत्तर के उद्देश्य से कह दिया कि अभी जो कुछ भी पहना हुआ है सब मम्मी लोगों ने ही दिया है, इस समय सब हल्द्वानी घर का पहना हुआ है।
और फिर उनकी आँखों और पतिदेव की की कुछ सरगोशी सी महसूस की।
और सेकेंडो में आवाज आई वही वापस चले जा।
नीरा ने अचकचाते हुए अपनी नजरें ऊपर उठा कर देखा कि किससे कह रहे हैं और फिर चीखती हुई आवाज का सामना किया, घूर क्या रही है चल दे अपने घर को।
हल्द्वानी हल्द्वानी हल्द्वानी हर बखत वही की।
नीरा एकदम चौकी छोड़कर खड़ी हो गई और घबरा कर जिठानी की ओर देखा तो वो कुमाऊँनी में बोली के हैगो, म्यैल त इसिकै पूछो तुम झगड़ नी करो। (मैने तो ऐसे ही पूछा तुम झगड़ा मत करो)
नीरा बिना कुछ कहे दोनों के बीच में से बढ़कर बाहर निकल गयी और लकड़ी की सीढ़ियों पर सरकती हुई उतरते हुए बीच के बरामदे में आकर बहुत देर तक दिवार से चिपक कर खड़ी रही कुछ मिनटों में खुद को संयत करने में लगाये और सामने फैले हुए हिमालय के विस्तार को देखते रही।
सफेद और ठंडा हिमालय।
नीरा को कभी भी उस जगह से दिखते हुए हिमालय ने कभी भी आकर्षित नहीं किया।
वो उसे हमेशा एक घुटन भरा अहसास देता रहा।
कुछ नहीं दिखता है दम घुटता सा उठता कोहरा छाया हुआ था।
सैकड़ों औरतों की तरह आज नीरा ने भी सोचा कौन सा है उसका घर ?